विचार मंथन मंच से
®करण सिंह शिवतलाव की कलम से ®
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©भारत का इतिहास-01©
(राजनैतिक इतिहास)
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आधुनिक इतिहासकार श्री प्रभात रंजन सरकार ने भारतवर्ष को भरणपोषण एवं समग्र उन्नति को सुनिश्चित करने वाला देश बताया है। इस राष्ट्र में उपर्युक्त व्यवस्था होने के कारण ही यहाँ का इतिहास शानदार था, जिसके कारण भारतवर्ष विश्व गुरु की उपमा से अलंकृत किया गया है। किसी भी देश का इतिहास का अर्थ उस देश की सामाजिक, सांस्कृतिक, आर्थिक एवं राजनैतिक विरासत का मूल्यांकन एवं सद्पयोग करने से है। इस आलेख में भारतवर्ष के राजनैतिक पटल पर दृष्टिपात किया जा रहा है।
भारतवर्ष के विद्वानों से युरोपीय इतिहासकारों की एक शिकायत रही है कि भारतीयों को अपना इतिहास लिखना नहीं आया। महाभारत नामक ग्रंथ का अवलोकन से ज्ञात होता है कि भारतीयों के पास इतिहास लेखन की एक समृद्ध परंपरा थी। भारतीय इतिहास लेखन विधा एवं युरोपियन इतिहास लेखन कला में अन्तर है। युरोपियन साक्ष्य को अधिक गुरुत्व देते थे जबकि भारतीय इसे एक सहायक साधन मानकर हासिये में रखते थे।
भारतवर्ष का इतिहास इस धरा पर जीव के आगमन से पूर्व भी सृष्टि के निर्माण को भी दर्शन एवं आध्यात्म के माध्यम से लिपिबद्ध अथवा क्रिया रुप दिया गया था। जिस गुरुकुल एवं विद्यापीठों में पढ़ाया जाता था। भारतवर्ष के राजनैतिक इतिहास का प्रथम सिंधु सरस्वती सभ्यता में होता है। जहाँ नगर राज्यों के दर्शन होते है। इससे पूर्व ग्राम राज्यों भारतीय इतिहास के अवलोकन से आभास होता है। जो वास्तविकता के बिलकुल नजदीक एवं साथ है। ग्राम से पूर्व मनुष्य के पहाड़ी प्रदेशों में रहने का उल्लेख आता है। यद्यपि इस अवस्था के लिखित एवं पुरातात्विक साक्ष्य मौजूद नहीं है तथापि यह अवस्था वास्तविक थी। पहाड़ी मानव से पूर्व भी एक जंगली अथवा आदिम मानव की अवस्था भारतवर्ष में विद्यमान थी। इसको इतिहासकार प्रमाणित कर चुके हैं। इससे पूर्व का एक अध्याय इतिहासकारों की दृष्टि से दूर है। आधुनिक अर्थशास्त्री श्री प्रभात रंजन सरकार की प्रगतिशील उपयोग तत्व के समाज चक्र में एक शूद्र अवस्था के अनुरूप था।
(1.) भारतीय राजनैतिक इतिहास का आरंभिक बिन्दु आदिम मानव का युग ➡ आदि मानव का इतिहास गुफावासी एवं पथ्थर युग बताया गया है, लेकिन यह उस युग का भी पूर्वार्द्ध था। यहाँ जिसकी लाठी उसकी भैंस युग अर्थात क्षत्रिय युग आरंभ हो गया था। इस युग के मानव का भोजन शाक सब्जी एवं कंद मूल था। यह मनुष्य मांसाहार से परिचित नहीं था। विज्ञान के लिए शोध का विषय है कि मनुष्य मूलतया शाकाहारी है। इस युग में देह एवं सुरक्षा चिंता थी। जिसे पहलवान की लाठी के तले परिभाषित किया जाता था।
