विश्व इतिहास का प्रथम अध्याय��
�� मत्स्य युग- प्रथम संभूति ��
भूमा मन से पंच महाभूत के निर्माण की कहानी अंतिम दो पायदान जल एवं पृथ्वी के निर्माण में जाकर
रुक नहीं जाती है। यहाँ महाभूत में जड़ विस्फोट के फलस्वरूप सूक्ष्म भूत समूह तथा जीव देह, जीव प्राण व जीव मन का निर्माण होता है। दर्शन के इस ज्ञान का प्रमाण शास्त्र एवं विज्ञान दोनों के पास उपलब्ध है। शास्त्र में
उपलब्ध प्रमाण कहते हैं कि प्रथम जीव का आगमन जल में हुआ तथा विज्ञान का शोध भी इसे प्रमाणित करता
है। अत: निर्विवाद प्रमाणित होता है। विश्व इतिहास का प्रथम पन्ना जल में जीव की उत्पत्ति एवं जल में जीवों के संसार में हैं।
भारतीय साहित्य कहते है कि विष्णु की प्रथम संभूति मत्स्य के रुप में हुई थी। कथा में लिखा है कि
हयग्रीव दैत्य द्वारा वेदों को चुरा दिए जाने पर संसार में ज्ञान शून्यता को आलोकित करने तथा सत्यव्रत के
माध्यम से सृष्टि के संरक्षण करने के लिए भगवान विष्णु ने इस संभूति को धारण किया। कथा आस्था एवं
विश्वास की सम्पदा है। इतिहास उससे आगे की सोच यथार्थ एवं शिक्षा है। इतिहास का यह पन्ना बता है कि
जीव प्रथमतः जल में आगमन से जैविक जगत की शुरुआत हुई। एक कोशिकीय पादप एवं जीव के साथ जलचर
जीवों का प्रतीक चिह्न मत्स्य युग है। शिक्षाप्रद उक्तियां मछली को जल की रानी की उपमा देती है। भारतीय
साहित्य ने मछली में संभूति दिखाकर विश्व इतिहास में प्रथम साम्राज्य त्रिया राज्य दिखाया है। मछली विश्व की प्रथम जैविक सम्राज्ञीनी होने शिक्षा देता है। जलीय जीवों के संसार का प्रतिनिधित्व मत्स्य वर्ग को दिया गया है। वास्तव में देखा जाए तो जल मछली का राज्य है। जल परिवार के मुखिया की भूमिका अदा करने में इसे
प्रतिनिधित्व दिया जा सकता था।
विश्व इतिहास का यह प्रथम अध्याय लिखने तक स्थल पर जैविक विकास के योग्य परिवेश का निर्माण
नहीं हुआ था। जल के गर्भ में ही प्रथम जीवों की किलकारियाँ धरती माता ने सुनी थी। जैव विकास के इतिहास
में बताया जाता है सर्व प्रथम काई का निर्माण हुआ। यह जलीय पादप श्रेणी है। यहाँ से आगे सूक्ष्म जीव एवं
वृहत काय जलीय जीवों की सृष्टि होती है।
मत्स्य युग का ऐतिहासिक मूल्यांकन ➡ जीवों के आगमन के इस प्रथम की कहानी लिखने वाला साक्ष्य
उपलब्ध नहीं है। यद्यपि इस युग का सुन्दर इतिहास कल्पना से लिखा जाता है तथापि वास्तविकता एक लकीर भी इधर उधर नहीं जाता है। यद्यपि इस युग का उपभोग करने वाले मानसिक का जीव उस युग में नहीं था तथापि यह युग इतिहास को विचारने के बिन्दु पर छोड़ जाता है।
(१) राजनैतिक जीवन ➡ मत्स्य युग मछली की प्रधानता वाला युग है। इस युग राजनीति में अराजकता काउदाहरण है। किसी की प्रधानता को स्वीकार करने को तैयार नहीं है। अपने अपने मानसिक आभोग के अनुसार आकर्षण एक विकर्षण है। अपने पेट की अग्नि शांत करने के किसी निश्चित नियम अधिक नहीं है। बड़ी मछली छोटी मछली निगलने सिद्धांत की व्यवस्था का नाम है। इतना होने पर भी एक साम्राज्ञी का सिद्धांत
प्रभावशाली है। यह त्रिया राज्य का उदाहरणार्थ प्रस्तुत किया जा सकता है। जिस प्रकार एक रानी मधुमक्खी के
इर्द गिर्द सम्पूर्ण छत्ता की नगरी निर्मित होते है। इसी प्रकार मछली जलीय दुनिया की आधार शीला है।
(२) सामाजिक जीवन ➡ इस युग जीवों में विवेक का अभाव था। स्वयं मातृका मछली पुत्री मछली को जठराग्नि की शिकार बना लेते थी। फिर इतिहास में मातृ सत्तात्मक समाज के बीज दृष्टिगोचर होते हैं। परिवार शब्द से यह युग कोसों दूर था। मात्र जैविक जनन क्रिया के चलते यह संचार चल रहा था।
