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आनन्द किरण
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सामाजिक आर्थिक दर्शन एवं व्यवस्था प्रउत के स्थापना की जिम्मेदारी प्राउटिस्ट यूनिवर्सल (PU) की है। यह आनन्द मार्ग प्रचारक संघ के जनसम्पर्क सचिव (PRS) के निर्देशन में चलने वाली एक संस्थान है। PU अपना काम पंच फेडरेशन एवं समाज आंदोलन के द्वारा आगे बढ़ाएगा। प्रउत प्रणेता ने PU की जिम्मेदारी पूर्णकालिक कार्यकर्ताओं (WTs) पर डाली है जबकि पंच फेडरेशन एवं समाज आंदोलन की जिम्मेदारी गृही कार्यकर्ताओं पर डाली है। PU कोई भी प्रत्यक्ष पब्लिक कार्यक्रम नहीं करता है। उसके कार्यक्रम पंच फेडरेशन अथवा समाज आंदोलन के माध्यम से संपन्न होते हैं। अतः PU के ऊपर फेडरेशन को नियंत्रित, नियमित एवं निर्देशित करने की जिम्मेदारी है। लेकिन किसी भी प्रकार से फेडरेशन अथवा समाज आंदोलन के पब्लिक कार्यक्रम में प्रत्यक्ष एवं अप्रत्यक्ष रूप से भाग लेने का दायित्व, अधिकार एवं जिम्मेदारी PU की नहीं है। प्रउत प्रणेता के आंदोलन की पृष्ठभूमि, रुपरेखा एवं दिशानिर्देश से ज्ञात होता है कि PU की एक मात्र जिम्मेदारी फेडरेशन तथा समाज आंदोलन के लिए कार्यकर्ताओं को प्रशिक्षण देना तथा आंदोलन के लिए तैयार करना है। यहाँ आकर PU की जिम्मेदारी प्रथम दृष्टया समाप्त हो जाती है। आगे की जिम्मेदारी, उत्तरदायित्व एवं नेतृत्व करने का कार्य फेडरेशन एवं समाज आंदोलन के कार्यकर्ताओं का है। अतः PU के कार्यकर्ताओं को पर्दे पर न आकर पर्दे के पीछे रहकर फेडरेशन एवं समाज आंदोलन को संसाधन उपलब्ध कराने का कार्य दिया गया है। यह PU की द्वितीय जिम्मेदारी एवं भूमिका है। अतः पब्लिक कार्यक्रम से PU के कार्यकर्ताओं को फेडरेशन एवं समाज आंदोलन दोनों ही कार्यक्रम में आगे नहीं आना चाहिए। PU के कार्यकर्ताओं के लिए यह त्याग की परिभाषा स्वयं प्रउत प्रणेता के प्रउत विचारधारा एवं आंदोलन की अवधारणा में स्पष्ट झलकता है। प्रउत की विचारधारा नेतृत्व का दायित्व सद्विप्र बोर्ड को देता है। वही भविष्य में समाज का नेतृत्व, निदेशन एवं नियमन करेगा। एक सद्विप्र को आदर्श गृहस्थ होना आवश्यक है। यह चर्याचर्य के भुक्ति प्रधान चुनाव प्रक्रिया के अवलोकन की ओर ले जाता है, जहाँ सदविप्र अपने बीच में से एक भुक्ति प्रधान चुनेंगे। भुक्ति प्रधान आचार्य व तात्विक नहीं भी हो सकता है लेकिन एक शिक्षित गृही होना आवश्यक है। अर्थात सद्विप्र की परिभाषा में सम्पूर्ण खरा कार्यकर्ता गृही हैं। अर्थात सद्विप्र शब्द गृही कार्यकर्ताओं के लिए ही है। सैद्धांतिक दृष्टि से सन्यासी सद्विप्र शब्द की परिभाषा से ऊपर एवं अलग है। अब आंदोलन की ओर दृष्टि ले जाते हैं तो आंदोलन के दोनों ही अंग फेडरेशन एवं समाज आंदोलन गृहस्थ को लेकर तैयार होते हैं। इसलिए सन्यासियों की अवहेलना किये बिना गृहस्थों को प्रउत के लिए कमर कसनी ही होगी। PU के पदाधिकारियों (WTs) का काम प्रउत के आंदोलनकारियों को प्रशिक्षण देना है तथा गृहियों का काम इसे मूर्त रुप देना है।
