विष्णु में विश्व इतिहास ➡ 06

 🔵 विश्व इतिहास का 6 अध्याय🔵
     👑 वामन युग- पंचम संभूति 👑 ⛳⛳⛳⛳
               प्रथम परिक्रान्ति के बाद युग ने करवट बदली नये युग का सूत्रपात हुआ। पाश्विक युग से मनुष्य का युग शुरू हुआ। मनुष्य की कहानी का पहला पन्ना है लेकिन इसे विश्व इतिहास का पहला पन्ना कहना इतिहासकारों की भूल है। प्रथम मानव शिशु जिसे आदि मानव अर्थात प्राइमेट मानव के युग होमो सेम्पियन युग पूर्व के मानव की अवस्था को अविकसित मानव को विष्णु की संभूति में वामन युग कहा जाता है। मनुष्य दिखने बहुत छोटा सा है लेकिन इसने अपने पुरुषार्थ के बल एक पांव में धरती, दूसरे पांव में आकाश तथा तीसरा पांव में बलशाली जीवों को अपने वश में कर दिया। यही बलि महाराज एवं वामन अवतार की कथा का सारगर्भित तथ्य है। यह कथा एक अविकसित मनुष्य की है लेकिन विकसित मनुष्य ने तो प्रगति के कही सौपान लिखे है। जिसे मनुष्य ने अपने इतिहास में क्रमिक रूप से सजाकर रखें है।
            इस युग की शुरुआत से पूर्व एक युग संधि से समय को गुजरना पड़ा है। यह विश्व इतिहास की प्रथम युग संधि थी। इसे स्पष्ट रुप से पृथक युग के रुप में परिभाषित करना सरल कार्य नहीं है। यह युग संधि सामाजिक आर्थिक तंत्र में शूद्र युग की परिधि में रखी जाती है। जिसका पृथक अध्ययन करना सरल एवं साध्य नहीं है। युग संधि में दोनों युग के लक्षण दिखाई देते हैं। अत: पूर्व युग के बाद उत्तर युग का अध्ययन सीधा चला जाता है।
        वामन युग में मानव इस धरती पर कंद मूल, फल, शाक एवं सब्जियों को खाकर अपना जीवन निर्वाह करता था। यहाँ एक बात रेखांकित करता हूँ कि मनुष्य स्वभाव से शाकाहारी हैं। शरीर विज्ञान ने उसका पाचन तंत्र मांसाहार के अनुकूल नहीं बनाया है। परिस्थितियों के दबाव एवं पशुओं की संगत के प्रभाव ने आदि मानव के उत्तरकालीन युग में मांसाहार के आकृष्ट किया। मनुष्य का विकास वानर से हुआ है। मानव की प्रथम श्रेणी जिसे इतिहास ने प्राइमेट मानव नाम दिया है। अपने दो पैरों पर खड़ा नहीं हो सकता था। चलने के लिए चारों पांवों की मदद लेनी पड़ती थी। उत्तरकालीन मनुष्य की विभिन्न श्रेणियों ने धीरे-धीरे दो पांवों पर चलना सीखा। अपनी पूंछ को भी पीछे छोड़ कर आगे बढ़ गया।
वामन युगीन मनुष्य का ऐतिहासिक मूल्यांकन वामन युग के मनुष्य का इतिहास लिखने के पर्याप्त सबूत इतिहास के पास उपलब्ध है। इसके बल पर इतिहासकारों ने इस युग बहुत कुछ वर्णन किया है। उसे आधार मानकर वामन युगीन मानव का ऐतिहासिक मूल्यांकन सहज एवं सरलता पूर्वक किया जा सकता है।
(१) राजनैतिक जीवन इस युग में प्रथम बार मनुष्य एक शारीरिक शक्ति सम्पन्न मनुष्य के अधीन चलना प्रारंभ किया। छोटे दल बनाकर गिरि कंधराओं में इधर से उधर घूमता था। मनुष्य के घुमक्कड़ स्वभाव कारण इतिहासकारों द्वारा भोजन की तलाश खोज गया है। मनुष्य के मनोविज्ञान से परिचित व्यक्ति जानता है कि यह एक गौण कारण है। मूल कारण तो यह है मनुष्य एक जगह पर अधिक दिन नहीं रह पाने के कारण जीवन में नवीनता ग्रहण करना है। आर्थिक कारण ने मनुष्य को एक स्थान से बांधकर रखा है। समूहगत शक्तिशाली सरदार के नेतृत्व में मनुष्य ने रहना आरंभ कर दिया था। यह जिसकी लाठी उसकी भैंस की नीति की राजनीति का युग था।
(२) सामाजिक जीवन वामन कालीन मनुष्य ने परिवार बनाना नहीं सीखा था। नारी जाति को स्वयं के पेट के अतिरिक्त अपने शिशु के पेट को भी पालना पड़ता था। पुरुष जिम्मेदारी नहीं उठाता था। कभी कोई पुरुष दयालु बनकर नारी एवं असहाय मनुष्य की सेवा कर लेता था लेकिन यह एक अनिवार्य सामाजिक परंपरा नहीं थी। तत्कालीन इतिहास के प्रमाण सुव्यवस्थित समाज का उल्लेख नहीं मिलता है। धर्म कथाओं का लेखन बहुत बाद में लिखी गई थी। जो संभावनाओं व्यक्त करती थी तथा कथाकार, लेखक एवं कवि की मनोदशा का भी समावेश कर दिया जाता था। यह साहित्यकार युग की परिस्थितियों के अनुकूल ऐतिहासिक पात्रों को ढ़ालकर अपने साहित्य की शोभा बढ़ाते थे।
(३) धार्मिक जीवन   वामन युग के मनुष्य में चिन्तन का गुण सुप्त अवस्था में विद्यमान था। कभी - कभी किसी - किसी मनुष्य ने इस स्वभाविक गुण का सद्पयोग करने का प्रयास किया था। प्रथम बार भूमंडल पर चिन्तन से रहस्य की ओर बढ़ने पथ निर्देशना मनुष्य ने इस युग में प्राप्त की थी। वामन युग के मानवों के इतिहास में धार्मिक जीवन सबसे अधिक सुफल था।
(४) आर्थिक जीवन वामन युग के मानव की भोजन एक मात्र आर्थिक आवश्यकता थी। उसी को लेकर मनुष्य चलता था। कंद मूल, शाक, पत्ते, फल इत्यादि खाकर जीवन यापन करता था। उसके दैनिक आहार की इन वस्तुओं का उत्पादन करना मनुष्य नहीं सिखा था। मनुष्य की इस दुर्बलता ने मांसाहार को विकल्प के रुप में चुना।
(५) मनोरंजनात्मक दशा   वामन युग में मानव की बुद्धि का विकास कम था। अपनी ताकत का प्रदर्शन उनके लिए मनोरंजन होता था। गाना, नाचना, कूद मनुष्य को आता था लेकिन उसमें लय ताल का कोई मेल नहीं रहता था। शिकारी युग में मानव शेर का शिकार करने में गौरवशाली महसूस करता था।
(६) विश्व को देन इस युग की विश्व सबसे बड़ी देने यह थी। मानव विकास विभिन्न पीढ़ियों तक मानव सभ्यता से परिचय करवाता है।
         यह युग सामाजिक आर्थिक चिन्तन के अनुसार द्वितीय क्षात्र युग था तथा भारतीय परम्परा के अनुसार त्रेतायुग का शंखनाद था। व्यापक पैमाने प्रथम क्षात्र प्रधानता वाले युग की शुरुआत थी।
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लेखक - श्री आनन्द किरण

