रश्मिरथी
मै रश्मि रथी हूँ, मैंने सूरज थमते नहीं देखा है! 
 मुह से निकली बात को वापस जाते नहीं देखी है!! 

वचन के खातिर प्राणों को जाते देखा है! 
आन, मान एवं शान में सर कटते देखा है!! 
 
आज मैं क्यों वीरों को वापस मुड़ते क्यों देख रहा हूँ? 
इस धरा पर कलयुग की काली छाया क्यों देख रहा हूँ?? 

क्या मुझे जीना नहीं आया, 
क्या मुझे चलना नहीं आया,, 

प्राणा देने संकल्प लेकर, मृत्यु से क्यों डर रहा हूँ मै? 
वीरों का इतिहास पढ़कर काल से क्यों काप रहा हूँ मैं? 

हे मुर्ख तुझे तेरी प्रतिष्ठा बनानी नही आयी! 
हे नादान तुझे तेरी प्रतिष्ठा बचानी नहीं आयी!! 

कही मेरे अहंकार के बादल नहीं टकरा रहे है......... 
कही नाम करनी की झूठी चाहत तो नहीं जगी है....... 

मान न मान कुछ तो अच्छा नहीं हो रहा है। 
समझ न समझ कुछ तो
खराब हो रहा है।। 

मैं रश्मि रथी हूँ, सत्य के खातीर राहु केतु से भी भीड़ जाता हूँ!
अपने हित से बढ़कर परहित के त्याग के लिए जीते देखा हूँ!!

एक बात है, मैंने कभी अपने दोष नहीं देखे, 
सत्य है कि मैंने अपने गिरेबान नही झांका,, 

क्या मैंने औरों को बहुत उपदेश दिये है?
क्या मैं थोथा चना बनकर बहुत बजा हूँ?? 

आखिर है तो कुछ है, जो नहीं देखना चाहता हूँ, वह देख रहा हूँ..... 
सच तो यह है कि मुझे जीवन जीना आया ही नहीं ...... 

क्या मुझे काम करना नहीं आता? 
क्या मुझे नाम लिखना नहीं आता है। 

इस का मतलब यह तो नहीं मुझे मेरी प्रतिष्ठा करनी नहीं,, 
 कदापि इस शुकुन अर्थ यह तो नहीं मुझे मेरी करनी भरनी नहीं आयी,, 

मैं रश्मि रथी हूँ, जीवन का सार हूँ! 
मैं आनन्द किरण हूँ अकेला जीने वाला हूँ!! 
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कविता रश्मि रथी - कवि श्री आनन्द किरण की कलम से 22/03/2021 शाम 7.07 मिनट
चलना तो होगा ही
रुकने के मुड़ में है, रश्मि रथी का घोड़ा🐎। 
थमने के मोड़ पर है, काल का पहिया🎡।। 

 पीछे मुड़ने की राह पर है, धर्मराज के पांव👣।
संकट में पड़ गया है, इंद्र का ताज 🎩।। 

बीच समुद्र में पक्षी थक चुका है👌, 
फिर भी पंख तो चलाने पडते है💥, 
किनारा कितना भी दूर क्यों न हो फिर भी उसे रुकना नहीं होता है 🔆, 
वापस मुड़ने पर भी समस्या का समाधान नहीं होता है🚫, 
चलना तो होगा ही लक्ष्य को पाना जो है 🔧। 
जब जीवन मृत्यु का प्रश्न हो, तब वीरगति कोई बुरी नहीं💀, 
विजयश्री उसी को मिलती, जो थक कर भी रूकता नहीं ⛔।। 

फिर से दौड़ेंगे, नयी उमंगों के सारे🌹, 
लिख देंगे काल के कपाट पर नये नारे✍। 
संकल्प को तपना तो पड़ता है🔥, 
नर में इन्द्र बनकर तुम्हें ही चलना तो पड़ता है⛳।। 

आशा की किरण कभी मिटती नहीं। 
आनन्द किरण कभी रुकता नहीं ।। 
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कविता - चलना तो होगा ही
कवि - श्री आनन्द किरण की कलम से
23 मार्च 2021 सुबह 7:09 बजे ।

आनन्दमूर्ति का पुत्र हूँ
आनन्दमूर्ति का पुत्र हूँ,

रक्त की एक-एक बुंद पर  परहितार्थ लिखा है।
बाबा को जीवन सौपा है ,
कांटों एवं फूल में  नहीं खो जाना है। तूफानों की दिशाओं को मोड़ सागर पार हो जाना,
 मेरा धर्म- कर्म है।

रास्ता कितना भी कठिन क्यों न हो आनन्द की वर्षा जो बाबा ने की है।
 उसमें भींगकर ही पार हो जाना अब मेरी तकदीर है। 

