ज्ञान एवं विज्ञान के क्षेत्र में मानव मनीषा शिखर को छू रही है। इस मानव को विश्व का परिदृश्य जाति एवं क्षेत्र की भावधारा बहता हुआ नज़र आए तो अवश्य चिन्ता जनक है। आधुनिक युग के एक महान लेखक श्री प्रभात रंजन सरकार ने अपने आलोच्य ग्रंथ बुद्धि की मुक्ति एवं नव्य मानवतावाद में खंडित बुद्धि को पूर्णत्व की राह में ले जाने का अवधान दिया है। देश एवं नस्ल के आधार पर जब तक मानवता को परिभाषित किया जाएगा, तब तक मनुष्य का समाज सच्चे अर्थों में अधुरा कहलाएगा। मनुष्य की परिभाषा किसी सामाजिक या भौमिकी भावप्रवणता में नहीं दिखाई जा सकती हैं। मनुष्य- मनुष्य में भेद सृष्ट करने वाली व्यवस्था सत्य की कसौटी से कोशों दूर है। सत्य लिखा जाए तो जो व्यष्टि मनुष्य को जातिवाद, साम्प्रदायिकता , नस्ल एवं क्षेत्रवाद में बांधकर रखने की वकालत करते हैं, वे वास्तव में अपनी कथनी एवं करनी में अन्तर रखते हैं। उन्हें पल-पल वस्तु तथा भाव जगत में चोरियां करनी पड़ती है। श्री श्री आनन्दमूर्ति जी ने इस प्रकार के व्यक्तियों को कपटाचारी की श्रेणी में रखा है। इनसे मनुष्य को सावधान रहने की भी सलाह दी है। मानव सभ्यता उत्तरोत्तर भाव जगत में आगे बढ़ रही है उसी के अनुरूप वस्तु जगत में मनुष्य को व्यवस्था का निर्माण करना होगा। यही मनुष्य का धर्म है। जो चिन्तन एवं चिन्तन धारक संकीर्ण एवं रूढ़ मान्यता के अनुरूप मनुष्य को खंड में रखना चाहते हैं। उनकी राह अधर्म की है। धर्मयुद्ध में अधर्म की पराजय एवं धर्म की जय होना एक शाश्वत सत्य है। जिसका उल्लेख भगवान श्री कृष्ण ने भगवद् गीता में किया है, तो विश्व के सभी धर्म एवं नीति शास्त्र ने इसका परोक्ष या अपरोक्ष रुप से समर्थन किया है। बुद्धि की मुक्ति एवं नव्य मानवतावाद कहता है मनुष्य भाव जगत में ज्योंह-ज्योंह आगे बढ़ रहा है वस्तु जगत में बुद्धि की सुरक्षा हेतु गर्डर खड़े करने होगे।
नव्य मानवतावाद मनुष्य को सम्पूर्ण सृष्टि से जोड़ता है। तथाकथित मानवतावाद मनुष्य को मात्र मनुष्य को ही संबंधित रखना सीखता है जबकि नव्य मानवतावाद मनुष्य को सृष्टि के समस्त जीव तथा अजीव में अपनत्व का दर्शन कराता है। बुद्धि को सामाजिक, भौम भाव जड़ता एवं मात्र मानवतावाद की अवधारणा से मुक्त कर सम्पूर्ण सोच नव्य मानवतावाद की ओर ले चलना मनुष्य का कर्तव्य है। आनन्द मार्ग नव्य मानवतावाद की प्रतिष्ठा करने की वकालत करता है, आनन्द मार्ग नव्य मानवतावाद की प्रतिष्ठा हेतु एक आन्दोलन लेकर आया है। इसलिए एक मात्र आनन्द मार्ग विश्व शांति एवं अमन चैन की आशा की किरण है।
आनन्द मार्ग अन्त एवं बाह्य जगत के सुन्दर समन्वय युक्त एक मानसाध्यात्मिक दर्शन, सामाजिक आर्थिक सिद्धांत तथा वैज्ञानिक सृष्टि चक्र तथा तत्व अवधारणा लेकर आया है। आनन्द मार्ग वस्तु एवं भाव जगत को साथ लेकर चलता है। मार्ग गुरुदेव श्री श्री आनन्दमूर्ति जी ने शारीरिक, मानसिक एवं आध्यात्मिक क्षेत्र में सुसन्तुलित विकास को प्रमा का संतुलन बताया है। आनन्द मार्ग के पास जाति विहिन मानव समाज है। इस मानव