क्या सहकारिता के बल पर _प्रउत_ आएगा ?
-------------------------------------------
श्री आनन्द किरण "देव"
----------------------------------------
इन दिनों प्राउटिस्ट यूनिवर्सल के द्वारा 'प्रउत इन प्रैक्टिस' के नाम पर बिहार व झारखंड के कुछ अंचल में कतिपय सहकारिता समितियों की शुरुआत की गई है। मैं व्यक्तिशय इस कार्य योजना का अभिनंदन करता हूँ। प्रउत के लिए बनाईं गई इस वर्किंग पोलिसी ने जनमानस के समक्ष चर्चा का विषय परोसा है - क्या सहकारिता के बल पर 'प्रउत' आएगा?
प्रउत का मूल मंत्र संगच्छध्वम् है, जो मनुष्य को, साथ मिलकर आगे बढ़ने की शिक्षा देता है, तथा सहकारिता का अर्थ साथ मिलकर कर काम करना है। मोटे तौर पर देखने पर एक भ्रम होता है कि प्रउत ही सहकारिता है तथा सहकारिता ही प्रउत है। वस्तुतः ऐसा नहीं है। सहकारिता, प्रउत अर्थव्यवस्था का एक अंग मात्र है, जिसे मध्यम तथा कृषि उद्योग संचालन का आधार बताया गया है। इसलिए हमें देखना होगा कि पूंजीवाद तथा साम्यवाद के युग में सहकारिता की चिंगारी, प्रउत की अलख जगाने में कारगर है?
एक तथ्य है कि पूंजीवाद तथा साम्यवाद में सहकारिता मात्र एक छलवा है अर्थात पूंजीवाद तथा साम्यवाद में सहकारिता सफल हो ही नहीं सकती है। हम इस समय पूंजीवादी युग में जी रहे है। पूंजीवाद का विकराल दैत्य अपनी छत्रछाया में किसी भी अर्थव्यवस्था को पनपने नहीं देता है। पूंजीवाद को ध्वंस करने के लिए आरपार की लड़ाई का शंखनाद करना होता है। प्रउत, नये युग की आदर्श सामाजिक आर्थिक व्यवस्था है। यह किसी के सामने हाथ जोड़कर भिक्षा मांगने वाला अभियान नहीं है। यह संपूर्ण व्यवस्था परिवर्तन करने वाला आंदोलन है। युग के प्राणधर्म को नोंच रही व्यवस्था विरुद्ध के समग्र क्रांति है। शोषण एवं अत्याचार के विरुद्ध खुला विप्लव है। जहाँ प्रउत की भाषा क्रांतिकारी शब्दावली से निर्मित वहाँ सहकारिता की मंद आवाज, युग की श्रवण शक्ति को कैसे प्रभावित कर सकती है? यह प्रश्न 'प्रउत इन प्रैक्टिस' के समक्ष है। जिसका उत्तर देना ही होगा।
प्रउत की समग्र क्रांति संघर्ष तथा रचनात्मक अभिव्यक्ति (दोनों) को एक साथ लेकर चलती है। प्रउत के सामाजिक आर्थिक आंदोलन की योजना में आध्यात्मिकता नैतिकता के जागरण से लेकर सदविप्र राज की स्थापना तक का एक सुव्यवस्थित कार्यक्रम है। प्रउत का सामाजिक आर्थिक आंदोलन ज्यौं ज्यौं आगे बढ़ेगा, त्यौं त्यौं एक आदर्श समाज के लिए एक रचनात्मक योजना परोसता जाएगा। अतः हम कह सकते है कि प्रउत आंदोलन संघर्ष तथा सृजन (दोनों) को एक साथ लेकर चलता है। प्रउत का सामाजिक आर्थिक आंदोलन के दो पहिए - समाज आंदोलन तथा फैडरेशन आंदोलन है। जो अपनी शुरुआत सांस्कृतिक आंदोलन करते है। सांस्कृतिक आंदोलन की मूल जनमानस में आध्यात्मिक नैतिकता का जागरण करना है। यह आध्यात्मिक नैतिकता ही सामाजिक आर्थिक आंदोलन की दूसरे पायदान आर्थिक आंदोलन की आत्मा है।