विष्णु में विश्व इतिहास ➡ 04

   विश्व इतिहास का तृतीय अध्याय🔵
     👑 वराह युग- तृतीय संभूति

           उभयचर जीवों के बाद जीवों की एक ऐसी प्रजाति आई। स्थायी रुप से पृथ्वी पर वास करने लगी। यह युग अंडज से जरायुज वर्गीय जीवों के इतिहास का  है। इस युग में जीवों की विभिन्न श्रेणियों के साथ पादपों की विशालता दिखाई देने लगी। पृथ्वी के स्थायी निवासी कच्छप, सरीसृप, नभचर, कुकुर, गाय, लोमड़, हिरण्य,  बिल्ली एवं वानर प्रजाति के  जीवों का प्रतिनिधित्व वराह ने किया। यह जगली एवं पालतू दोनों ही रुप में पाया है। शाकाहार एवं मांसाहार दोनों के गुण विद्यमान हैं। यह विशालकाय एवं लधुकाय दोनों में योजक बन सकता है। थलचर, उभयचर एवं जलचर तीनों में सामंजस्य स्थापित कर सकता है। नभचर भी इसे अपने प्रतिनिधि प्रदान कर सकते है। क्योंकि उनके लिए सफाई का कार्य सम्पादित करने के लिए तत्पर रहता है।

         वराह संभूति की कथा में कहा गया है कि हिरण्याक्ष नामक दैत्य ने पृथ्वी को जल की गहराइयों छिपा दिया था। श्री हरि विष्णु ने वराह रुप धरकर पृथ्वी को पुनः उसके निर्धारित कक्ष में स्थापित किया। मैंने पूर्व ही लिखा है कि कथाओं की वास्तविकता एवं अवास्तविकता रेखांकित करना मेरा विषय नहीं है। हिरण्य अर्थात स्वर्ण एवं आभूषण इत्यादि बहुमूल्य रत्नों के जल से थल पर प्रकट होने की बात को रेखांकित करने के प्रतीकात्मक स्वरूप में भूमि को खोदने वाले के प्रतिबिंब के रुप में सुअर को चित्रित किया होगा। यह युग स्तनधारी जीवों का युग है। 

