अंकल मुझे मुसलमान नहीं बनना....
        
रोता बिलखता मेरा 12 वर्षीय भतीज कृष्ण मेरे पास आकर कहने लगा कि मेरे कानों का छेदन करवाओं
अन्यथा में अगले जन्म में मुसलमान बन जाऊँगा। मैनें कृष्ण को ढढास बंधवाते कहा कि इस कपोल कल्पित
बातों पर तु विश्वास मत कर । उसका रोना फिर से जारी रहा एवं रोते-रोते मुझसे कहा कि भगवान करें आपने
कहा वह बात शत प्रतिशत सत्य हो, पर यदि मैं मुसलमान बन गया तो बहुत बड़ा पाप हो जाएगा। मेरे ज्ञान को
चुनौती देने वाला प्रश्न एक नौनिहाल के मुख सुन कर में सज्जनों की भाषा में कहा बेटे मुसलमान बनने में क्या
हर्ज है। मुसलमान ही सही कम से कम इंसान तो बन जाएंगे । इस पर कृष्ण ने तापाक जबाव दिया - नहीं नहीं
और नहीं। मैं कुछ भी बन सकता हूं लेकिन मुसलमान नहीं। मैने बाल मन की पीड़ा जानने का प्रयास किया। 
मैनें कहा कि मुसलमान बनने में क्या बुराई है ? उसने तुरन्त जबाब दिया कि बुराई तो कुछ नहीं लेकिन एक
मुसलमान लाख प्रयास करे तो भी भगवान (अल्लाह) नहीं बन सकता है। एक सच्चा भागवत अपनी कर्म साधना के    बल पर परम तत्व को प्राप्त कर सकता है।
        
        मैने कहा नहीं, नहीं ऐसा कुछ भी नहीं सत्य सर्वत्र व्याप्त है। तुम कुरान ए शरीफ़ एवं मोहम्मद साहब के संदेश को पढ़ चिन्ता मग्न मत हो, सूफी परंपरा में आध्यात्म की गहराइयों का स्मरण है। सूफ़ी अल्लाह तक पहुंच की सच्ची राह है। अंकल में इतनी बड़ी बातें तो नहीं जानता पर आज तक एक भी सूफी इस्लाम अल्लाह के रूप में गण्य हुआ हो बताओ । मेरे पास बाल मन को उदाहरण देने के लिए कोई पात्र नहीं था फिर अचानक मेरा ध्यान साई बाबा की ओर गया मैनें कृष्ण से कहा कि देखो साई बाबा इस्लाम में होते हुए भी भगवान बने। कृष्ण ने मुस्कुराते हुए कहा साई को ईश्वर हम भागवत धर्मियों बनाया है,  यदि वे इस्लाम का दामन ही थामें बैठे होते तो किसी ख्वाजा की तरह दरगाह में दफ़न होकर कयामत की रात की इंतजार करते होते। अपने पुरुषार्थ की बली देने को विवश होना पड़ता। भागवत धर्म ही तो पुरुषार्थ के बल पर परम तत्व तक पहुंचने की बात करता है। कृष्ण की ज्ञान भरी बातों ने मुझे कीकर्तव्यविमुढ स्थिति में लाकर खड़ा कर दिया। मैंने कृष्ण को ईसा मसीह के कृपावाद, बुद्ध के शून्यवाद, महावीर की जिन धारणा, सनातन के मिथ्यावाद एवं अन्यन की अपूर्णता में उलझाना उचित नहीं समझा। मैनें कृष्ण से वेदों की प्रकृति पूजा पर प्रश्न नहीं किया क्योंकि रहस्यवाद की इस प्रथम खोज में उपस्थित ब्रह्म विज्ञान से ही तो हमें उपनिषदों का दर्शन ज्ञान प्राप्त हुआ है। इसे चरम सत्य मानने की बजाय आध्यात्मिक खोज का क्रमिक विकास मानना ही सत्य के साथ किया गया न्याय है। मैनें कृष्ण को हिन्दूओं के अवतारवाद की ओर ले जाकर प्रश्न किया कि पूर्णत्व तो जन्म लेता, पुरुषार्थ योग तो गीता के उपदेश के ध्वज तलें दब गया है। कृष्ण मेरे प्रश्न का सिधा उत्तर देने की बजाय मेरे से प्रश्न किया कि ब्रह्मा को सृजन का कार्य दिया है, विष्णु को पालन तो महेश को संहार की शक्ति प्रदान है लेकिन हिन्दू अवतारों में राक्षसों के संहारक के रुप में विष्णु को दिखाया गया है महेश को तो राक्षसों के आराध्य के रूप में दिखाया है, जो इनको मन चाह वरदान दे देते हैं । अंकल अवतारवाद तो यही पर घुटने टेक