(2.) भारतीय इतिहास का प्रथम आदर्श बिन्दु पहाड़ी मानव युग ➡ इस युग में मनुष्य गुफा कंदराओं एवं पहाड़ की तलहटी में रहता था। इतिहासकारों ने इस युग को आदि मानव का युग कहा है। जो पथ्थर युग से धातु युग एवं शिकारी युग से फलाहारी युग की कहानी है। भारतवर्ष में पर्वत पर रहने वाले युग को ऋषि युग कहा है। जिससे एक गोत्र परंपरा का सूत्रपात हुआ था। इसलिए इस युग को विप्र युग कहा जाता था। इस युग में आग, पहिया, पथ्थर व धातु औजार व हथियार तथा मारक एवं फैकने वाले अस्त्र शस्त्र का अविष्कार हुआ था। ऋषि मुनियों की मेधा के विकास ने मासांहार से मनुष्य को शाकाहार की ओर ले जाया था। इससे पूर्व पहलवान की लाठी शाकाहारी मनुष्य को मांस भक्षण करवाया था। इस युग की उत्तरार्द्ध में भगवान सदाशिव का आगमन हुआ था। इस आधार पर कहा जाता है कि यह युग 5000 ईसा पूर्व का युग था।
(3.) भारतीय इतिहास प्रथम गुरुत्व बिंदु ग्राम स्वराज ➡ इस युग में मानव खेती को अपनाया था। उसकी आवश्यकता को समझकर गाँव को निर्माण किया। संस्कार एवं उपयोगिता को समझकर प्रथमतः गाँव का निर्माण पहाड़ एवं नदी के आसपास हुआ। इस युग ग्रामों ने समान आवश्यकता एवं उपयोगिता के आधार पर ग्राम समूह का निर्माण किया था। जो एक राजनैतिक चेतना द्वारा संचालित होता था। जिसे ग्राम स्वराज कहा गया है। वस्तु विनिमय की प्रथा का सूत्रपात एवं आवश्यकता - उपयोगिता के सूत्र का प्रतिपादन के आधार पर इसे वैश्य युग में रखा गया है। इस युग मनुष्य मूलतः व्यपारी नहीं था लेकिन आवश्यकता एवं उपयोगिता का विनिमय एवं स्थानांतरण की सामान्य परंपरा ने मनुष्य वैश्य गुणों की प्रधानता दिखाई थी। यह युग 3000 ईसा पूर्व का युग था। इस युग का राजनैतिक परिदृश्य एक गणतंत्र का था। इस युग में मताधिकार का अधिकार आम आदमी के पास नहीं था।
(4.) भारतीय इतिहास का स्वर्णिम पृष्ठ नगरीय सभ्यता ➡ विषय विनियोग तथा व्यापार इत्यादि सुदृढ़ता ने एक संगठित राजसत्ता की आवश्यकता को महसूस किया। इसलिए भारतवर्ष में विभिन्न स्थानों पर सुदृढ़ राजतंत्र स्थापित किया। इसके ध्वज तले नगर का निर्माण हुआ। भारतवर्ष में इस युग सबसे प्राचीन उदाहरण सिंधु सरस्वती सभ्यता के नाम से जाना जाता है। इसके अलावा भी बहुत से सुन्दर नगर बने। राजतंत्र की सुदृढ़ता के कारण इस युग को क्षत्रिय युग कहा जाता है। इस युग में एक विराट महामानव भगवान श्रीकृष्ण का आविर्भाव हुआ। यह युग 1000 से 3000 हजार ईसा पूर्व के मध्य का युग था। इस युग को महाकाव्य एवं वैदिक युग की प्रधानता का युग भी कहा जाता है। यहाँ एक बात स्मरण रखनी है कि वेदों की रचना पहाड़ी एवं ग्राम स्वराज काल में हो गई थी। वैदिक व्यवस्था का प्रभावी स्थापन इस युग में हुआ।
