विष्णु में विश्व इतिहास ➡ 01
🔵 विश्व इतिहास का शून्य अध्याय🔵
    👑 पाक ऐतिहासिक अवस्था 👑 ⛳⛳⛳⛳⛳⛳⛳⛳⛳⛳⛳⛳⛳⛳⛳⛳
              इतिहास लेखन की भारतीय परम्परा ने  परम पुरुष की संभूति में विश्व इतिहास के दर्शन होते हैं। परमतत्त्व का सम्पूर्ण विकास महासंभूति है जबकि सृष्टि के विकास के विभिन्न अवस्थाओं को संभूति नाम दिया गया। सृष्टि चक्र के अध्ययन से स्पष्ट है कि ब्रह्म का सृजन क्रिया रुप का नाम ब्रह्मा है। सृजनहार होने के ब्रह्मा स्वरुप में सृष्टि की पूर्वावस्था में स्थित है तथा महेश संहारकर्ता होने के सृष्टि के उत्तरार्ध अवस्था का नाम  हैं। सृष्टि की चलयमान अवस्था का नाम विष्णु दिया गया है। इसलिए सृष्टि एक प्रथम से अन्तिम बिन्दु तक की अवस्था विष्णु है।
               विष्णु में विश्व इतिहास का शून्य अध्याय, संभूति से पूर्व अवस्था का नाम है। भारतीय शोध पत्र के अनुसार विष्णु की अब तक दस संभूति का विकास है। इस संभूति के इतिहास से पूर्व की अवस्था शून्य तुल्य पाक ऐतिहासिक अवस्था है। इस अवस्था में इस विश्व ब्रह्मांड का निर्माण  से जीवों के आगमन से पूर्व तक की अवधि है।
         ब्राह्मण के निर्माण की कहानी, विज्ञान एवं दर्शन दोनों ही कहते हैं। इतिहास के काल गणना की वैज्ञानिक विधि कार्बन 14 से खगोलिए पिंड की जीवन अवधि ज्ञात की जा सकती हैं। विज्ञान की प्रयोगशाला में अब तक पृथ्वी के सूर्य से उत्पत्ति की पुष्टि कर चुका है। सूर्य में विशेष गैसों की अनवरत क्रिया फलस्वरूप ऊर्जा सृजन का भी अनुमान विज्ञान के पास है। आकाश गंगा एवं निहारिकाओं के संदर्भ में विज्ञान के पास ज्ञान है। सृष्टि के सृजन का क्रमबद्ध ज्ञान दर्शन के पास है। दर्शन में वर्णित है कि भूमा चैतन्य से भूमा मन एवं भूमा मन से सृष्ट जगत् की उत्पत्ति हुई है। मतमतान्तर की चमत्कृत सृष्टि सृजन की अवधारणा तथा शून्य से सृजन की अभिग्रहीत उक्ति है।
           विज्ञान जहाँ जड़ से चेतन के आगमन की कहानी कहता है। वही मतमतान्तर की अवधारणा अव्यवहारिक सिद्धांत देता है। दर्शन ही एक मात्र विधा जो विश्व इतिहास के इस शून्य अध्याय को लिखने में मदद करता है। आनन्द मार्ग दर्शन में बताया गया है कि भूमा चैतन्य अर्थात ब्रह्म शिव तथा शक्ति का मिलित नाम है। शिव को चित्तिशक्ति, साक्षी सत्ता एवं पुरुष आदि पर्याय का भी उल्लेखित किया गया है। शक्ति जिसे प्रकृति लिखा जाता है। यह दोनो एक ही कागज के दो पृष्ठ है। जो एक दूसरे के बिना अस्तित्व विहिन है।  यह अवस्था मन के परे की हैं, इसलिए इस में कार्य कारण ढूंढना मन के सामर्थ्य के बाहर है। एक सर्वशक्तिमान सत्ता के रुप में इसकी क्रियाशीलता के प्रमाण के आधार पर इसका होना प्रमाणित है। इसके निर्माण का अध्याय अभिग्रहीत है। यह पाक सृष्ट अवस्था  अर्थात इतिहास लेखन के शून्य अध्याय से भी आदि की अवस्था है। प्रकृति त्रिगुणात्मिका है। इसके सत्व गुण के कारण पुरुष देह में मैं हूँ का बोध जागृत होता है, जिसे महत् कहा जाता है। विश्व इतिहास प्रथम सृजित अंश भूमा महत् हैं। प्रकृति के रजो गुण से पुरुष देह में कर्तव्यभिमान का बोध हुआ जिसे अहम् नाम दिया गया। इसी प्रकार प्रकृति के तमोगुण के प्रभाव से पुरुष देह में कर्मवाच्य मैं का निर्माण हुआ । जिसे चित्त कहा गया। यह दर्शन की पाक सृष्ट अवस्था है। यह सृष्टि निर्माण के पूर्व की अवस्था है।
