🔵 विश्व इतिहास का चतुर्थ
अध्याय🔵
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नरसिंह युग- चतुर्थ संभूति 👑 ⛳⛳⛳⛳⛳⛳⛳⛳⛳⛳⛳⛳⛳⛳⛳⛳⛳
विश्व इतिहास का चतुर्थ
अध्याय एवं पांचवां पन्ना एक ऐसी अवस्था का द्योतक है। जो पशु एवं मनुष्य के मध्यमा
अवस्था का प्रतिनिधित्व करता है। कथा के अनुसार हिरण्मयकशिपु नामक दैत्य को मारने के
लिए श्री हरि विष्णु ने नरसिंह की संभूति का वरण किया गया।
समय का चक्र आगे बढ़ते
हुए पशु योनि से उपर मानवीय चरित्र की नकल करने वाले जीवों का आगमन हुआ। यह जीव वराह
युगीन जीवों से थोड़े उन्नत मानसिक चैतन्य के जीव थे। अपने अग्र पाद का उपयोग वस्तु
जगत में अपने भोजन इत्यादि को जुटाने में करते थे। इनकी भाषा के कुछ शब्दों के संकेत
अपने साथी संभावित भय अथवा अन्य संकेत देने के लिए करते थे। संभवतया इस युग का प्रथम
जीव सिंह वंश का जीव था तथा अन्तिम जीव वनमानुष था। इन दोनों का संयुक्त प्रतिनिधित्व
नरसिंह ने किया।
वराह युगीन जीव बुद्धि
का उपयोग करते थे लेकिन इसका वस्तु जगत में उपयोग करने की कला नहीं जानते थे। लेकिन
नरसिंह युग के जीव बुद्धि का उपयोग वस्तु जगत में कुछ अच्छा करने की कोशिश करते थे।
जैसे बाघ, सिंह चीता शिकार करते समय बड़े जीवों को सामने की बजाय पीछे अथवा पैरों से
घायल करने आदि की कला का उपयोग अभ्यास करते करते सिख गए थे। वानर वंश में तो बुद्धि
का बेहतरीन उपयोग के उदाहरण मिल जाते हैं।
चिंपेजी एवं वनमानुष मनुष्य से मिलती जुलती क्रिया करने में प्रवीण जीव थे।
नरसिंह युग का ऐतिहासिक मूल्यांकन ➡ यह इतिहास का वह पन्ना है। जिससे
आगे का पन्ना मानव इतिहास से लिखा जाना है। मत्स्य युग से नरसिंह युग तक जीव जन्तु, जानवर एवं वानर वंश की
मनोदशा है। इस के आगे मनुष्य एवं जीव जगत के बीच एक युग की संधि होने जाएगी। जिसकी
पृष्ठभूमि नरसिंह युग के उत्तरार्ध में लिखी गई थी, जो बामन युग के पूर्वार्ध में सम्पन्न
होती है। जैव युग के अन्तिम अध्याय का ऐतिहासिक मूल्यांकन सम्पूर्ण जैव जगत की विचित्रता
का अभिप्रकाश है।
(१) राजनैतिक जीवन ➡ नरसिंह युग में सिंह
जैसे जीवों ने जंगल में, बांज ने नभ में, सार्क जैसी चतुर मछलियों ने जल में तथा वानर
प्रजाति के बौद्धिक कौशल में अपना राजनैतिक प्रभुत्व स्थापित कर दिया था। जन्तु जगत
में राजतंत्र का झंडा गाढ़ दिया था। चातुर्य से युद्ध जीत की नीति एक व्यूह रचना के
द्वारा लक्ष्य को प्राप्त करना था।
(२) सामाजिक जीवन ➡ जानवरों का समाज नहीं होता है लेकिन सिंह परिवार,
बंदरियों का मातृ संतान का स्नेह सामाजिक जीवन की रेखाएँ खिंचने की अनुमति प्रदान करते
है। कंगारू की थैली इत्यादि का अवलोकन पशुओं
के अपने परिवार के सूचना एकत्रित करने के लिए इतिहासकार को आमंत्रित करते है।
(३) धार्मिक जीवन ➡ नरसिंह युग मनुष्योंचित्त
जीवों एवं पशु की योजक कड़ी है। इन धार्मिक विकास की अवधारणा का विकास नहीं हुआ था।
इनका निजी स्वभाव ही इनका धर्म था। उदाहरण सिंह एकाकी रहना चाहता था। वनमानुष समूह
के साथ रहता था। धार्मिक विभिन्नता थी। धर्म के प्रति कट्टरता थी लेकिन दूसरों विचारों
पर बलांत हमला करने का स्वभाव नहीं था।
(४) आर्थिक जीवन ➡ इस युग के जीवों की
उदर पूर्ति करने तक ही कर्म करने की आवश्यकता महसूस करते थे। संग्रह की प्रवृत्ति नहीं
थी। मादाओं में संतान छोटे होने तक उनकी आवश्यकता ध्यान में रखकर व्यवस्था करने का
भाव था।
(५) मनोरंजनात्मक दशा ➡ सिंह की गर्जना, घोड़ों
की हिनहिनाहट, हाथी की दहाड़, बंदरों की उछल कूद एवं वनमानुष की कार्य कुशलता मनोरंजन
के श्रेष्ठ उदाहरण है। खा पिकर मस्त रहना इनका मनोरंजन था।
(६) विश्व को देन ➡ इस युग ने विश्व को
चिन्तनशील प्राणी दिया है। जिसने आगे चलकर मनुष्य का स्वरूप धारण कर पृथ्वी के विकास
की गाथा लिखी है।
यह युग समाज चक्र की
धारा के अनुसार प्रथम वैश्य युग था। पाश्विक युग का विषय के साथ संयुक्त रहने तथा विषय
अधिक उचित ढंग उपयोग करने वाले प्राणियों का युग था। सतयुग का अन्तिम पडाव था। वृहत
रुपेण देखा जाए तो मत्स्य से नरसिंह युग शूद्र प्रधान विभिन्न समाज चक्र के युग की
सूक्ष्म अवस्थाएं थी। इस बाद एक युग संधि होती है। जो परिक्रांति के बाद की युग संधि
शूद्र युग की शुरुआत थी।
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लेखक - श्री आनन्द किरण
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