मनुष्य, मानव सभ्यता के उषाकाल से ही ब्रह्म,जगत एवं जीव विषय में जानने का उत्सुक रहा है। मनुष्य की इसी जिज्ञासा ने दर्शन (philosophy) को जन्म दिया है। इसीक्रम में समय समय पर विभिन्न दार्शनिकों ने ईश्वर, जगत एवं जीव के संदर्भ में अपने-अपने दृष्टिकोण से प्रकाशित किये हैं। भारतवर्ष में छ: आस्तिक तथा छ: नास्तिक दर्शन सहित कई सेमितीय दर्शन विकसित हुई। इसी प्रकार भारतवर्ष की भौगोलिक सीमाओं के बाहर भी युनानी, चाइनीज,अरबी, लैटिन, रोमन, युरोपीय इत्यादि दर्शन प्रकाश में आए। इन सबका अध्ययन करने पर पता चलता है कि सब में कुछ सामान्य है, तो कुछ वैचित्र्य भी दिखाई देता है। विभिन्न मत मतान्तर की भीतर आज का मनुष्य किंकर्तव्यविमूढ़ अवस्था में खड़ा हैं कि कौनसा दर्शन सत्य है? मनुष्य के इस प्रश्न ने उसके समक्ष धर्मसंकट पैदा कर दिया है। धर्मसंकट की इस घड़ी में मनुष्य को दुविधा से निकालने के लिए विभिन्न विद्वानों, संतों, साधुओं, महात्माओं, आचार्यों, तात्विकों तथा पुरोधाओं ने कोशिश की, लेकिन उनके द्वारा जितना अधिक प्रयास किया गया उतना ही अधिक व्यक्ति इन प्रश्नों के मायाजाल में उलझता ही गया। इसलिए तारक ब्रह्म श्री श्री आनन्दमूर्ति जो ने मनुष्य पर अहैतुकी कृपा कर मनुष्य को आनन्द मार्ग दर्शन दिया। जो अपने आप में सम्पूर्ण दर्शन है। इसलिए इसकी किसी भी दर्शन से तुलना में नहीं की जा सकती है। अतः कहा गया है कि आनन्द मार्ग दर्शन अद्वितीय है (Anand Marg philosophy is unique)।
आनन्द मार्ग को सनातन हिन्दू मत की नूतन परंपरा अथवा हिन्दू वैदिक मत का सातवां दर्शन कहना एक गलत अभिमत है। शिव की भाषा में इन्हें लोकव्योमोहकारक कहा जाता है। सभी आनन्द मार्गियों को इन मायावियों से सावधान रहना चाहिए। इसका सीधा अर्थ है कि आनन्द मार्ग दर्शन को पढ़ा लेकिन मनन नहीं किया। मैं अपनी व्यक्तिगत राय में इसे बौद्धिक दिवालियापन ही कह सकता हूँ। अपढ़ से कुपढ़ अधिक खतरनाक होते हैं। अपढ़ तो स्वयं को ही गर्त में ले जाता है जबकि कुपढ़ समाज को गर्त में धकेलने की चेष्टा करते हैं। अतः सभी को श्री श्री आनन्दमूर्ति जी की पथनिर्देशना में आगे बढ़ना चाहिए। श्री श्री आनन्दमूर्ति जी बताते हैं कि आनन्द मार्ग मनुष्य मात्र का मार्ग है। यह सभी मनुष्य की जरूरत एवं कल्याण को देखकर बनाया गया है। इसलिए आनन्द मार्ग सम्पूर्ण मानव समाज की धरोहर है। इसे किसी मत, पथ अथवा सम्प्रदाय से जोड़ने अथवा उसका अंग बताने का प्रयास एक अविचार अथवा कुविचार है। आनन्द मार्ग दर्शन किसी परंपरा का अनुगामी नहीं है। यह तारकब्रह्म की युग के लिए दी गई, विशुद्ध नूतन अवधारणा है। इसलिए आनन्द मार्ग दर्शन अपने आप में अद्वितीय है।
अब हम यह समझने की कोशिश करेंगे कि आनन्द मार्ग दर्शन कैसे अद्वितीय है?
