भारतवर्ष को विश्वगुरु कहा जाता था तथा भारतवर्ष पुनः विश्व गुरु बन सकता है। यहाँ प्रश्न यह होता है कि भारतवर्ष विश्वगुरु क्यों ? दूसरा प्रश्न यह है कि भारतवर्ष विश्वगुरु कैसे बन सकता है ? भारतवर्ष की सभ्यता एवं सांस्कृतिक विरासत के बल पर स्वयं को इस उपाधि से उपमित किया था। इस पद की क्या योग्यता है। इसके संदर्भ में उक्ति बोलने वाले लगभग सबके सब अनभिज्ञ है। इसका न्यूनतम एवं अधिकत क्षेत्राधिकार क्या है? इसके संदर्भ में चर्चा कभी हुई ही नहीं। इसलिए उपर्युक्त दोनों प्रश्न आज के परिप्रेक्ष्य में अधिक प्रासंगिक हो जाते हैं।
🔴👉 भारतवर्ष विश्व गुरु था। इस पर आज दिन तक कोई प्रश्न नहीं उठा है। अत: निर्विरोध अथवा सर्वमान्य रुप से कह सकते हैं कि भारतवर्ष विश्वगुरु था, यह कथन सत्य है । यहाँ से हमें विश्वगुरु की उपाधि का पाठ्यक्रम मिल जाएगा। जिसको पास करने वाला यह उपाधि प्राप्त कर लेगा। आरंभ में ही लिखा है कि भारतवर्ष विश्वगुरु इसकी सभ्यता एवं सांस्कृतिक विरासत के कारण रहा है। भारतवर्ष की प्राचीन सभ्यता एवं संस्कृति की महानता ने भारतवर्ष को यह विशिष्ट पहचान दिलाई थी। आध्यात्मिक समृद्धि, खुशहाल अर्थव्यवस्था, सुन्दर एवं सुदृढ़ सामाजिक व्यवस्था, सर्वजन कल्याणकारी चिन्तन तथा वैश्विक परिवार के दृष्टिकोण, यह विश्वगुरु की योग्यता का मापदंड है। यह मानक मापदंड प्राप्त करने वाला विश्वगुरु की परीक्षा में उत्तीर्ण हो जाएगा।
🔴👉 भारतवर्ष विश्वगुरु इसलिए की प्रत्येक भारतीय एवं भारतीय समाज के लिए यह प्रश्न पत्र पहले से खुला है। जिसके संस्कार उसकी जीवन शैली में निहित हैं। विश्व के अन्य देशों के लिए यह परीक्षा है जबकि भारतवर्ष के लिए यह जीवनयात्रा है। परीक्षा में सफल - असफल होने का डर रहता है जबकि जीवनयात्रा एक स्वभाविक प्रक्रिया है। जिसका परिणाम सदैव सफलता ही है। यहाँ एक चिन्ता भी अवश्य है कि वैश्विक संचार क्रांति के कारण कतिपय भौतिकवादी आकर्षण की मृगतृष्णा युवाओं को आकर्षित कर रही है। यह तृष्णा भारतवर्ष की नव पीढ़ी के शुभंकर नहीं हैं। लेकिन हमारे संस्कार कभी भी आशा की किरण को डुबने नहीं देता है। इसलिए विश्वास पक्का बन रहा है कि भारतवर्ष ही विश्वगुरु है।
🔴👉 दूसरी समस्या कैसे का हल आसान है कि हम योग्यता के मानक मापदंड को अंगीकार एवं आत्मसात कर ले। यह मानक मापदंड के सांचे में निर्मित एवं चलयमान गोष्ठी ही विश्वगुरु भारतवर्ष की उत्तराधिकारी है। शेष दिवा स्वप्न देख रहे जो हकीकत से टकराते ही टूट जाएगा।
🔴👉 विश्व मानव समाज की स्थापना एवं विश्व परिवार➡ विश्व सरकार की रचना ही विश्वगुरु के चिन्तन की परिपूर्णता है। जो आध्यात्मिक नैतिक मूल्यों के जागरण, सर्वजन सुखार्थ व हितार्थ सामाजिक आर्थिक चिन्तन, नव्य मानवतावादी सोच एवं जातिविहिन मानव समाज पर स्थापित होता है। जो आनन्द मार्ग के आंदोलन में उपलब्ध हैं।
🔴👉 चलो आनन्द मार्ग की ओर, जानो आनन्द मार्ग को तथा अपनाओं आनन्द मार्ग को 🔴👈👆
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Karan singh rajpurohit
🔴👉 भारतवर्ष विश्व गुरु था। इस पर आज दिन तक कोई प्रश्न नहीं उठा है। अत: निर्विरोध अथवा सर्वमान्य रुप से कह सकते हैं कि भारतवर्ष विश्वगुरु था, यह कथन सत्य है । यहाँ से हमें विश्वगुरु की उपाधि का पाठ्यक्रम मिल जाएगा। जिसको पास करने वाला यह उपाधि प्राप्त कर लेगा। आरंभ में ही लिखा है कि भारतवर्ष विश्वगुरु इसकी सभ्यता एवं सांस्कृतिक विरासत के कारण रहा है। भारतवर्ष की प्राचीन सभ्यता एवं संस्कृति की महानता ने भारतवर्ष को यह विशिष्ट पहचान दिलाई थी। आध्यात्मिक समृद्धि, खुशहाल अर्थव्यवस्था, सुन्दर एवं सुदृढ़ सामाजिक व्यवस्था, सर्वजन कल्याणकारी चिन्तन तथा वैश्विक परिवार के दृष्टिकोण, यह विश्वगुरु की योग्यता का मापदंड है। यह मानक मापदंड प्राप्त करने वाला विश्वगुरु की परीक्षा में उत्तीर्ण हो जाएगा।
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🔴👉 दूसरी समस्या कैसे का हल आसान है कि हम योग्यता के मानक मापदंड को अंगीकार एवं आत्मसात कर ले। यह मानक मापदंड के सांचे में निर्मित एवं चलयमान गोष्ठी ही विश्वगुरु भारतवर्ष की उत्तराधिकारी है। शेष दिवा स्वप्न देख रहे जो हकीकत से टकराते ही टूट जाएगा।
🔴👉 विश्व मानव समाज की स्थापना एवं विश्व परिवार➡ विश्व सरकार की रचना ही विश्वगुरु के चिन्तन की परिपूर्णता है। जो आध्यात्मिक नैतिक मूल्यों के जागरण, सर्वजन सुखार्थ व हितार्थ सामाजिक आर्थिक चिन्तन, नव्य मानवतावादी सोच एवं जातिविहिन मानव समाज पर स्थापित होता है। जो आनन्द मार्ग के आंदोलन में उपलब्ध हैं।
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Karan singh rajpurohit
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