समाज आंदोलन शब्द का चयन करके हम निश्चित नहीं हो सकते है कि जैसा हम समाज आंदोलन को समझते है वैसा ही सभी समझेंगे। समाज के संदर्भ में भारतीय समाज में कुछ कुत्सित धारणाएँ भी विद्यमान है। उसका भी ध्यान समाज वालों को रखना होगा। हमारी इकाइयाँ सामाजिक एवं आर्थिक है। जहाँ मनुष्य का सामाजिक क्षेत्र है, वही आर्थिक क्षेत्र हो यही समाज आंदोलन की थीम है। अतः हमें भारतीय समाज, जातिप्रथा एवं समाज आंदोलन को समझना होगा ही।
भारतीय समाज - भरणपोषण एवं समग्र उन्नति को सुनिश्चित करने वाले भूभाग को भारतवर्ष नाम दिया गया है। यहाँ भारतवर्ष की प्राकृतिक संपन्नता हमें भरणपोषण एवं सामग्रिक उन्नति की गारंटी देता है। लेकिन बिना मानवीय संसाधन के यह गारंटी अधूरी रहती है। इसलिए भारतीय समाज को समझना आवश्यक है। प्राचीन भारतीय शास्त्रों में एक संगठित समाज की संरचना समझाई गई है। जिसमें कार्य विभाजन की वर्णव्यवस्था दिखाई देती है लेकिन भेदभाव सृष्ट करने वाली जातिभेद व्यवस्था दिखाई नहीं देती है। भारतवर्ष के सामाजिक इतिहास के अध्ययन की रिपोर्ट बताती है। जातिभेद की इस व्यवस्था के समक्ष इंसान को हैवान बनते देखा है। उसने मानवता का लहू चुषने में कोई कसर नहीं छोड़ी है। इसलिए भारतवर्ष में विद्यमान जातिप्रथा को समझना आवश्यक है।
जातिप्रथा :- जात शब्द का संबंध मनुष्य के जन्म से है जबकि वर्ण शब्द का संबंध कर्म से है। इसलिए जाति एवं वर्ण व्यवस्था को समकक्ष नहीं बैठा सकते हैं। जाति व्यवस्था की उत्पत्ति में अन्य कारकों के साथ व्यवसाय का संबंध रहा है। कई जातियों का निर्माण व्यवसाय के कारण हुआ है। लेकिन भारतवर्ष में अछूतता का जन्म राजनैतिक उठापेक्ष से हुआ है। विजेता राजाओं ने पराजित राजा के साउ उनकी सम्पूर्ण जनता के साथ किये गए अमानवीय व्यवहार का परिणाम है। जिसे उन्होंने अपने धूर्त विप्रों की मदद से धर्म में बिठा दिया। अतः जातिप्रथा में भेदभाव का जहर उगलने के लिए विजेता क्षत्रिय से अधिक यह कतिपय धूर्त विप्र ज्यादा जिम्मेदार है। इसलिए इन कतिपय धूर्त विप्रों को जातिप्रथा का जनक माना जाता है। जातिप्रथा का यह रोग भारतीय समाज के रगोरगो में भरा हुआ है। इसलिए भ्रम से जाति को ही समाज समझ लेते है। अतः समाज आंदोलन को आगे बढ़ाते समय इस पर भी नजर रखनी होगी।
समाज आंदोलन - समाज आंदोलन सामाजिक एवं आर्थिक इकाई को एक करके, आत्मनिर्भर इकाई बनाने की योजना का नाम है। यहाँ समाज अथवा सामाजिक शब्द का प्रयोग समान आर्थिक समस्या, समान आर्थिक संभावना, नस्लीय समानता एवं भावनात्मक एकता से निर्मित समाज के नागरिकों एक समूह है। जिसमें जाति एवं सम्प्रदाय का स्थान नहीं है। यह उस इकाई में रहने वाले सभी लोगों का समूह है। जो सर्वजन हिताय, सर्वजन सुखाय कार्यरत हैं। यह जरुरी है कि यहाँ समाज जिम्मेदारी सद्विप्रों पर डालता है। लेकिन कभी भी सद्विप्र निजीहित अथवा स्वार्थ में काम नहीं करेगा। इनके कार्य करने की पद्धति एवं नीति निर्माण की रीत सर्वजन हिताय, सर्वजन सुखाय ही होगी।
सद्विप्र - यह जाति बोधक शब्द नहीं है। यह शब्द योग्यता क बोध कराता है। जिसमें शूद्रोचित सेवा, क्षत्रियोचित्त वीरता, विप्रोचित ज्ञान तथा वैश्यचित्त जोखिम उठाने का साहस हो उसे सद्विप्र कहा गया है। जो भूमाभाव का साधक एवं यम नियम में प्रतिष्ठित होते हैं। षोडश विधि पर दृढ़ता से चलता है। इस प्रकार यह नीति निपुण आध्यात्मिक नैतिकवान व्यष्टि होता है।
समाज आंदोलन भारतीय समाज व्यवस्था एवं जातिप्रथा से अप्रभावित शुद्ध मानव समाज की ओर से चलाया गया एक शक्तिशाली आंदोलन है। जो आत्मनिर्भर समाजिक आर्थिक इकाई का निर्माण करता है।
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करण सिंह राजपुरोहित
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