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श्री प्रभात रंजन सरकार ने बताया कि पृथ्वी पर अर्थव्यवस्था की एक क्रमिक गति है। प्रारंभ में स्व-केन्द्रित दर्शन (Self-centred Philosophy) आता है। जो मात्र स्वयं के बारे में सोचता है। जिसके चलते समाज में वर्गसंघर्ष पैदा होता है तथा स्व-केन्द्रित दर्शन की जगह पदार्थ-केन्द्रित दर्शन (Matter-centred philosophy) ले लेता है। पदार्थ के बारे में सोचते सोचते समाज में भावजड़ता (Dogma) के प्रभुत्व में विस्तार होता है तथा पदार्थ-केन्द्रित दर्शन की जगह भावजड़ता-केन्द्रित दर्शन (Dogma-centered philosophy) ले लेता है। यह अपने मत मतान्तर को प्रभुत्व दिलाने के लिए आपस में लडते है। यह लडाई नरम, गरम, छद्म एवं रक्तरंजित भी होती है। जिसके चलते समाज ईश्वर-केन्द्रित मानसिकता तैयार होती है तथा भावजड़ता-केन्द्रित दर्शन की जगह ईश्वर-केन्द्रित दर्शन (God-centered philosophy) लेता है। यही सामाजिक-आर्थिक मनोविज्ञान एवं समाजिक-आर्थिक विज्ञान का सिद्धांत है। अतः मनुष्य को इस यथार्थ को जानकर अपने लिए तथा अपने समाज के व्यवस्था निर्माण में लग जाना चाहिए।
यद्यपि हमें इन चारों दर्शन का विस्तृत अध्ययन करना चाहिए तथापि हम आज मात्र भावजड़ता-केन्द्रित दर्शन (Dogma-centered philosophy) का ही अध्ययन करेंगे। क्योंकि प्रथम दोनों इतिहास बन चुकी है तथा अन्तिम भविष्य की विषय वस्तु है। अतः वर्तमान वर्तते (live in the present) के सिद्धांत का अनुसरण करते हुए आज चर्चा में भावजड़ता-केन्द्रित दर्शन (Dogma-centered philosophy) को ही लेंगे।
आज विश्व में भावजड़ताओं के बीच में युद्ध छिड़ा हुआ है। यह युद्ध एक दूसरे पर घात प्रतिघात के मध्य से आगे बढ़ता है। यह साम्प्रदायिक, जातिवाद, क्षेत्रीयता, नक्सलवाद, उग्रवाद, आतंकवाद, प्रदेशवाद, राष्ट्रवाद एवं मजहबवाद के नाम से दृश्य होता है। यह सभी मनुष्य के भावजड़ता का परिणाम है। अतः इसका परिणाम भी तथाकथित भावजड़ता में आबद्ध मनुष्य को भुगतान ही पडेगा। सामाजिक भाव प्रवणता (Socio-Sentiment) तथा भौम भाव प्रवणता (Geo-Sentimen) मनुष्य की बुद्धि को इन भाव प्रवणता में जकड़ रख देता है। उनके सोचने क्षमता मात्र भौगोलिक एवं सामाजिक सीमाओं तक सीमित हो जाती है। जिसके परिणामस्वरूप पृथ्वी पर भावजड़ताओं के बीच में लड़ाइयाँ देखने को मिलती है। इसके विकराल हाथों से बचाने के तथाकथित मानवतावाद आगे आता है। लेकिन मानवतावाद भी मनुष्य का कल्याण नहीं कर पाता है। बुद्धि की मुक्ति के लिए मानवतावाद कभी कारगर नहीं है। अतः मनुष्य की बुद्धि की मुक्ति के लिए श्री प्रभात रंजन सरकार ने नव्य मानवतावाद (Neo humanism) नामक अवधारणा दी है। चूंकि आज हमारा विषय नव्य मानवतावाद नहीं है इसलिए इस चर्चा नही करेंगे तथा भावजड़ताओं के बीच युद्ध देखने के लिए चलते हैं।
दो राष्ट्रों की टकराव के भीतर प्रदेशवाद जन्म होना स्वाभाविक है। उदाहरण स्वरूप सोवियत संघ का विघटन ले सकते हैं। अतः राष्ट्रवाद आज के विश्व के लिए कारगर नहीं है। प्रदेशवाद में क्षेत्रवाद की तलवारें निकल कदाचित अस्वभाविक नहीं कहा जा सकता है। यह भौम भाव प्रवणता (Geo-Sentimen) का भविष्य है। यह भावजड़ताओं की लड़ाई का प्रथम क्षेत्र है। द्वितीय इसे थोड़ा बड़ा अथवा छोटा जाति, नकस्ली, साम्प्रदायिक, रंगभेद तथा नस्लीयता का संघर्ष है। आज मजहब के आधार पर राष्ट्र गठन करने का स्वप्न देखने वाले जाति, सम्प्रदाय, वर्ग, श्रेणी एवं गोत्र के संघर्ष करने से छूटकारा नहीं पा सकते हैं। जातिगत एवं सामाजिक वर्गगत संघर्ष इसका ही परिणाम है। यही सामाजिक भाव प्रवणता (Socio-Sentiment) की नियति है। यह भावजड़ताओं की लड़ाई का दूसरा दृश्य है। तथाकथित मानवतावाद का मानव केन्द्रित कर एकात्मक मानववाद, उदार मानववाद तथा अन्य मानववाद में प्रणीत हो जाते हैं। यह प्रकृति, पर्यावरण, जन्तु जगत, वनस्पति जगत एवं पराभौतिक सत्ता की ओर ध्यान नही दे पाते हैं तथा मानव को एक नूतन प्रकार की भावजड़ता में बंद कर देते हैं। इसमें घूटता मानव अवसर पाते ही भावजड़ताओं के बीच चल रहे संघर्ष में कूद जाता है। अतः भावजड़ता-केन्द्रित दर्शन (Dogma-centered philosophy) मनुष्य के लिए अच्छी नहीं है। जो अच्छी नहीं वह कदापि सच्ची भी नहीं है। अतः मनुष्य को प्रगतिशील उपयोग तत्व को खोज निकालना चाहिए एवं अर्थव्यवस्था ही सम्पूर्ण समाज व्यवस्था को ईश्वर-केन्द्रित दर्शन (God-centered philosophy) की ओर ले चलना चाहिए। अतः यह घोषणा असिद्ध करनी चाहिए कि मनुष्य एक आर्थिक प्राणी है तथा उससे स्थान पर एक नूतन घोषणा करनी चाहिए कि मनुष्य एक आध्यात्मिक प्राणी है। वह आत्मसाक्षात्कार करना चाहता है। इसलिए वह अपने लिए ईश्वर-केन्द्रित दर्शन (God-centered philosophy) लेकर आया है। इसी आध्यात्मिक साधना के लिए शरीर की जरूरत है, शरीर की रक्षा के लिए जगत की सभी व्यवस्था को ईश्वर-केन्द्रित दर्शन (God-centered philosophy) पर स्थापित कर सुव्यवस्था का निर्माण करेगा।
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