                  इतिहास लेखन का शून्य अध्याय शुरू होता है। चित्त पर तमोगुण के प्रभाव से पंच महाभूत आकाश, वायु, अग्नि, जल एवं पृथ्वी तत्व सृजन किया। इतिहास लेखन का शून्य अध्याय जीव निर्माण का पूर्वगामी अवस्था का नाम है। जहाँ आज विश्व ब्रह्मांड दिखाई देता है। एक समय ऐसा भी रहा था कि यह विश्व ब्रह्मांड वहाँ नहीं था लेकिन ज्ञातव्य है कि यह शून्य भी नहीं था। इसलिए दर्शन कि स्व: प्रमाणित खोज है कि यह सृष्टि ब्रह्म के मन में अवस्थित है। ब्रह्मांड से पूर्व ब्रह्म मन था तथा अन्त में भी ब्रह्म मन रहेगा।
        शून्य अध्याय की शुरुआत आकाश तत्व के निर्माण से होती है। दूर दूर तक एक सन्नाटा सा दृश्य होता था लेकिन वहाँ शब्द वहन करने का सामर्थ्य था। साधक की गहरी साधना प्रमाणित करती है कि एक ध्वनि जो अविरल बहती है, वह ॐ है। आकाश तत्व पर खगोलीय क्रिया एवं भौतिक रसायन की क्रियाशीलता के परिणाम स्वरुप गैसों का समूह वायु निर्मित हुआ। आकाश तत्व में जहाँ ध्वनि की क्रीड़ा थी। वही वायु महाभूत में गैसों की क्रीड़ा का स्पर्श था। भौतिक रसायन की जटिलता ने वायु में से ऊर्जा अर्थात अग्नि महाभूत का निर्माण किया। यह अवस्था दृश्य रुप में प्रकट होने लगी। यह विभिन्न रंगों का मनमोहक दृश्य है। तारों एवं ग्रह का  निर्माण होना एवं बने का सुन्दर दृश्य है। यह विश्व इतिहास के शून्य अध्याय का स्वर्णिम युग था। यहाँ भौतिक रसायन की क्रमिक जटिलता ने जल एवं ठोस अवस्था पृथ्वी का सृजन किया। जल एवं ठोस का संगम वह स्थल है जहाँ से विश्व इतिहास का प्रथम अध्याय लिखा जाना था।
विश्व इतिहास के शून्य अध्याय की ऐतिहासिक समीक्षा  हम जानते हैं कि यह अध्याय जीव एवं जन शून्य अवस्था है। लेकिन अध्याय तो अवश्य ही है। यह समीक्षा एक वैज्ञानिक एवं प्राकृतिक घटनाओं अनुशासन को रेखांकित कर की जा रही है। बुद्धि को कुछ पल रुक कर इसके बारे में सोचना एवं विचारना चाहिए।
(१) राजनैतिक जीवन प्रकृत शक्ति का साम्राज्य है। सभी आपसी आकर्षण एवं विकर्षण के बल पर अनुशासित है। उपग्रह, ग्रह, तारें, खगोलीय पिंड, आकाश गंगा, निहारिका सभी एक विशेष अनुशासन का पालन करते हैं। यद्यपि यह सभी अजीव तथापि कोई ऐसी व्यवस्था तो अवश्य है जो इनको संचालित करती है। यह राजनीति विज्ञान के विद्यार्थी के लिए सीखने का पाठ्यक्रम  है। कभी कभी इस अनुशासन के तोड़ने की घटना भी देखने को मिली है। इसका परिणाम भुगताना पड़ा है। राजनीति विज्ञान की भाषा में युद्ध एवं राज्यों के विलय की युगान्तरकारी घटना सी है।
(२) सामाजिक जीवन विश्व ब्रह्मांड का यह एक परिवार है। जहाँ आकाश गंगा का अपना -अपना परिवार है, तारें ग्रह इत्यादि भी अपने अपने छोटे परिवारों के माध्यम के समुदाय एवं समाज की रचना करते है। समाजशास्त्र का विद्यार्थी यहाँ कुछ पल ठहरकर एकाकी एवं सामाजिक जीवन को रेखांकित कर सकता है।
(३) धार्मिक जीवन धार्मिक जीवन शब्द सुनते विद्वानों की चाय की प्याली में तूफान आ जाएगा। धर्म मात्र मनुष्यों की सम्पदा नहीं है। जीव एवं अजीव के अपने अपने निज गुणधर्म है। पानी तरलता का, अग्नि दहाकता का, वायु वाहकता का, पृथ्वी कठोरता का  तो आकाश भी सब समाकर रखने के धर्म का निवहन करते है। यह इनका निज धर्म ही इनकी पहचान है।
(४) आर्थिक जीवन शायद आप सोच रहें होगे की यह तो हास्य की चरम सीमा है लेकिन ऐसा नहीं है, इस युग के अजीवों के लिए भी आहार अर्थात ऊर्जा की आवश्यकता है। यही से आर्थिक जीवन की कहानी की शुरुआत हो जाती है। यह ऊर्जा एवं जीने की पद्धति अर्थशास्त्र की विषय वस्तु है।