(5.) भारतीय इतिहास में नवचेतना का युग आध्यात्मिक एवं सांस्कृतिक आन्दोलन ➡ श्रीकृष्ण के द्वारा जगाई गई आध्यात्मिक एवं सांस्कृतिक जागरण की भावना ने व्यक्ति के मन में आत्म मोक्ष एवं जगत हित के भाव अंकुरित किये। इसके अग्रदूतों व्यापक पैमाने पर कर्मकांड एवं यज्ञशाला के विरुद्ध एक सशक्त आंदोलन हुए। सांस्कृतिक दृष्टि से भारतवर्ष के एक्किकरण काम ओर अधिक द्रूतगति बढ़ा भारतवर्ष में यह जैन, बोद्ध, सनातन, शैव, वैष्णव व शाक्त आंदोलन कहलाए। इसलिए इस युग को विप्र युग कहा जाता है। मगध राजतंत्र तथा कनौज इत्यादि पर विभिन्न राजवंश का उथल पुथल यह राजवंश उपरोक्त में से किसी एक प्रभावी चेतना को धारण करती है। इस युग में मौर्य हुण, कनिष्क, गुप्त, वर्धन व राजपूत युग के नाम की राजवंश व्यवस्था थी। राजपूत माऊंट आबू के वशिष्ठ शक्ति पीठ के शक्ति उपासक थे। इस प्रकार सभी विप्र व्यवस्था से प्रभावित युग थे। यह युग 1000 ईसा पूर्व से 1200 ईस्वी का काल है।
(6.) भारतीय इतिहास का बाह्य जगत् से संपर्क ➡ इस युग में अरबी अफगान, तुर्क व मंगोलियन व्यपारी सुलतान, युरोपियन व्यपारियों तथा स्वतंत्र भारत के व्यपारी राजनेता का युग रहा है। इसलिए यह वैश्य युग की उपमा पाता है।
भारत के राजनैतिक इतिहास की यह तस्वीर भारतवर्ष के एक पक्ष को रेखांकित करती है। आर्थिक, सामाजिक एवं धार्मिक इतिहास लेखन के बाद एक भारतवर्ष की तस्वीर दिखाई देती है।
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करण सिंह शिवतलाव@ भारतवर्ष का इतिहास
®करण सिंह शिवतलाव की कलम से ®
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(राजनैतिक इतिहास)
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आधुनिक इतिहासकार श्री प्रभात रंजन सरकार ने भारतवर्ष को भरणपोषण एवं समग्र उन्नति को सुनिश्चित करने वाला देश बताया है। इस राष्ट्र में उपर्युक्त व्यवस्था होने के कारण ही यहाँ का इतिहास शानदार था, जिसके कारण भारतवर्ष विश्व गुरु की उपमा से अलंकृत किया गया है। किसी भी देश का इतिहास का अर्थ उस देश की सामाजिक, सांस्कृतिक, आर्थिक एवं राजनैतिक विरासत का मूल्यांकन एवं सद्पयोग करने से है। इस आलेख में भारतवर्ष के राजनैतिक पटल पर दृष्टिपात किया जा रहा है।
भारतवर्ष के विद्वानों से युरोपीय इतिहासकारों की एक शिकायत रही है कि भारतीयों को अपना इतिहास लिखना नहीं आया। महाभारत नामक ग्रंथ का अवलोकन से ज्ञात होता है कि भारतीयों के पास इतिहास लेखन की एक समृद्ध परंपरा थी। भारतीय इतिहास लेखन विधा एवं युरोपियन इतिहास लेखन कला में अन्तर है। युरोपियन साक्ष्य को अधिक गुरुत्व देते थे जबकि भारतीय इसे एक सहायक साधन मानकर हासिये में रखते थे।