 यह संकल्प अब मन में  है कि,
बाबा तेरे खातिर कुछ कर गुजरें अथवा मर जाना ही बेहतर है।
 पुनः जन्म हुआ तो फिर से कुछ करेंगे,
 मुक्ति मिल गई तो तेरे  संकल्प में विलिन हो जाने की मनचाहा है।
मोक्ष की चाहत कदापि नहीं,
यदि मिल गया तो तुम और मैं एक हैं कार्य तो तुम करो चाहें में होना ही होना है।


आनन्दमूर्ति का पुत्र हूँ, सत्य के खातिर मिट जाना मेरा धर्म है।
सत्य ही बाबा है बाबा के खातिर मरना,
सौभाग्य वालों की तकदीर में होता है।
हाथ में आए इस सौभाग्य को अब नहीं खोना है।
सत्य के लिए मरना जीना एक समान हैं।
क्या फर्क पड़ता जीते जीते बाबा बाबा करें,
अथवा मरकर बाबा बन जाए।
चिन्ता तो वह करता है जिसे लूटने का डर है ।
 जब बाबा की शरणों आया था,
 उस दिन ही सब कुछ लूटा चुका था।
 अब बस भरना ही भरना है,
 रूहानी मोहब्बत का खजाना भरना ही भरना है।
 वह स्वर्ग में मिल या नरक में,
 सब जगह ही तो बाबा ही बाबा है।

 आनन्दमूर्ति का पुत्र हूँ,
 महामिलन के लिए निकला हूँ।

 हसते हसते कार्य करता हूँ एवं कराता हूँ।।
बस यही समानता आनन्दमूर्ति जी एवं हम में  है।
वे पूर्ण  थे,
मुझे  पूर्ण बनना  है।
इसलिए तो आनन्द किरण बना हूँ,
फांसले अब सब मिटाने है।
श्री श्री आनन्दमूर्ति  जी में मिल जाना है।
किरण आनन्द बन जाएगी,
आनन्दमूर्ति का पुत्र जब आनन्दमूर्ति बन जाएगा।।

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     ~© कविराज आनंद किरण 
         
         जयपुर (३:३८ pm)

मतदाता की व्यथा
अब मैं जाऊँ कहा। 
आशाओं के दीप जलाऊँ कहा ।।
कांग्रेस अंधों का अखाड़ा है।
बीजेपी मूर्खों का महासागर है।।
जनता दल कलह का करोबार है।
कम्युनिस्ट मुर्दों का घाट है।।
अब मैं जाऊँ कहा। 
आशाओं के दीप जलाऊँ कहा।।
समाजवादी दबंगों का साम्राज्य है।
बसपा बहरों की बौछारें है।।
अकाली संकीर्णता का सरोपा है।
शिवसेना पागलों की पंचायत है।।
अब मैं जाऊँ कहा। 
आशाओं के दीप जलाऊँ कहा।।
टीडीपी त्रिशंकु के पुजारी है।
द्रमुक अवसरवादियों का आँफिस हैं।।
अन्ना द्रमुक धोखेबाजों की धड़ी है।
तृणमूल अंधेरे में मारा गया लट्ठ है।।
अब मैं जाऊँ कहा। 
आशाओं के दीप जलाऊँ कहा।।
केजरीवादी अराजकता की पुकार है।
लालुवादी लोकतंत्र का मजाक है।।
मोदी अधिनायकतंत्र की आवाज है।
शेष सभी स्वार्थ के सरोवर है।।
अब मैं जाऊँ कहा। 
आशाओं के दीप जलाऊँ कहा।।
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  कवि श्री आनन्द किरण ( करण सिंह शिवतलाव)
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विडंबना
दिल में जाति का जहर हैं,
जुवां पर देश भक्ति की लहर है ।
फिर भी मेरा भारत महान है,
बस इतनी ही हमारी पहचान हैं।।

दिल में दरिंदगी का भाव है,
हाथ पर राँखी का ताव हैं।
फिर भी हम एक इंसान हैं,
बस यह हमारी जिंदगाऩी है।।
दिल में कपटता का वार है,
चेहरे पर मित्रता का दिखावा है।
फिर भी हम सामाजिक प्राणी है,
बस यही हमारी दुनियादारी हैं।।
दिलों दिमाग में पाप का वास है,
दिखाने को पुण्यात्मा का जज्बा है।
फिर भी हम विश्व गुरु भारत है,
बस यही हमारी समझदारी है।।
मन में अस्पृश्यता की तस्वीर है,
वाणी पर वसुधैव कुटुम्ब का वाक्य है।
फिर भी हम सभ्य संस्कारित है,
बस यही हमारी विडंबना है।।

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  ~करण सिंह राजपुरोहित(श्री आनन्द किरण)