प्रउत का मूलभूत सिद्धांत

श्री आनन्द किरण "देव"

प्रउत का मूलभूत सिद्धांत ( मूल नीति) 
प्रउत का मूलभूत सिद्धांत प्रउत के अंतिम अक्षर त का प्रतिनिधित्व करता है। इसे प्रउत की भाषा में मूल नीति अथवा मूल सिद्धांत भी कहा जा सकता है। यहाँ सिद्धांत शब्द अंग्रेजी के प्रिन्सिपल(principle) शब्द के अर्थ में नहीं है। यह अंग्रेजी के थ्योरी (theory) शब्द के अर्थ में है। प्रउत के मूल सिद्धांत के दर्शन सर्वत्र है लेकिन सबसे अधिक स्पष्ट दर्शन 9 वें सूत्र में होते है। इसलिए अनुसंधान का प्रथम प्रयास यहाँ से ही होना चाहिए। 

(१.) युग के सर्व निम्न प्रयोजन, सबके लिए विधेय - प्रउत शब्द का अर्थ इस सूत्र से निकलता है। यह युग की सर्व निम्न प्रयोजन की सबके लिए आवश्यक मानता है। अन्न, आवास, वस्त्र, चिकित्सा तथा शिक्षा इत्यादि न्यूनतम आवश्यकता पर समाज के सभी नागरिक का अधिकार है। इससे किसी को भी वंचित रखना अधर्म व अन्याय है। इसलिए प्रउत समाज को स्पष्ट शब्दों में आदेश देता है कि व्यष्टि की न्यूनतम आवश्यकता पूर्ण करनी ही होगी तथा समाज की ओर से व्यष्टि को इस बात की गारंटी देनी होगी। अन्य शब्दों में व्यष्टि को समष्टि से इस बात की गारंटी लेने का अधिकार है। इस सूत्र की वजह से प्रउत ने अर्थशास्त्र के आदर्श, कल्याणकारी, व्यवहारिक, मानवीय एवं वैज्ञानिक स्वरूप को प्राप्त किया है। 

(२) प्रकृति के धर्म विचित्रता को अर्थव्यवस्था में स्थापित - प्रउत के 8 वें सूत्र में विविधता रुपी प्रकृति के धर्म को आर्थिक जगत में स्थापित किया गया है। चूंकि प्रकृति का धर्म भविष्य में अक्षुण्ण रहेगा इसलिए समान करने वाली अर्थनीति को स्वीकार नहीं किया गया है। यह सूत्र समाज में व्यक्ति की गरिमा का आदर करता है। यह व्यक्ति के आम व विशिष्ट स्वरूप को दिखाकर अर्थव्यवस्था का उसके अनुरूप संगठन करने की अवधारणा परोसता है। व्यक्ति की गरिमा सुनिश्चित होने के कारण व्यक्ति को नर से नारायण बनने के सभी अवसर देने वाला अर्थशास्त्र प्रउत के नाम से जाना जाएगा। 

(३.) गुणीजन का आदर - प्रउत के मूल सिद्धांत का तीसरा तत्व गुणीजन का आदर है। सबकी न्यूनतम आवश्यकता को पूर्ण करने के बाद जो अतिरिक्त संपदा रहेगी, उस पर गुणीजन का गुणानुपात में अधिकार है; यह बात प्रउत, अर्थशास्त्र से कहता है। यह विशेष योग्यजन के प्रति समाज की जिम्मेदारी को चित्रित करती है। जहाँ 8 वें प्रत्येक व्यक्ति की गरिमा सुनिश्चित हुई थी, वही 9 वें बिन्दु में समाज की आम आदमी के प्रति जिम्मेदारी सुनिश्चित की थी तथा 10 वें सूत्र में विशिष्ट व्यक्ति के प्रति समाज का उत्तरदायित्व बताया गया है। अत: यह तीनों सूत्र एक दूसरे से जुड़े हुए है। 11 वां सूत्र मूल नीति अथवा मूल सिद्धांत को प्रगतिशील बनाता है। 

 
(४.) समाज चक्र में मूल सिद्धांत - समाज चक्र का प्रत्येक बिन्दु सामाजिक आर्थिक संसार का मूलभूत अवयव है। जहाँ वर्ण प्रधान चक्र की गतिधारा अर्थशास्त्र की गतिकीय स्वरूप को रेखांकित करता है, वही सद्विप्र की केन्द्र में स्थिति स्थैतिक अर्थशास्त्र से परिचय करता है। स्वाभाविक परिवर्तन, क्रांति तथा विप्लव अर्थशास्त्र के वर्धमान आलेख की सरल व ऋजु रैखिक गति को समझाता है, परिक्रांति की अवधारणा वृतीय आलेख को समझने में मदद करता है तथा विक्रांति व प्रति विप्लव अर्थशास्त्र के हास मान आरेख को समझने तथा आर्थिक गति के मार्ग में आने वाली रुकावटों को समझता है। इसको समझ कर ही मूल नीति का निर्माण होता है। 

(५.) उपयोग सूत्रों में मूल सिद्धांत - प्रउत के मौलिक सिद्धांत(प्रिंसिपल) 12 वें 16 वें सूत्रों को घोषित किया गया है। मूल सिद्धांत अथवा मूलभूत सिद्धांत प्रउत की मूल नीति में दिखाई देती है। प्रउत का उपयोग का सिद्धांत जगत वस्तु व्यवहार की विधा है। इसका उद्देश्य व्यष्टि व समष्टि सुख को अधिकतम करना है। प्रउत की मूल नीति भी व्यष्टि व समष्टि सुख को अधिकतम करती है। उत्पादन, वितरण एवं धन सञ्चय के सिद्धांत को मूल सिद्धांत है। इसलिए उपयोग सिद्धांत में मूल सिद्धांत खोजना सार्थक प्रयास है। 

(७.) प्रगतिशील सिद्धांत में मूल नीति - प्रगति की मूल में अनन्त सुख की अभिलाषा रहती है। यह प्रउत का मूल उद्देश्य है। स्थूल जगत की ऋद्धि, सूक्ष्म तथा कारण जगत की सिद्धि व समृद्धि स्थापित करने में मददगार होता है। प्रगति की परिभाषा आध्यात्मिक लक्ष्य को प्राप्त करने में निहित है। प्रउत मनुष्य तथा उनके समाज को उस ओर ही ले चलता है। प्रगतिशील सिद्धांत में प्रउत का मूल सिद्धांत कूट-कूटकर भरा हुआ है। 

प्रउत का मूल सिद्धांत, प्रउत के 'त' समझने में मदद करता है। अंग्रेजी से प्रउत शब्द को उद्धृत करने के क्रम में विद्वान 'प्राउट' शब्द लिख कर बड़ी भूल करते है। उन्हें समझना होगा कि प्रथम अक्षर 'प्र' तथा अंतिम अक्षर 'त' चाहे वह हिन्दी हो अथवा अंग्रेजी। प्र से प्रगतिशील होता है, प्रा से नहीं; इसी प्रकार त से तत्व आया है, ट से नहीं । 
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श्री आनन्द किरण "देव"
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