वराह युग का ऐतिहासिक मूल्यांकन   विश्व के इतिहास का तृतीय अध्याय एवं चतुर्थ पन्ना लिखा जा रहा है। इतिहास के परिप्रेक्ष्य में परीक्षा देकर इसे आगे बढ़ना होगा। जैविक युग इतिहास लिखा जा रहा ऐतिहासिक मूल्यांकन इतिहासकारों के हास्य का विषय हो सकता है लेकिन शोधकर्ताओं के एक दिशा निर्देश लाइन खिंचना भी लेखन का उद्देश्य होता है। वराह युग इतिहास की प्रत्येक कसौटी पर कसना इसके साथ न्याय है। इससे पूर्व कूर्म, मत्स्य एवं पाक ऐतिहासिक युग ने भी कठिन परीक्षा दी है।

(१) राजनैतिक जीवन   वराह युग में जीवों की विभिन्न प्रजातियों एवं जैविक परिवार की स्पष्ट रेखा दिखायी देती है। इसके साथ कहीं न कहीं जैव जगत का एक सामान्य अनुशासन भी है। जीव अपनी-अपनी सुरक्षा एवं भोजन संग्रहण के लिए झुंड में रहता था। संघात्मक शासन का प्रथम स्वरुप यहाँ दिखाई देता है। यह पशु अपने में से चतुर्थ एवं धूर्त शक्तिशाली का नेतृत्व स्वीकार करते थे तथा अपनी प्रजाति के निर्बल एवं अकेले पर हमला अथवा अन्य आपदा आने पर सामूहिक सहयोग का परिचय देते हैं। संधात्मक भावना है। नभ, जगल, गिरी कंधरा, बिल, वृक्ष, दलदली एवं मैदान धरती पर मानो प्रकृति के दिए राज्य है।

(२) सामाजिक जीवन इस युग के जीवों में ममत्व का भाव अंकुरित हुआ था। जो सामाजिकता की रेखा खींचने के लिए पर्याप्त आधार रेखा है। चूंकि यह स्तनधारी जानवरों का युग था। जहाँ शिशु से लगाव होना मातृ सत्तात्मक समाज के चित्रण का एक सुंदर उदाहरण है। 

(३) धार्मिक जीवन जैव धर्म के अंग  अहार, भय, निंद्रा तथा मैथुनीय यहाँ दिखाई देते है। निर्बल एवं असहाय के प्रति सहानुभूति की वृत्ति ने मदद करने के धार्मिक मूल्यों को परिभाषित करने का अवसर दिया है। जो इस युग के धार्मिक जीवन के मजबूत रेखा है।

(४) आर्थिक जीवन - स्वयं एवं संतान के लिए आहार जुटाना के भाव का अंकुरण आर्थिकता के जीवन रेखा है। युथबद्ध जीवों में मिलकर भोजन की तलाश के लिए जाने की वृत्ति सहकारिता के सूत्र का रेखांकित करने का अच्छा उदाहरण बन सकता है।

(५) मनोरंजनात्मक दशा इस युग में मनोरंजन की प्रचुरता मिली है। विभिन्न जीवों का सजातीय मित्रों के साथ क्रीड़ा करना तथा एक मांग के लिए लड़ना मनोरंजन का स्वरुप है। दो नर पशुओं को लड़ाकर आनन्द लेने वाले इस काल की मनोरंजनात्मक दुनिया से कैसे इनकार कर सकते है। पहाड़ों पर चढ़ाई, मिट्टी एवं जल में खेलना भी इस युग के जीवों के मनोरंजन था।

(६) विश्व को देन   इस युग ने मनुष्य को शिक्षा के लिए पंचतंत्र जैसे शिक्षा मूलक कहानियाँ लिखने के लिए स्वयं का मंच दिया है। विश्व को 'संगठन में शक्ति है' सूत्र प्रदान करने की शिक्षा इस युग के जीवों की जीवन शैली ने दी है।

         यह सामाजिक अर्थनीति सिद्धांत की विप्र युग की अवस्था है। शरीर प्रधान जीव भी कुछ चातुर्य का उपयोग करने लगे थे। बल के स्थान पर युक्ति की जीत के सूत्र के बल पर यह जीव रक्षा करते थे, जो विप्र युग कहने के पर्याप्त आधार है । सतयुग अब अधिक प्रौढ़ हुआ था।

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लेखक - श्री आनन्द किरण
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