मतदाता की व्यथा

अब मैं जाऊँ कहा। 
आशाओं के दीप जलाऊँ कहा ।।
कांग्रेस अंधों का अखाड़ा है।
बीजेपी मूर्खों का महासागर है।।
जनता दल कलह का करोबार है।
कम्युनिस्ट मुर्दों का घाट है।।
अब मैं जाऊँ कहा। 
आशाओं के दीप जलाऊँ कहा।।
समाजवादी दबंगों का साम्राज्य है।
बसपा बहरों की बौछारें है।।
अकाली संकीर्णता का सरोपा है।
शिवसेना पागलों की पंचायत है।।
अब मैं जाऊँ कहा। 
आशाओं के दीप जलाऊँ कहा।।
टीडीपी त्रिशंकु के पुजारी है।
द्रमुक अवसरवादियों का आँफिस हैं।।
अन्ना द्रमुक धोखेबाजों की धड़ी है।
तृणमूल अंधेरे में मारा गया लट्ठ है।।
अब मैं जाऊँ कहा। 
आशाओं के दीप जलाऊँ कहा।।
केजरीवादी अराजकता की पुकार है।
लालुवादी लोकतंत्र का मजाक है।।
मोदी अधिनायकतंत्र की आवाज है।
शेष सभी स्वार्थ के सरोवर है।।
अब मैं जाऊँ कहा। 
आशाओं के दीप जलाऊँ कहा।।
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  कवि श्री आनन्द किरण ( करण सिंह शिवतलाव)
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