(३) धार्मिक जीवन ➡ शंख का जलीय जगत से प्राप्त होना। इस युग का धार्मिक इतिहास लिखने का मजबूत साक्ष्य है। इस युग में स्वयं बारे मे चिन्तन करने की मानसिकता का निर्माण भी नहीं हुआ था। उपासना का प्रतीक शंख शरीर देकर नव उदघोष की घोषणा करता है। विष्णु के अवतार का चित्रण धार्मिक इतिहास का
सबसे गुरुत्व बिन्दु है। समग्र युग को इसे समर्पित कर देता है।
(४) आर्थिक जीवन ➡ नीति शास्त्र में कहा गया है पापी पेट के चलते चारों जीवों की क्रियाशीलता है। यह युग सम्पूर्ण रुपेण जठराग्नि को समर्पित है। अपनी क्षुधा पूर्ति के समक्ष सभी कानून नगण्य सा दृश्य दिखाई देता है।
(५) मनोरंजनात्मक स्थिति ➡ चित्त युक्त जीवों मन किसी भी रंग में रंजीत नहीं होता है। वर्तमान सभ्य घरों में मानसिक आनन्द एवं सौंदर्य वृद्धि के घरों में उपस्थित मत्स्य घर जलीय जीवों के सुन्दर कलवहन की कहानी कहता है। मछलियों की क्रिया देखने एक मन घंटों खड़ा रह जाता है। यह मन को आकृष्ट करने वाला दृश्य जल के संसार का सुन्दर मनोरंजनात्मक दृश्य है।
(६) विश्व को देन ➡ न्याय व्यवस्था का प्रथम सूत्र मत्स्य न्याय व्यवस्था इस युग प्रथम उदाहरण है। जिसकी प्रतिक्रियात्मक न्याय व्यवस्था का जन्म होता है। विश्व को जीव विज्ञान इस युग ने दिया है। प्रथम जीव इस युग में ही आया था।
भारतीय साहित्य में वर्णित सतयुग की शुरुआत का प्रथम पायदान था। सामाजिक आर्थिक चिन्तन में यह
प्रथम शूद्र युग था। यहाँ से समाज चक्र का पहिया प्रथम बार घूर्णनशील होता है। मत्स्य युग विश्व इतिहास का
पहला पन्ना है। जिस पर इतिहास खड़ा है।
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लेखक - श्री आनन्द किरण
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विष्णु में विश्व इतिहास part 1
�� मत्स्य युग- प्रथम संभूति ��
भूमा मन से पंच महाभूत के निर्माण की कहानी अंतिम दो पायदान जल एवं पृथ्वी के निर्माण में जाकर
रुक नहीं जाती है। यहाँ महाभूत में जड़ विस्फोट के फलस्वरूप सूक्ष्म भूत समूह तथा जीव देह, जीव प्राण व जीव मन का निर्माण होता है। दर्शन के इस ज्ञान का प्रमाण शास्त्र एवं विज्ञान दोनों के पास उपलब्ध है। शास्त्र में
उपलब्ध प्रमाण कहते हैं कि प्रथम जीव का आगमन जल में हुआ तथा विज्ञान का शोध भी इसे प्रमाणित करता
है। अत: निर्विवाद प्रमाणित होता है। विश्व इतिहास का प्रथम पन्ना जल में जीव की उत्पत्ति एवं जल में जीवों के संसार में हैं।
भारतीय साहित्य कहते है कि विष्णु की प्रथम संभूति मत्स्य के रुप में हुई थी। कथा में लिखा है कि
हयग्रीव दैत्य द्वारा वेदों को चुरा दिए जाने पर संसार में ज्ञान शून्यता को आलोकित करने तथा सत्यव्रत के
माध्यम से सृष्टि के संरक्षण करने के लिए भगवान विष्णु ने इस संभूति को धारण किया। कथा आस्था एवं
विश्वास की सम्पदा है। इतिहास उससे आगे की सोच यथार्थ एवं शिक्षा है। इतिहास का यह पन्ना बता है कि
जीव प्रथमतः जल में आगमन से जैविक जगत की शुरुआत हुई। एक कोशिकीय पादप एवं जीव के साथ जलचर
जीवों का प्रतीक चिह्न मत्स्य युग है। शिक्षाप्रद उक्तियां मछली को जल की रानी की उपमा देती है। भारतीय
साहित्य ने मछली में संभूति दिखाकर विश्व इतिहास में प्रथम साम्राज्य त्रिया राज्य दिखाया है। मछली विश्व की प्रथम जैविक सम्राज्ञीनी होने शिक्षा देता है। जलीय जीवों के संसार का प्रतिनिधित्व मत्स्य वर्ग को दिया गया है। वास्तव में देखा जाए तो जल मछली का राज्य है। जल परिवार के मुखिया की भूमिका अदा करने में इसे
प्रतिनिधित्व दिया जा सकता था।
विश्व इतिहास का यह प्रथम अध्याय लिखने तक स्थल पर जैविक विकास के योग्य परिवेश का निर्माण