यह सत्य है कि दर्शन के क्षेत्र में आनन्द मार्ग पहली एवं आखिर परंपरा नहीं है लेकिन यह भी सत्य है कि यह किसी परंपरा के कोख से निकली परंपरा भी नहीं है। इस दर्शन के विकास के क्रम में संस्कृत भाषा की शब्दावली का आना तथा विश्व के किसी दार्शनिक से शब्दावली का मेल खाना, यह नहीं दर्शाता है कि उस खास परंपरा का विकास करने के लिए आनन्द मार्ग आया है। आनन्द मार्ग दर्शन ने स्वयं अपनी उद्घोषणा की है। इसने दुनिया के किसी भी मत, पथ एवं सम्प्रदाय के द्वारा अपनी उद्घोषणा नहीं कराई है। अतः आनन्द मार्ग दर्शन को किसी परंपरा का परिमार्जित स्वरूप अथवा वाहक करना गलत है। आनन्द मार्ग दर्शन पर समस्त मनुष्य मात्र का समान अधिकार है अथवा आनन्द मार्ग, इस चराचर जगत के सभी मनुष्य का अपना दर्शन है। अतः आनन्द मार्ग दर्शन अद्वितीय दर्शन है।
सृष्टि के रहस्य को सुलझाने की पहली गुथी ऋग्वेद के नासदीय सुक्त में मिलती है। उसके पश्चात विश्व के सभी क्षेत्र में इस गुथी को सुलझाने का प्रयास हुआ है। इसलिए दर्शन शास्त्र को किसी एक देश अथवा सोसायटी की धरोहर नहीं मानी जा सकती है। आज के युग में सम्पूर्ण मानवता को एक सूत्र में पिरोने के लिए एक विशुद्ध दर्शन की आवश्यकता है, जो आनन्द मार्ग दर्शन है। इसमें किसी भी एक अथवा एकाधिक विचारधारा का प्रभाव नहीं है, जो सत्य तथा मानव कल्याणकारी है, उसे विश्व के समक्ष रखा है; यदि सत्य तथ्य कई से मिल जाए तो उसको लेने से उस विशेष परंपरा का विकसित रुप नहीं माना जाता है। संस्कृत भाषा किसी सम्प्रदाय अथवा भौगोलिक क्षेत्र की धरोहर नहीं है। यह भाषा सम्पूर्ण मानव जाति के लिए आई है। अतः दर्शन के विकास में इस शब्दावली का प्रयोग होना वैश्विक सोच तथा नव्य मानवतावादी चिन्तन को कमजोर नहीं करती है। अतः आनन्द मार्ग दर्शन एक अद्वितीय दर्शन है।
दर्शन की भारतवर्ष में दो परंपरा दिखाई देती है। प्रथम वेद सहमत तथा दूसरी वेद से पृथक। भारतवर्ष में वेद सहमत परंपरा को आस्तिक तथा वेद से पृथक परंपरा को नास्तिक दर्शन कहा गया है। आस्तिक दर्शन की पंक्ति में महर्षि कपिल का सांख्य दर्शन, महर्षि पतंजलि का योगदर्शन, महर्षि कणाद का वैशेषिक दर्शन, महर्षि गौतम का न्याय दर्शन, महर्षि जैमिनि का पूर्वमीमांसा दर्शन तथा महर्षि बदरायण व्यास एवं उनके अनुगामी प्रतिगामियों का वेदांत दर्शन है, इसे उत्तर मीमांसा के नाम से भी जाना जाता है। इसी प्रकार नास्तिक दर्शन में जैन, बौद्ध, चार्वाक, अज्ञान, भौतिक एवं अभाव इत्यादि छ: दर्शन की परंपरा है। आनन्द मार्ग दर्शन न तो वेद सहमत हैं तथा न ही वेद से पृथक है। इसलिए आनन्द मार्ग दर्शन को इस पंक्ति में खड़ा रखना एक धृष्टता ही है। आनन्द मार्ग दर्शन सभी अच्छाइयों का समावेश है। जो आस्तिक परंपरा से मिले अथवा नास्तिक परंपरा से मिले। वह भारत से मिले अथवा भारतवर्ष के बाहर से मिले। अतः आनन्द मार्ग दर्शन को अद्वितीय कहना ही न्याय है।
