(Toward Maha'vish'v from Kal'ya'n' kan'd'ra)
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(from Kal'ya'n' kan'd'ra to Maha'vish'v)
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✒ श्री आनन्द किरण "देव"
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मार्ग गुरुदेव ने आनन्द मार्ग का धर्म ध्वज कल्याण केन्द्र के हाथ में सौपा है। धर्म ध्वज की आन बान एवं शान की रक्षा करना तथा चारों ओर फैलाने की जिम्मेदारी कल्याण केन्द्र की है। कल्याण केन्द्र, वह केन्द्र है जहाँ आनन्द मार्ग का धर्म ध्वज प्रतिदिन प्रातः सूर्य की प्रथम किरण के साथ ध्वज आरोहण होता है तथा दिन भर गगन में लहराता हुआ इस विश्व धरा पर आनन्द की तंरगों को उत्साहित करता है। इस ध्वज को धारण करने वालों को विश्व व मानव समाज के प्रति उनके कर्तव्य का स्मरण करता है व कर्तव्य पथ निरंतर चलने की प्रेरणा देता है। संध्या वेला पर सूर्य की अन्तिम किरण के साथ ध्वज अवतरण किया जाता है। ध्वज दंड के गर्भ में रहते हुए ध्वज अनन्त व अविरल ऊर्जा के संचय की आवश्यकता की शिक्षा देता है। ध्वज धारक रात्रिकाल में स्वयं अगले दिन तैयार में लग जाने की शिक्षा कल्याण केन्द्र से प्राप्त करता है।
कल्याण केन्द्र में जो दृश्य प्रतिदिन प्रतिक्षण दिखाई देता है, वह धर्म ध्वज धारक को एक संकल्प याद दिलाता है - महाविश्व, महाविश्व और महाविश्व। महाविश्व, उस अवधारणा का नाम है, जहाँ भौतिक, मानसिक व आध्यात्मिक विकास के लिए संपूर्ण विश्व धरा एक परिवार सी भूमिका में रहे। इसे भारतीय संस्कृति में वसुधैव कुटुम्बकम के रुप में दिखाया गया था। सांस्कृतिक, सामाजिक आर्थिक, राजनैतिक, प्रशासनिक व ज्ञान विज्ञान इत्यादि सभी गतिविधियों का संचालन वैश्विक सोच व एक, अखंड अविभाज्य मानव समाज की आधारशिला पर हो, उसे महाविश्व नाम दिया गया है।
भगवान श्री कृष्ण ने सबसे पहले महाभारत की अवधारणा देकर मानव जाति को संकीर्ण सोच, चिंतन व मनन को त्याग कर एक भारतीय विचार पर संगठित किया था। पुनः युग की आवश्यकता के अनुकूल भगवान श्री श्री आनन्दमूर्ति जी ने महाविश्व का विचार दिया है। जहाँ देशिक, सामाजिक सोच को नव्य मानवतावादी सोच को बदला गया है। कल्याण केन्द्र जहाँ से महाविश्व की सोच का संकल्प पत्र लिखा जाता है, महाविश्व की सिद्धि कल्याण केन्द्र में लिखे गए संकल्प पत्र के यथार्थ स्वरूप का दर्शन है।
कल्याण केन्द्र से महाविश्व की ओर का विषय VSS की अवधारणा के एक अंग कल्याण केन्द्र के संचालन की आवश्यकता के प्रति आनन्द मार्ग परिवार के प्रत्येक अंग को तैयार करना है। ताकि आनन्द मार्ग का जगत हित का चरम बिन्दु महाविश्व भलिभांति समझा जा सकता है।
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✒ श्री आनन्द किरण "देव"
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