(५) मनोरंजनात्मक दशा इस काल में मनोरंजन का आनन्द लेना वाली जैविक एवं मानवीय सत्ता का आगमन नहीं हुआ था लेकिन उस काल में निर्मित होने वाली खगोलीय क्रिया प्रतिक्रिया आज के मनुष्य के आनन्द में वृद्धि करती है। एक ग्रह का अपने तारे की परिक्रमा करते पथ भूल कर अन्य परिवार में गुरुत्वाकर्षण के बल चले जाने अवश्य विस्मित करने वाली घटना है तथा प्राकृतिक आनन्द में वृद्धि करती है। ब्लैक हॅाल में खगोलीय पिंडों का समाना एवं आंधी, तूफान, भूकंप, ज्वालामुखी आदि दुखदायी होने पर प्रकृति क्रिया का आनन्द ही हैं। यह ठीक उसी प्रकार का आनन्द है जैसे नव सर्जन में एक प्रसूता माँ संतान को जन्म देने में दुख भी आनन्द की अनुभूति के समदृश्य है।
(६) विश्व को देन इतिहास के इस पृष्ठ की विश्व को अतुलनीय देने रही है। जिसका उपभोग मनुष्य आज भी कर कर रहा है। उदाहरणार्थ कोटिशः वर्ष पूर्व सृजित भास्करदेव आज भी सौर मंडल को भास्वित कर रहे है। यह सुनहरा ब्रह्मांड उस युग की विश्व सबसे बड़ी देने है।
     उपसंहार में लिखता हूँ कि विश्व इतिहास का यह शून्य अध्याय, जीव शून्य है, इतिहास शून्य नहीं।
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Writer :- Anand kiran ( karan Singh Shivtalav




कौनसा राजनैतिक दल श्रेष्ठ है
भारतवर्ष में एक वर्ष बाद आम चुनाव होने वाले है। इसलिए आम आदमी की जिज्ञासा रहती है कि अबकी बार
मेरा  वोट किस राजनैतिक दल को देने से देश एवं समाज के लिए हितकारी सिद्ध हो सकता है।
राष्ट्रनेता संत श्री विनोबा भावे की उक्ति - "चुनावों में आत्म प्रशंसा, परनिंदा एवं मिथ्या भाषण होते हैं" को
समक्ष रखकर विषय को आगे ले चलता हूँ। चुनावी मौसम में प्रत्येक राजनैतिक दल एवं राजनेता स्वयं को
शत प्रतिशत सत्य प्रमाणित करने की कोशिश करता है तथा विरोधी को शत प्रतिशत गलत बताने का हर संभव
प्रयास करता है। इतने पर भी काम नहीं होने पर इधर-उधर की बातें कर भ्रम फैलाने से भी नहीं चूकते है।
राजनीति के इस दूषित माहौल में किसी भी एक दल को श्रेष्ठ बताना विषय के साथ न्याय नहीं हो सकता है।
महान सामाजिक व आर्थिक चिन्तक एवं युगप्रवर्तक श्री प्रभात रंजन सरकार की लोकतंत्र पर
एक राय - "लोकतंत्र एक मूर्खतंत्र है। यदि एक विद्यालय में लोकतंत्र स्थापित कर दिया जाए तो सदैव बहुमत
विद्यार्थियों का रहता है तथा इस बहुमत ने यह फैसला ले लिया कि हमारी उत्तर पुस्तिका हम ही जांच करेंगे तो
परीक्षा तंत्र ही अर्थहीन हो जाएगा।" को भी समक्ष रखकर विषय पर मंथन करते है। समाज नीति में कहा जाता कि सौ मूर्खों पर एक विद्वान भारी लेकिन राजनीति सौ मूर्खों का दामन छोड़कर एक विद्वान का हाथ नहीं थाम सकती है। इस परिस्थिति में किसी एक राजनैतिक दल को श्रेष्ठता की जय माला पहनना एक दुष्कर कार्य है। चूंकि विषय चल पड़ा है इसलिए विषय के साथ न्याय तो करना ही होगा।
राजनैतिक दलों की श्रेष्ठता का एक मानक पैमाना तय किए बिना विषय  के साथ सही न्याय नहीं कर सकते है।
हम सभी जानते हैं कि यह पैमाना तय करने का अधिकार कानून का है, लेकिन लोकतंत्र ने यह अधिकार जनता
को दे रखा है तथा  जनता राजनीति को अपने सभी अधिकार दे देती है। राजनीति जनता नचाती रहती है तथा
यही से तो समस्या ने जन्म लिया है कि कौनसा राजनैतिक दल श्रेष्ठ?
