दिल में जाति का जहर हैं,
जुवां पर देश भक्ति की लहर है ।
फिर भी मेरा भारत महान है,
बस इतनी ही हमारी पहचान हैं।।
दिल में दरिंदगी का भाव है,
हाथ पर राँखी का ताव हैं।
फिर भी हम एक इंसान हैं,
बस यह हमारी जिंदगाऩी है।।
दिल में कपटता का वार है,
चेहरे पर मित्रता का दिखावा है।
फिर भी हम सामाजिक प्राणी है,
बस यही हमारी दुनियादारी हैं।।
दिलों दिमाग में पाप का वास है,
दिखाने को पुण्यात्मा का जज्बा है।
फिर भी हम विश्व गुरु भारत है,
बस यही हमारी समझदारी है।।
मन में अस्पृश्यता की तस्वीर है,
वाणी पर वसुधैव कुटुम्ब का वाक्य है।
फिर भी हम सभ्य संस्कारित है,
बस यही हमारी विडंबना है।।
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~करण सिंह राजपुरोहित(श्री आनन्द किरण)
जुवां पर देश भक्ति की लहर है ।
फिर भी मेरा भारत महान है,
बस इतनी ही हमारी पहचान हैं।।
दिल में दरिंदगी का भाव है,
हाथ पर राँखी का ताव हैं।
फिर भी हम एक इंसान हैं,
बस यह हमारी जिंदगाऩी है।।
दिल में कपटता का वार है,
चेहरे पर मित्रता का दिखावा है।
फिर भी हम सामाजिक प्राणी है,
बस यही हमारी दुनियादारी हैं।।
दिलों दिमाग में पाप का वास है,
दिखाने को पुण्यात्मा का जज्बा है।
फिर भी हम विश्व गुरु भारत है,
बस यही हमारी समझदारी है।।
मन में अस्पृश्यता की तस्वीर है,
वाणी पर वसुधैव कुटुम्ब का वाक्य है।
फिर भी हम सभ्य संस्कारित है,
बस यही हमारी विडंबना है।।
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~करण सिंह राजपुरोहित(श्री आनन्द किरण)
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