भारतवर्ष का इतिहास इस धरा पर जीव के आगमन से पूर्व भी सृष्टि के निर्माण को भी दर्शन एवं आध्यात्म के माध्यम से लिपिबद्ध अथवा क्रिया रुप दिया गया था। जिस गुरुकुल एवं विद्यापीठों में पढ़ाया जाता था। भारतवर्ष के राजनैतिक इतिहास का प्रथम सिंधु सरस्वती सभ्यता में होता है। जहाँ नगर राज्यों के दर्शन होते है। इससे पूर्व ग्राम राज्यों भारतीय इतिहास के अवलोकन से आभास होता है। जो वास्तविकता के बिलकुल नजदीक एवं साथ है। ग्राम से पूर्व मनुष्य के पहाड़ी प्रदेशों में रहने का उल्लेख आता है। यद्यपि इस अवस्था के लिखित एवं पुरातात्विक साक्ष्य मौजूद नहीं है तथापि यह अवस्था वास्तविक थी। पहाड़ी मानव से पूर्व भी एक जंगली अथवा आदिम मानव की अवस्था भारतवर्ष में विद्यमान थी। इसको इतिहासकार प्रमाणित कर चुके हैं। इससे पूर्व का एक अध्याय इतिहासकारों की दृष्टि से दूर है। आधुनिक अर्थशास्त्री श्री प्रभात रंजन सरकार की प्रगतिशील उपयोग तत्व के समाज चक्र में एक शूद्र अवस्था के अनुरूप था।
(1.) भारतीय राजनैतिक इतिहास का आरंभिक बिन्दु आदिम मानव का युग ➡ आदि मानव का इतिहास गुफावासी एवं पथ्थर युग बताया गया है, लेकिन यह उस युग का भी पूर्वार्द्ध था। यहाँ जिसकी लाठी उसकी भैंस युग अर्थात क्षत्रिय युग आरंभ हो गया था। इस युग के मानव का भोजन शाक सब्जी एवं कंद मूल था। यह मनुष्य मांसाहार से परिचित नहीं था। विज्ञान के लिए शोध का विषय है कि मनुष्य मूलतया शाकाहारी है। इस युग में देह एवं सुरक्षा चिंता थी। जिसे पहलवान की लाठी के तले परिभाषित किया जाता था।
(2.) भारतीय इतिहास का प्रथम आदर्श बिन्दु पहाड़ी मानव युग ➡ इस युग में मनुष्य गुफा कंदराओं एवं पहाड़ की तलहटी में रहता था। इतिहासकारों ने इस युग को आदि मानव का युग कहा है। जो पथ्थर युग से धातु युग एवं शिकारी युग से फलाहारी युग की कहानी है। भारतवर्ष में पर्वत पर रहने वाले युग को ऋषि युग कहा है। जिससे एक गोत्र परंपरा का सूत्रपात हुआ था। इसलिए इस युग को विप्र युग कहा जाता था। इस युग में आग, पहिया, पथ्थर व धातु औजार व हथियार तथा मारक एवं फैकने वाले अस्त्र शस्त्र का अविष्कार हुआ था। ऋषि मुनियों की मेधा के विकास ने मासांहार से मनुष्य को शाकाहार की ओर ले जाया था। इससे पूर्व पहलवान की लाठी शाकाहारी मनुष्य को मांस भक्षण करवाया था। इस युग की उत्तरार्द्ध में भगवान सदाशिव का आगमन हुआ था। इस आधार पर कहा जाता है कि यह युग 5000 ईसा पूर्व का युग था।
(3.) भारतीय इतिहास प्रथम गुरुत्व बिंदु ग्राम स्वराज ➡ इस युग में मानव खेती को अपनाया था। उसकी आवश्यकता को समझकर गाँव को निर्माण किया। संस्कार एवं उपयोगिता को समझकर प्रथमतः गाँव का निर्माण पहाड़ एवं नदी के आसपास हुआ। इस युग ग्रामों ने समान आवश्यकता एवं उपयोगिता के आधार पर ग्राम समूह का निर्माण किया था। जो एक राजनैतिक चेतना द्वारा संचालित होता था। जिसे ग्राम स्वराज कहा गया है। वस्तु विनिमय की प्रथा का सूत्रपात एवं आवश्यकता - उपयोगिता के सूत्र का प्रतिपादन के आधार पर इसे वैश्य युग में रखा गया है। इस युग मनुष्य मूलतः व्यपारी नहीं था लेकिन आवश्यकता एवं उपयोगिता का विनिमय एवं स्थानांतरण की सामान्य परंपरा ने मनुष्य वैश्य गुणों की प्रधानता दिखाई थी। यह युग 3000 ईसा पूर्व का युग था। इस युग का राजनैतिक परिदृश्य एक गणतंत्र का था। इस युग में मताधिकार का अधिकार आम आदमी के पास नहीं था।