समाज में किसी भी प्रकार की सामाजिक कुरीतियों का स्थान नहीं है। धार्मिक आडंबर आनन्द मार्ग के मानव समाज में प्रवेश नहीं कर सकता है। राजनैतिक एवं आर्थिक जगत पौषित व्याधियां भी आनन्द मार्ग का द्वार नहीं खटखटा सकती है। आनन्द मार्ग द्वारा निर्मित मानव समाज स्वयं आनन्द मार्गियों की भी अलग से जातिगत समाज के निर्माण करने की व्यवस्था नहीं देता है। आनन्द मार्ग के पास ब्रह्म साधना है जो किसी भी प्रकार के मजहब या सम्प्रदाय से पौषित नहीं है। आनन्द मार्ग की कार्यशाला में मत एवं पंथ को नहीं, धर्म के सार्वभौमिक स्वरूप को परिभाषित किया जाता है।
इसलिए हे मनुष्य ! जाग, उठ एवं खड़ा हो जा । देख आनन्द मार्ग आया है। नये युग का पंचजन्य बज चुका है। गांडिव की झनकार बजा और मानव को समष्टि सत्य में प्रणित कर दे ।
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~Karan singh Rajpurohit~
नव्य मानवतावाद मनुष्य को सम्पूर्ण सृष्टि से जोड़ता है। तथाकथित मानवतावाद मनुष्य को मात्र मनुष्य को ही संबंधित रखना सीखता है जबकि नव्य मानवतावाद मनुष्य को सृष्टि के समस्त जीव तथा अजीव में अपनत्व का दर्शन कराता है। बुद्धि को सामाजिक, भौम भाव जड़ता एवं मात्र मानवतावाद की अवधारणा से मुक्त कर सम्पूर्ण सोच नव्य मानवतावाद की ओर ले चलना मनुष्य का कर्तव्य है। आनन्द मार्ग नव्य मानवतावाद की प्रतिष्ठा करने की वकालत करता है, आनन्द मार्ग नव्य मानवतावाद की प्रतिष्ठा हेतु एक आन्दोलन लेकर आया है। इसलिए एक मात्र आनन्द मार्ग विश्व शांति एवं अमन चैन की आशा की किरण है।
आनन्द मार्ग अन्त एवं बाह्य जगत के सुन्दर समन्वय युक्त एक मानसाध्यात्मिक दर्शन, सामाजिक आर्थिक सिद्धांत तथा वैज्ञानिक सृष्टि चक्र तथा तत्व अवधारणा लेकर आया है। आनन्द मार्ग वस्तु एवं भाव जगत को साथ लेकर चलता है। मार्ग गुरुदेव श्री श्री आनन्दमूर्ति जी ने शारीरिक, मानसिक एवं आध्यात्मिक क्षेत्र में सुसन्तुलित विकास को प्रमा का संतुलन बताया है। आनन्द मार्ग के पास जाति विहिन मानव समाज है। इस मानव समाज में किसी भी प्रकार की सामाजिक कुरीतियों का स्थान नहीं है। धार्मिक आडंबर आनन्द मार्ग के मानव समाज में प्रवेश नहीं कर सकता है। राजनैतिक एवं आर्थिक जगत पौषित व्याधियां भी आनन्द मार्ग का द्वार नहीं खटखटा सकती है। आनन्द मार्ग द्वारा निर्मित मानव समाज स्वयं आनन्द मार्गियों की भी अलग से जातिगत समाज के निर्माण करने की व्यवस्था नहीं देता है। आनन्द मार्ग के पास ब्रह्म साधना है जो किसी भी प्रकार के मजहब या सम्प्रदाय से पौषित नहीं है। आनन्द मार्ग की कार्यशाला में मत एवं पंथ को नहीं, धर्म के सार्वभौमिक स्वरूप को परिभाषित किया जाता है।
इसलिए हे मनुष्य ! जाग, उठ एवं खड़ा हो जा । देख आनन्द मार्ग आया है। नये युग का पंचजन्य बज चुका है। गांडिव की झनकार बजा और मानव को समष्टि सत्य में प्रणित कर दे ।
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~Karan singh Rajpurohit~
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