हम विषय के रोचक मोड़ पर आ गये हैं। सामाजिक आर्थिक आंदोलन का आंदोलन का दूसरा पायदान आर्थिक समाज आंदोलन, पूंजीवाद की लूट तथा साम्यवाद की दिशाहीन नीति के विरुद्ध खुला संघर्ष करता है। इसके साथ स्थानीय इकाई को आत्मनिर्भर इकाई के रूप में विकसित करने का रचनात्मक कार्यक्रम भी देता है। यहाँ पर प्रउत व्यवस्था के प्रबंधकों (सद्विप्र बोर्ड) को अपनी संतुलित अर्थव्यवस्था को पसोसना होगा। शिक्षा व चिकित्सा की निशुल्क व्यवस्था को अमली जामा पहनाना होगा। इसलिए हम मात्र सहकारिता की कुछ समितियां बना कर दुनिया को प्रउत का प्रादर्श कैसे दिखा सकते है? आपकी आप जाने, मैं तो इसे एक हास्य के अतिरिक्त कुछ नहीं कह सकता हूँ।
विषय के अंत में सहकारिता के आधार पर प्रउत लाने का दिवा स्वप्न दिखाने व देखने वालो से एक ही बात कहूँगा - प्रउत का सामाजिक आर्थिक आंदोलन जादू की छड़ी नहीं है, जो जिसके हाथ में लगे वह जादूगर बन कर जनमानस को नजरबंदी का खेल दिखाने लग जाए। यह मेहनत एवं पसीने की वह बाजी है, जिसमें हर बाजीगर को अपनी जान की बाजी लगाकर अथवा जान जोखिम में डाल कर सर्वजन हितार्थ, सर्वजन सुखार्थ की साधना करता है। अतः सहकारिता मात्र एक प्रयास हो सकता है, संपूर्ण आंदोलन का प्रादर्श नहीं।
एक चर्चा आदर्श सहकारी समिति व उनके आदर्श पात्रों पर कर विषय को विराम देता हूँ। प्रउत में वर्णित आदर्श सहकारी समिति अपने सदस्यों को अन्न, वस्त्र, आवास, चिकित्सा एवं शिक्षा की गारंटी देती है तथा प्रत्येक पात्र की समग्र आर्थिक व सामाजिक सुरक्षा अपने हाथों में लेती है। दूसरी ओर सहकारी समिति का प्रत्येक सदस्य यम नियम में प्रतिष्ठित व भूमा भाव का साधक होता है, जो सबके साथ मिलकर सबके लिए काम करने के आदर्श सहकारिता के गुणों को मन, कर्म, वचन एवं अन्त:आत्मा से ग्रहण करता है तथा उसे पूर्ण निष्ठा से निभाता है। आदर्श सहकारिता का यह पात्र सार्वजनिक हित के समक्ष निजी हितों का बलिदान देने के लिए सदैव सबसे आगे रहता है। यदि उक्त गुण से लबालब भरी प्रउत इन प्रैक्टिस की सहकारी समितियां है, तो हम सभी को इनका अभिनंदन व अभिवादन करना ही चाहिए। मैं एक आशावादी गुरु का आशावादी शिष्य हूँ, इसलिए प्रउत यूनिवर्सल के प्रउत इन प्रैक्टिस कार्यक्रम का स्वागत करता हूँ। मैं उसी गुरु का जागरूक शिष्य होने के नाते यह कहता हूँ कि प्रउत वीरों की भाषा व साधुओं की जीवन शैली है। इसे व्यापारियों के व्यवसायिक दावपेच तथा राजनेताओं की राजनैतिक चालों से कभी नहीं आंकिये।
-------------------------
श्री आनन्द किरण "देव"