विश्व बन्धुत्व कायम हो

आनन्द मार्ग का श्लोगन हैं कि विश्व बन्धुत्व कायम हो। भारतीय संस्कृति का आदर्श वाक्य वसुधैव कुटुम्बकम् है। विश्व परिवार की रचना की प्रथम सीढ़ी विश्व बन्धुत्व है। विज्ञान, तकनीकी एवं संचार क्रांति के युग दैशिक सीमाओं में कुप मुंडक बनकर बैठना मूर्खता की निशानी है। नीति शास्त्र भी अपना पराया का भेद मानने को लधु बुद्धिता बताया है। इसके विपरीत उदार व्यक्ति का पहचान चिह्न वसुधैव कुटुम्बकम को बताया है। युक्त एवं तर्क की कसौटी भी विश्व बन्धुत्व के भाव को सृष्टि करने की बात कहता है।
👉 आज के विश्व के सामने अज्रस ज्वलंत समस्याएं हैं। जिसका निराकार विश्व बन्धुत्व के भाव में निहित है। इस भाव एवं तथ्य को क्रिया रुप में प्रणित किए बिना आतंकवाद, शीतयुद्ध, परमाणु व अणु शक्ति का भय इत्यादि इत्यादि समस्याओं का निराकरण महज एक दिवा स्वप्न है। जिसे देखो तबतक ही अच्छा है। वास्तविकता के संपर्क में आते ही तीन तेरह हो जाता है। इसलिए विश्व बन्धुत्व का सूत्र के कारगर उपाय है। अधिक उपयुक्त शब्दों में कहा जाए तो यह "रामबाण" औषधि है ।
👉 आज की राजनीति बारूद के ढ़ेर पर खड़े होकर विश्व शांति का चिराग जलाने सी धृष्टता के अलावा कुछ नहीं है। जिसकी एक चिंगारी सम्पूर्ण विश्व को स्वाहा कर करता है। इस विश्व को नासमझ राजनीति के हवाले छोड़ना एक नादानी है। इसलिए हे! विश्व के शुभचिंतकों राजनीति के इस कुचक्र स्वयं व अपनों को मुक्त करवाकर चैन की स्वास लो। राजनीति की यह लापरवाही सभ्य समाज के क्षतिकारी प्रमाणित हो जाए इसकी राह देखना छोडना ही स्वस्थ एवं संस्कारित सभ्यता के लिए आवश्यक है। 
👉 मानव सभ्यता के संरक्षण एवं विश्व के उज्ज्वल व स्वर्णिम भविष्य के लिए एक मात्र विकल्प एवं रास्ता विश्व बन्धुत्व पर कार्य करना है। इसके व्येतिरेक अन्य प्रयत्न छलवा मात्र है। इसलिए हे कर्मवीरों! आनन्द मार्ग के श्लोगन पर कार्य करें।
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