महात्मा गाँधी बनाम नाथूराम गोडसे (Mahatma Gandhi vs Nathuram Godse)


भारतवर्ष की एक विचारधारा  एवं भारतीय युवाओं का एक दल नाथूराम गोडसे को महान बनाने तथा महात्मा गाँधी को निम्न दिखाने में तुला हुआ। उन्हें गाँधीजी और नेहरू जी बहुत जलन है। वे कभी गाँधीजी को सुभाषचंद्र बोस तो जवाहर लाल नेहरू को सरदार वल्लभ भाई पटेल से लड़ाते रहते हैं। उनके इस कार्य में राष्ट्रहित साधा जाता है अथवा नहीं यह स्वयं उनको भी मालूम नहीं है। भारतीय रंगमंच पर चल रहा यह कार्य निस्संदेह नव सृजन करेगा, ऐसा प्राकृत नियम है। गाँधीजी एवं नेहरू जी अपने संघर्ष एवं चुनौतियों में सफल हुए थे। उनको असफल करने वाली  गोली नाथूराम गोडसे बनकर बापू शरीर में उतरी थी। अहिंसा के इस पुजारी को चिरनिद्रा में सुला दिया। लेकिन नाथूराम गोडसे गाँधीवाद को नहीं मार सकें। आज गाँधीवाद को मारने का प्रयास चल रहा है। लेकिन गाँधीवाद विश्व पटल पर जगमगा रहा। इसलिए आज का विषय महात्मा गाँधी बनाम नाथूराम गोडसे लिया गया है। 

मैं गाँधी जी का बहुत आदर करता हूँ लेकिन नाथूराम गोडसे को राष्ट्रद्रोही, आतंकवादी अथवा बुरा व्यक्ति नहीं मानता हूँ। साथ नाथूराम गोडसे के द्वारा महात्मा गाँधी जी हत्या करने के कृत्य की भर्त्सना करता हूँ। 

गाँधी एक बहादुर व्यक्ति थे, मानवता के सच्चे मसीहा थे। उनके विचारों में लेशमात्र भी भेदभाव अथवा पक्षपात नहीं था। इसका अर्थ यह नहीं कि महात्मा गाँधी जी के विचारों में त्रुटि नहीं थी। उनके विचार त्रुटियां थी। उसके चलते उनकी हत्या करना किसी भी दृष्टि से उचित कदम नहीं था। यद्यपि मैं नाथूराम गोडसे को राष्ट्रद्रोही, आतंकवादी अथवा बुरा व्यक्ति नहीं मानता हूँ तथापि उसे महान नहीं मानता हूँ। उसका गाँधीवध कार्य निस्संदेह अच्छा कार्य नहीं था। उसके अन्य कार्य एवं विचारों में त्रुटियां भरी हुई थी।

नाथूराम गोडसे कट्टर हिन्दूत्ववादी एक कार्यकर्ता था। हिन्दूत्ववाद बुरा नहीं है।  हिन्दूत्ववाद की व्याख्या उसके प्रचारकों एवं विरोधियों ने गलत की है। हिन्दूत्ववाद का अर्थ भारतीयता है तथा भारतीयता वसुधैव कुटुम्बकम होने के कारण निस्संदेह महान है। जो सम्पूर्ण विश्व को सर्व भवन्तु सुखिनः का पाठ पढ़ाती है‌। ऐसा हिन्दू निस्संदेह महान है। लेकिन कतिपय मानसिक रुग्ण व्याख्याकार हिन्दूत्ववाद को जातीयता से जोड़ लेते हैं तथा अन्य जाति के प्रति नफरत उगलते रहते हैं। ऐसा हिन्दू निस्संदेह महान नहीं है। नाथूराम गोडसे द्वितीय श्रेणी का हिन्दू था। इसलिए उन्हें महान नहीं कहा जाता है। जबकि महात्मा गाँधी प्रथम श्रेणी के हिन्दू थे, इसलिए उन्हें महान कहा गया है। जाति एवं सम्प्रदायिक सोच में डुबा व्यक्ति कभी भी हिन्दू नहीं हो सकता है। हिन्दू एक महान संस्कृति का वहाक है। जैसा कि स्वामी विवेकानंद थे। इसलिए स्वामी विवेकानंद ने अपने को 'गर्व से कहो हम हिन्दू है' कहा था। स्वामी विवेकानंद निस्संदेह महान थे। उनके अंदर सम्पूर्ण जगत समाया हुआ था। यही भारतीय संस्कृति की पहचान है। लेकिन आजकल नफरती अंगारें यदि अपने महान हिन्दू कहते हैं, तो उन्हें देखकर शिवाजी एवं महाराणा प्रताप भी शर्मीदा हो जाते। महाराणा प्रताप तथा शिवाजी के मन में अपने महान संस्कार एवं संस्कृति का गर्व था लेकिन उन्हें कभी भी अन्य जाति से धृणा नहीं थी। यह संकीर्ण सोच के लोग महापुरुष का चरित्र हनन करने की नाकाम कोशिश कर रहे हैं।

महात्मा गाँधी के विचारों में त्रुटियां थी। सत्य एवं अहिंसा के संदर्भ में उनका दृष्टिकोण गलत था। लेकिन सत्य एवं अहिंसा की ताकत को पहचानना एक महान कार्य था। उनकी राष्ट्र को देन निस्संदेह महानता के तराजू में तौलने लायक है। महात्मा गाँधी आर्थिक आजादी के पक्ष में थे लेकिन ऐसी कोई योजना नहीं दे पाए। वे आर्थिक विकेन्द्रीकरण के पक्ष में थे लेकिन आर्थिक विकेन्द्रीकरण के रास्ते भारत बढ़ सके वैसी व्यवस्था नहीं दे पाए। हो सकता है कि महात्मा गाँधी भारतवर्ष को उस मूलाधार पर खड़ा कर लेते जिस पर प्राचीन भारतीय अर्थव्यवस्था खड़ी थी लेकिन दुष्ट ने उसके प्राण ही ले लिए। इसलिए अधूरा गाँधीवाद पढ़ना पड़ता है। पुरा गाँधीवाद गाँवों की विकासधारा में बैठा था जो गाँधीजी अपने जीवन काल में नहीं बैठा पाए‌। गाँधीवाद का अध्याय अधूरा रखवाने के लिए नाथूराम गोडसे को माफ नहीं किया जा सकता है। 

नाथूराम गोडसे अपनी संकीर्ण सोच में भटका हुआ नौजवान था। जिसने अल्प सोच में भारत को भटका दिया है। 

नाथूराम गोडसे के चरित्र एवं देश के प्रति निष्ठा में कोई कमी नहीं थी लेकिन सोच में त्रुटि थी। इसलिए नाथूराम गोडसे की पूजा नहीं की जा सकती है। खंडित मूर्तियों का विसर्जन कर दिया जाना चाहिए। 
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श्री आनन्द किरण "देव"
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