नहीं हुआ था। जल के गर्भ में ही प्रथम जीवों की किलकारियाँ धरती माता ने सुनी थी। जैव विकास के इतिहास
में बताया जाता है सर्व प्रथम काई का निर्माण हुआ। यह जलीय पादप श्रेणी है। यहाँ से आगे सूक्ष्म जीव एवं
वृहत काय जलीय जीवों की सृष्टि होती है।
मत्स्य युग का ऐतिहासिक मूल्यांकन ➡ जीवों के आगमन के इस प्रथम की कहानी लिखने वाला साक्ष्य
उपलब्ध नहीं है। यद्यपि इस युग का सुन्दर इतिहास कल्पना से लिखा जाता है तथापि वास्तविकता एक लकीर भी इधर उधर नहीं जाता है। यद्यपि इस युग का उपभोग करने वाले मानसिक का जीव उस युग में नहीं था तथापि यह युग इतिहास को विचारने के बिन्दु पर छोड़ जाता है।
(१) राजनैतिक जीवन ➡ मत्स्य युग मछली की प्रधानता वाला युग है। इस युग राजनीति में अराजकता काउदाहरण है। किसी की प्रधानता को स्वीकार करने को तैयार नहीं है। अपने अपने मानसिक आभोग के अनुसार आकर्षण एक विकर्षण है। अपने पेट की अग्नि शांत करने के किसी निश्चित नियम अधिक नहीं है। बड़ी मछली छोटी मछली निगलने सिद्धांत की व्यवस्था का नाम है। इतना होने पर भी एक साम्राज्ञी का सिद्धांत
प्रभावशाली है। यह त्रिया राज्य का उदाहरणार्थ प्रस्तुत किया जा सकता है। जिस प्रकार एक रानी मधुमक्खी के
इर्द गिर्द सम्पूर्ण छत्ता की नगरी निर्मित होते है। इसी प्रकार मछली जलीय दुनिया की आधार शीला है।
(२) सामाजिक जीवन ➡ इस युग जीवों में विवेक का अभाव था। स्वयं मातृका मछली पुत्री मछली को जठराग्नि की शिकार बना लेते थी। फिर इतिहास में मातृ सत्तात्मक समाज के बीज दृष्टिगोचर होते हैं। परिवार शब्द से यह युग कोसों दूर था। मात्र जैविक जनन क्रिया के चलते यह संचार चल रहा था।
(३) धार्मिक जीवन ➡ शंख का जलीय जगत से प्राप्त होना। इस युग का धार्मिक इतिहास लिखने का मजबूत साक्ष्य है। इस युग में स्वयं बारे मे चिन्तन करने की मानसिकता का निर्माण भी नहीं हुआ था। उपासना का प्रतीक शंख शरीर देकर नव उदघोष की घोषणा करता है। विष्णु के अवतार का चित्रण धार्मिक इतिहास का
सबसे गुरुत्व बिन्दु है। समग्र युग को इसे समर्पित कर देता है।
(४) आर्थिक जीवन ➡ नीति शास्त्र में कहा गया है पापी पेट के चलते चारों जीवों की क्रियाशीलता है। यह युग सम्पूर्ण रुपेण जठराग्नि को समर्पित है। अपनी क्षुधा पूर्ति के समक्ष सभी कानून नगण्य सा दृश्य दिखाई देता है।
(५) मनोरंजनात्मक स्थिति ➡ चित्त युक्त जीवों मन किसी भी रंग में रंजीत नहीं होता है। वर्तमान सभ्य घरों में मानसिक आनन्द एवं सौंदर्य वृद्धि के घरों में उपस्थित मत्स्य घर जलीय जीवों के सुन्दर कलवहन की कहानी कहता है। मछलियों की क्रिया देखने एक मन घंटों खड़ा रह जाता है। यह मन को आकृष्ट करने वाला दृश्य जल के संसार का सुन्दर मनोरंजनात्मक दृश्य है।
(६) विश्व को देन ➡ न्याय व्यवस्था का प्रथम सूत्र मत्स्य न्याय व्यवस्था इस युग प्रथम उदाहरण है। जिसकी प्रतिक्रियात्मक न्याय व्यवस्था का जन्म होता है। विश्व को जीव विज्ञान इस युग ने दिया है। प्रथम जीव इस युग में ही आया था।
भारतीय साहित्य में वर्णित सतयुग की शुरुआत का प्रथम पायदान था। सामाजिक आर्थिक चिन्तन में यह
प्रथम शूद्र युग था। यहाँ से समाज चक्र का पहिया प्रथम बार घूर्णनशील होता है। मत्स्य युग विश्व इतिहास का
पहला पन्ना है। जिस पर इतिहास खड़ा है।
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लेखक - श्री आनन्द किरण
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विष्णु में विश्व इतिहास part 1
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