लेता है। मैनें कृष्ण की आँखों में गीता में पूर्णत्व के आगमन की घोषणा को वैष्णव एवं शैव के भेद से ऊपर विशुद्ध भागवत दर्शन को देखा जो पुरुषार्थ को दफ़न किये बिना पूर्णत्व के साक्षात्कार को स्वीकार करता है। विष्णु का कोई भी अवतार पूर्ण नहीं है क्योंकि विष्णु में ब्रह्मा एवं महेश की शक्ति नहीं समा सकती है। विष्णु में दोनो समेलित करने का प्रयास करे विष्णु अस्तित्वहीन हो जाएगा। हिन्दूओं का देवतावाद भी पूर्णत्व को छु ही नहीं सकता है। पूर्णत्व एवं पुरुषार्थ की इस जंग में धर्म की ग्लानि, अधर्म का उत्थान, साधुओं का परित्राण एवं दुष्टों का विनाश के प्रश्नों पर कृष्ण को घेरना बाल मन के साथ कपटता खेलना है। पूर्णत्व पुरुषार्थ से प्राप्त किया जाता है, तो पूर्णत्व का महासम्भुति काल पुरुषार्थ की शिक्षा देने वाला गुरु युग हैं। कृष्ण के प्रश्न भागवत धर्म जो मानव धर्म है को समझने पर बल देता है। भागवत धर्म पंथवाद एवं मतवाद से ऊपर विशुद्ध मानव धर्म है। यही साधना मार्ग आनन्द मार्ग हैं।
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लेखक -- श्री आनन्द किरण (करण सिंह) शिवतलाव

December 20, 2015 at 12:59pm ·

 क्या धरती पर स्वर्ग आ सकता है?
🔴 विश्व के सभी धर्म दर्शन, व्यक्ति के लिए एक सुन्दर एवं सुन्दरतम् परिवेश स्वर्ग की अभिकल्पना की गई है। इसकी सत्यता को परखना हमारा विषय नहीं है। हमारा विषय सभी प्रकार के सुख, समृद्धि एवं खुशहाली का जो स्वप्न धर्म दर्शन में दिखाया गया है। वह परिदृश्य धरती की कठोर माटी पर स्थापित हो सकता है अथवा नहीं। एक नकारात्मक सोच का व्यक्तित्व इस उत्तर नहीं में देकर अपने उत्तरदायित्व से मुक्त हो जाता है लेकिन मैं एक आशावादी हूँ, इसलिए सकारात्मक जगत को देखता हूँ। जिस परिदृश्य की अभिकल्पना मानव के मन में सृजित हुई है। वह कठोर से कठोरत्तम परिक्षेत्र में फलीभूत हो सकती है। मनुष्य ने अपने मेहनत के बल पर असंभव कार्य को संभव बनाकर दिखाया है। पौराणिक कथाओं में कहा गया है भागीरथ ने अपने तपस्या के बल पर गंगा को स्वर्ग से धरती पर खींच कर ले आए थे। मैंने पहले ही स्पष्ट कर दिया है कथाओं की सत्यता परखना मेरा विषय नहीं है। मेरा विषय हर उस प्रयास एवं शिक्षा का उपयोग कर मनुष्य के स्वप्न के परिदृश्य साकार रूप संभव होने की संभावनाओं की खोज करना है। जब इस देश का एक भागीरथ सफल हो सकता है तो स्वर्ग धरती पर आ सकता है।
🔴👉 धरती पर स्वर्ग आना असंभव नहीं है। इसलिए स्वर्ग देखना भी हमारे लिए आवश्यक है। स्वर्ग कैसा तथा कैसा दिखता है। स्वर्ग को शास्त्रों में एक आनन्दायी परिदृश्य बताया गया है। जिसमें व्यष्टि की इच्छा मात्र से सभी कार्य संभव हो जाते हैं तथा इच्छित वस्तु प्राप्त हो जाता है। मनुष्य की चाहता भी कदाचित यही है। इस परिभाषा को सुनकर, पढ़कर एवं समझकर व्यक्ति इसके धरती पर आने की संभावना को शून्य बताएगा। स्वर्ग वस्तुतः उस अवस्था का नाम है, जिसमें मनुष्य निष्काम भाव से कार्य करते हुए समाज के सुन्दर परिदृश्य का निर्माण करें। जहाँ एक सबके लिए तथा सब एक लिए जीएँ। यह भाव सृजित करने मात्र से स्वर्ग धरती पर दिखाई देने लगेगा तथा इसकी पराकाष्ठा स्वर्गमय धरती का निर्माण है।