(4.) भारतीय इतिहास का स्वर्णिम पृष्ठ नगरीय सभ्यता ➡ विषय विनियोग तथा व्यापार इत्यादि सुदृढ़ता ने एक संगठित राजसत्ता की आवश्यकता को महसूस किया। इसलिए भारतवर्ष में विभिन्न स्थानों पर सुदृढ़ राजतंत्र स्थापित किया। इसके ध्वज तले नगर का निर्माण हुआ। भारतवर्ष में इस युग सबसे प्राचीन उदाहरण सिंधु सरस्वती सभ्यता के नाम से जाना जाता है। इसके अलावा भी बहुत से सुन्दर नगर बने। राजतंत्र की सुदृढ़ता के कारण इस युग को क्षत्रिय युग कहा जाता है। इस युग में एक विराट महामानव भगवान श्रीकृष्ण का आविर्भाव हुआ। यह युग 1000 से 3000 हजार ईसा पूर्व के मध्य का युग था। इस युग को महाकाव्य एवं वैदिक युग की प्रधानता का युग भी कहा जाता है। यहाँ एक बात स्मरण रखनी है कि वेदों की रचना पहाड़ी एवं ग्राम स्वराज काल में हो गई थी। वैदिक व्यवस्था का प्रभावी स्थापन इस युग में हुआ।
(5.) भारतीय इतिहास में नवचेतना का युग आध्यात्मिक एवं सांस्कृतिक आन्दोलन ➡ श्रीकृष्ण के द्वारा जगाई गई आध्यात्मिक एवं सांस्कृतिक जागरण की भावना ने व्यक्ति के मन में आत्म मोक्ष एवं जगत हित के भाव अंकुरित किये। इसके अग्रदूतों व्यापक पैमाने पर कर्मकांड एवं यज्ञशाला के विरुद्ध एक सशक्त आंदोलन हुए। सांस्कृतिक दृष्टि से भारतवर्ष के एक्किकरण काम ओर अधिक द्रूतगति बढ़ा भारतवर्ष में यह जैन, बोद्ध, सनातन, शैव, वैष्णव व शाक्त आंदोलन कहलाए। इसलिए इस युग को विप्र युग कहा जाता है। मगध राजतंत्र तथा कनौज इत्यादि पर विभिन्न राजवंश का उथल पुथल यह राजवंश उपरोक्त में से किसी एक प्रभावी चेतना को धारण करती है। इस युग में मौर्य हुण, कनिष्क, गुप्त, वर्धन व राजपूत युग के नाम की राजवंश व्यवस्था थी। राजपूत माऊंट आबू के वशिष्ठ शक्ति पीठ के शक्ति उपासक थे। इस प्रकार सभी विप्र व्यवस्था से प्रभावित युग थे। यह युग 1000 ईसा पूर्व से 1200 ईस्वी का काल है।
(6.) भारतीय इतिहास का बाह्य जगत् से संपर्क ➡ इस युग में अरबी अफगान, तुर्क व मंगोलियन व्यपारी सुलतान, युरोपियन व्यपारियों तथा स्वतंत्र भारत के व्यपारी राजनेता का युग रहा है। इसलिए यह वैश्य युग की उपमा पाता है।
भारत के राजनैतिक इतिहास की यह तस्वीर भारतवर्ष के एक पक्ष को रेखांकित करती है। आर्थिक, सामाजिक एवं धार्मिक इतिहास लेखन के बाद एक भारतवर्ष की तस्वीर दिखाई देती है।
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करण सिंह शिवतलाव@ भारतवर्ष का इतिहास