पंच फेडरेशन - विद्यार्थी, युवा, मजदूर, किसान एवं बुद्धिजीवी संघ सरकारी, अर्द्ध सरकारी, गैर सरकारी एवं निजी संस्थानों से समन्वय बनाकर तथा साथ चलकर सम्पूर्ण व्यवस्था को प्रउत आधारित बनाने की मांग को बुलंद करेगा तथा दबाव बनाकर अथवा सीख देकर चलने के लिए तैयार करेगा। यह सभी कार्य पंच फेडरेशन के कार्यकर्ताओं को ही करना होगा। इसलिए यथासंभव गृही का ट्रेड नहीं बदलता है।
समाज आंदोलन - समाज को नूतन व्यवस्था देने का काम सामज आंदोलन का है। यह प्राउटिस्ट सर्व समाज समिति एवं सामाजिक आर्थिक इकाइयों के माध्यम से प्रउत आधारित व्यवस्था उपलब्ध कराएगा। यह प्रउत व्यवस्था पर ठीक ढंग से चले इसलिए समाज आंदोलन के भीतर भी समाज की पंच शाखा को स्थापित किया गया है। यह समाज की रचनात्मक इकाइयों को प्रउत के डगर पर स्पष्ट रूप से चलने का प्रावधान देता है तथा डगर से भटकने नहीं देगा। अतः समाज आंदोलन का सैद्धांतिक एवं व्यवहारिक दोनों ही पक्ष है। शत-प्रतिशत रोजगार की गारंटी के लिए स्थानीय क्षेत्र का औद्योगिक विकास करेगा, कृषि, उद्योग व्यापार इत्यादि को प्रउत आधार पर चलाएगा तथा आंदोलन कर समाज को इस चलने के तैयार करेगा।
PSS - PSS सामाजिक आर्थिक इकाइयों को संगठित करने, सहयोग करने एवं समन्वित कार्य योजना तैयार करने के लिए मंच देने का कार्य करेगा। भविष्य में विश्व सरकार एवं राष्ट्रीय सरकारों का स्वरूप भी तैयार करने के लिए PSS की भूमिका है। यह भी शुद्ध गृही संगठन है।
सद्विप्र - विश्व सरकार, राष्ट्रीय सरकार, राज्य सरकार, जिला, तहसील एवं पंचायत निकाय को नेतृत्व देने के लिए दृढ़ संकल्पित व्यष्टि है। जो यम नियम में प्रतिष्ठित एवं भूमाभाव का साधक होगा। सरकार के नेतृत्व का दायित्व नि:संदेह गृही को ही दिया गया है। सन्यासी वर्ग को प्रउत प्रणेता द्वारा सरकार या सत्ता संचालन से दूर रखा गया है।
प्रउत की स्थापना की सम्पूर्ण जिम्मेदारी सन्यासी पर होने पर भी वह त्यागमूर्ति के रूप में अवस्थित रहेगा। वह कभी राजभोग अथवा सत्ता सुख नहीं भोगेगा। उन्हें तो सदैव साधना, सेवा एवं त्याग के पथ पर ही चलना है। अतः गृही एवं सन्यासी दोनों ही अपने कर्तव्य एवं भूमिका को समझकर प्रउत की स्थापना में सहयोग दे तथा अपने उत्तरदायित्व का उचित निर्वहन करें। सन्यासी इनडोर तथा गृही आउटडोर आन्दोलन की जिम्मेदारी लें तथा इसे प्रतिफलित करें। यही प्रउत विचारधारा एवं आंदोलन का मूल है।
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