'दर्शन के विकास' में हम विभिन्न दर्शन के अन्दर निहित विषय पर सामान्य चर्चा करेंगे, लेकिन फिलहाल यह विषय नहीं है। आज का विषय आनन्द मार्ग एक अद्वितीय दर्शन है। इसलिए किसी भी दर्शन की गहराई में नहीं जाएंगे। भारतवर्ष के बाहर यूनान, चाइना, अरब, रोम तथा यूरोप इत्यादि में भी दर्शन का आलोक मिलता है। अतः दर्शन भारतवर्ष की धरोहर नहीं कह सकते हैं। दर्शन शास्त्र में अध्ययन की सुविधा के लिए पूर्वी एवं पाश्चात्य दर्शन की परंपरा के कह पढ़ाया जाता है। आनन्द मार्ग दर्शन सम्पूर्ण सृष्टि के लिए अतः इसको पूर्व एवं पश्चिम में नहीं रखा जा सकता है। इस दृष्टि से भी आनन्द मार्ग दर्शन अद्वितीय है।
आनन्द मार्ग दर्शन विज्ञान, कला, संस्कृति एवं धर्म को स्वीकार करता है। अतः आनन्द मार्ग विश्व का एक मात्र ऐसा दर्शन है, जो अपने आप में सम्पूर्ण दर्शन है। जानकारी के लिए बता दिया जाए कि भारतवर्ष आस्तिक दर्शन की मात्र तीन ही परंपरा है। क्योंकि सांख्य एवं योग दर्शन एक दूसरे के पूरक हैं। वैशेषिक एवं न्याय दर्शन एक दूसरे के पूरक है। तथा पूर्व मीमांसा तथा उत्तर मीमांसा एक दूसरे के सहायक है। अतः इसको छ: नहीं तीन दर्शन कहना ही न्याय है। वेदांत दर्शन तो पूर्णतया वेदांग पर आश्रित है। इसके अलावा भी अन्य दर्शन कई न कई वेद पर आश्रित हो ही जाते हैं। इसके विपरीत नास्तिक दर्शन की परंपरा भी कई जाकर यही प्रमाणित करती है कि ईश्वर नहीं है। मात्र शब्दों के मायाजाल के कारण अलग-अलग दिखाई देते हैं। जबकि आनन्द मार्ग दर्शन ईश्वर के शुद्ध स्वरूप को दिखाता है तथा सृष्टि के विकास को एक वैज्ञानिक रीति से प्रकाशित करता है। इसलिए मैं दृढ़ता पूर्व कहता हूँ कि आनन्द मार्ग एक अद्वितीय दर्शन है (Anand Marg is an unique philosophy) ।
यह प्रमाणित होता है कि आनन्द मार्ग दर्शन विशुद्ध नूतन दर्शन है। जो किसी निश्चित परंपरा के विकास के लिए नहीं आया है। अतः आनन्द मार्ग को सनातन हिन्दू मत की नूतन परंपरा अथवा हिन्दू वैदिक दर्शन का सातवां दर्शन कहना अयुक्तिकर है। इसलिए इन वाक्यांश को पुर जोर से यह आलेख विरोध कर अपनी इतिश्री में लिखता है। आनन्द मार्ग दर्शन अद्वितीय है (Anand Marg philosophy is unique)।
[श्री] आनन्द किरण "देव"
बहुत सुंदर दादा जी ! बाबा नाम केवलम् 🔯🌹🙏🏻
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