🔴👉 मृत्यु के बाद स्वर्ग जाने की बातों की पुष्टि तो सभी धर्म दर्शन सतकर्म के ज्ञान एवं विज्ञान के बल देते आए हैं। जीवित व्यक्ति के स्वर्ग जाने की एक कहानी त्रिशंकु बनने की कही जाती हैं। हमें सुनाया जाता था कि प्राचीन काल में व्यक्ति एवं देवगण धरती एवं स्वर्ग के बीच गमन करते थे। अर्थात जीवित अवस्था में भी स्वर्ग आना जाना असंभव नहीं है। विषय यदि व्यक्ति स्वर्ग आना एवं जाना का होता तो मैं उसे हिन्दू देवताओं मिलने की सलाह देकर अपना कर्तव्य निवहन कर लेता लेकिन बात स्वर्ग को धरती पर उतारने की हैं। अन्य शब्दों में कहा जाए तो धरती को स्वर्ग बनाने की बात है। इसलिए संभवता खोजना ओर भी अधिक जरूरी हो जाता है। यदि में राजनेता होता तो जनता के समक्ष स्वर्ग धरती पर लाने का घोषणापत्र जारी कर जनादेश मांग लेता। मैं ठहरा लेखनी का सिपाही ज्ञान विज्ञान से लड़ कर ही स्वर्ग एवं धरती को एक बना सकता हूँ।
🔴👉 स्वर्ग  एक सर्वात्मक सोच है, जहाँ एक सबके लिए तथा सब एक के लिए है। मनुष्य के चिन्तन को इसमें समाविष्ट करने पर मनुष्य का संसार स्वर्ग हो जाएगा। कदाचित लोकतंत्र की मूल भावना भी यही है तथा समाज शब्द का अर्थ भी यही है। राह बिल्कुल स्पष्ट हो गई कि मनुष्य को अपना एक समाज बनाना है । मनुष्य जिस दिन अपने लिए एक, अखंड एवं अविभाज्य मानव समाज की रचना कर देगा। वह मनुष्य के लिए धरती पर स्वर्ग लाने का कार्य सिद्ध हो जाएगा। आज मनुष्य को धरती पर स्वर्ग इसलिए नहीं दिखाई देता है कि मनुष्य का एक समाज नहीं है।
🔴👉 मानव समाज के निर्माण के लिए एक कला एवं कौशल की आवश्यकता है जो मनुष्य को आनन्द मार्ग दिखता है। आनन्द मार्ग पर चलकर मनुष्य एक, अखंड एवं अविभाज्य मानव तक पहुंचता है। सुख, दुख, आमोदप्रमोद इत्यादि इत्यादि कोई भी मार्ग मानव समाज तक नहीं ले जा सकता है।
🔴👉 इस धरा पर बहुत से प्रवर्तक आए। मनुष्य के कष्टों के निवारण के लिए स्वयं की शरण में आने का संदेश देकर चले गए। मनुष्य ने उन देवदूतों की वाणी पर अक्षत: विश्वास कर उनकी शरण भी पकड़ ली लेकिन उसे प्राप्त हुआ एक मजहब, पंथ, मत एवं रिलिजन कष्टों का क्षय नहीं हुआ। इस धरा पर प्रथम बार किसी व्यक्ति ने मानव समाज बनाने का कार्य अपने हाथ में लिया है। वह व्यक्ति है श्री प्रभात रंजन सरकार। जिन्होंने छेला अथवा अनुयायी बनाने का कारखाना नहीं खोल उन्होंने खोली एक मनुष्य बनाने की कार्यशाला जहाँ मनुष्य का निर्माण किया जाता है। एक एक मनुष्य को बनाकर एक मानव समाज का निर्माण कर दिया जाएगा। उन्होंने मनुष्य बनाने के सिद्धहस्त कारीगरों का दल तैयार किया है । जो मनुष्य का निर्माण करता है। 
🔴👉 श्री प्रभात रंजन सरकार की कुशल कारीगरी के बल एक दिन एक सुन्दर मानव समाज का निर्माण होगा। जहाँ हर पुरुष देव तथा नारी देवी होगी तथा धरती देवालय हो जाएगी। यही तो हम चाहते हैं कि धरती स्वर्ग बन जाएं। ताकि मनुष्य बंधन मुक्ति की साधना कर आनन्दमूर्ति बन जाए।
🔴 👉 धरती पर स्वर्ग अनुयायी बनने से नहीं, एक मनुष्य बनने से बनेगी। श्री प्रभात रंजन सरकार के मनुष्य निर्माणकारी मिशन का अंग बनकर मनुष्य का निर्माण करें एवं मनुष्य बने स्वर्ग स्वतः ही धरती पर उत्तर आएगा।
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लेखक:-  करण सिंह राजपुरोहित उर्फ आनंद किरण
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