संविधान सभा को राजनेताओं के लिए एक आचरण संहिता एवं राजनैतिक दलों के लिए एक मर्यादा की लक्ष्मण
रेखा खींच लेनी चाहिए थी तो उक्त समस्या के स्थान पर प्रश्न होता कि किस उम्मीदवार को वोट दिया पाए?
जिसका उत्तर मतदाता  सहज खोज लेता। यदि यह प्रश्न आम आदमी के समक्ष होता तो इतना सोचना नहीं
पड़ता। राजनैतिक दलों की श्रेष्ठता प्रमाणित करने का अर्थ यह है कि उस दल की विचारधारा के आधार पर राष्ट्र
एवं समाज का निर्माण करना। यह कार्य तो संविधान सभा है। इसलिए  समाज को प्रथम एक गतिशील एवं
जीवित संविधान सभा देनी होगी। जो मूल्यों का निर्धारण, संरक्षण व संवृद्धन करने का कार्य करें।
यह हो जाने पर राजनैतिक विचारधारा से आम आदमी को राहत मिल जाएगी लेकिन राजनैतिक दलों की श्रेष्ठता
से पीछा नहीं छूट सकता है। समस्या को अधिक गंभीरता से लेने की आवश्यकता है।
राजनैतिक दल का रहना अर्थात एक विचारधारा का रहना है। संविधान सभा यह तय कर सकती है कि राजनैतिक
दलों को नव्य मानवतावादी दृष्टिकोण एवं प्रगतिशील अर्थव्यवस्था के सूत्रों को लेकर एक कार्य योजना निर्माण
करना एवं इसे लेकर जनता के बीच में जाना एवं जनादेश लेकर आना। जनादेश लेकर आने वाला राजनैतिक दल
यदि अपने उत्तरदायित्व का निर्धारित समय सीमा में पूर्ण नहीं करें तो  संविधान सभा को उसके भविष्य का
निर्णय करने का भी अधिकार रखना चाहिए। यदि यह हो जाता है तो राजनैतिक दल की श्रेष्ठता की समस्या का
समाधान सरल हो जाएगा। जिसका समाधान जनता के पास मिल सकता है लेकिन स्थायी समाधान के लिए
समस्या को ओर अधिक गंभीरता से लेने की आवश्यकता है।

यदि  एक राजनैतिक दल की कार्य योजना अच्छी है, लेकिन उसको क्रियान्वयन करने वाला मात्र एक ही
समयावधि को लेकर आता है तथा समाज  को तीन तेरह करके चले जाते हैं तो समस्या ओर भी गंभीर रुप धारण
कर लेती है। इसलिए राजनेताओं की आचरण संहिता को गंभीरता से लेना होगा। नैतिकवान राजनेताओं की
आवश्यकता को स्वीकार किया बिना राजनैतिक दलों की श्रेष्ठता अर्थहीन  है। नैतिकता के पीछे एक आंतरिक बल
की आवश्यकता है। इसको आत्मिक अथवा आध्यात्मिक बल कहते है। आध्यात्मिकता एवं नैतिकता एक दूसरे
की पूरक एवं सहयोगी शक्ति के रुप लेने से काम चलेगा। अर्थात राजनेता को आध्यात्मिक नैतिकवान होना ही
होगा। आध्यात्मिक नैतिकवान नेता ही समाज को श्रेष्ठता की ओर ले जा सकते हैं। राजनीति को पंथ, सम्प्रदाय
एवं मत मतान्तर से एतराज था। इसकी सजा समाज को देना उचित नहीं है। कर्तव्य , दायित्व तथा धर्म से दूरी
बनाना एक गलत दिशा थी। समय रहते इस भूल को नहीं सुधार गया तो व्यवस्था कितनी भी अच्छी क्यों न हो
वह अच्छाई को प्रदर्शित नहीं कर सकती है। श्रेष्ठ राजनैतिक व्यवस्था के लिए उन्नत एवं सर्वांगीण,  सामाजिक
सोच तथा मजबूत एवं प्रगतिशील आर्थिक सूत्र की आवश्यकता के साथ आध्यात्मिक नैतिकवान नेतृत्व की
आवश्यकता है।
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