बीजमंत्र (Root & Control Mantra)

                   
 
आध्यात्मिक विज्ञान बता है कि हर भौतिक, आधिदैविक एवं आध्यात्मिक सत्ता के निर्माण के मूल में एक अक्षर अथवा शब्द है। इन्हें बीजमंत्र कहा जाता है। जिस प्रकार हर जैविक सत्ता का निर्माण एक बीज में निहित होता है, उसी प्रकार बीजमंत्र भी उसका सत्ता के निर्माण के लिए उत्तरदायी है। बीजमंत्र का क्षेत्राधिकार यही समाप्त नहीं होता है। इनका क्षेत्राधिकार उसके नियंत्रण में भी निहित है तथा उसके प्रलय में उपस्थित हैं। इसलिए आज हम आध्यात्मिकता की इस पूंजी बीजमंत्र अथवा नियंत्रण मंत्र के संदर्भ में जानने की कोशिश करेंगे। 

अ से लेकर क्ष तक बीजाक्षर हमारी पचास वृत्तियों को ही नियंत्रण करते हैं। त्र एवं ज्ञ भी बीजाक्षर है। यद्यपि क्ष का निर्माण क्+ष से, त्र का त् + र तथा ज्ञ का निर्माण ज+ञ के संयुक्ताक्षर के रूप में हुआ है तथापि यह बीजाक्षर अवश्य है। इसके अतिरिक्त भी कई बीजमंत्र है। हमारा विषय बीजमंत्र है इसलिए हम बीजमंत्रों के संदर्भ में अधिक से अधिक ज्ञान प्राप्त करने की कोशिश करेंगे। मैंने सम्पूर्ण शब्द इसलिए नहीं लिखा है कि संभवतया यह हमारी इस जीवन के लिए संभव नहीं हो। पग-पग पर जिस अवस्था की ओर चलेंगे बीजमंत्रों के जानकारी बढ़ती ही जाएगी। अतः कह सकते हैं कि जैसे जैसे किसी का नवनिर्माण होगा बीजमंत्रों की संख्या बढ़ती ही जाएगी। हम आध्यात्मिकता के विद्यार्थी है इसलिए बीजमंत्रों के समग्र लोक की ओर तो नहीं चलेंगे लेकिन आध्यात्मिक विकास में बीजमंत्रों की भूमिका को अवश्य ही पढ़ेंगे। बीजमंत्रों की चर्चा साधकों के बीच होनी चाहिए, असाधक के बीच चर्चा से वे इसके महत्व को बनाये नहीं रख सकते हैं। अतः हम बीजमंत्रों को खोलकर नहीं लिखेंगे। यद्यपि बीजमंत्र सभी के समक्ष खुले पड़े तथापि आध्यात्मिक अनुशासन को मानकर चलना चाहिए। 

सृष्टि के निर्माण में सबसे सूक्ष्म भूत आकाश का उल्लेख आता है। तकनीकी भाषा में कहा जाए तो सृष्टि का सिद्धांत से व्यवहार बदलते समय पहला शब्द का पहला अविष्कार हुआ था। अतः शब्द ही सृष्ट वस्तुओं की मूल है। जिस सृष्ट सत्ता के मूल में जो अक्षर होता है। वही उसका मूल  मंत्र (root Mantra) अथवा बीजमंत्र कहलाता है। चूंकि बीजमंत्र मूलमंत्र भी है अतः सृष्ट वस्तु के बनने के बाद बीज लय को प्राप्त नहीं होता है अपितु उसके मूल रह जाता है। उस मंत्र के द्वारा उस सृष्ट तत्व को नियंत्रण लाया जाता है इसलिए बीजमंत्र को नियंत्रक मंत्र (Control Mantra) भी कहते हैं। 

आध्यात्मिक विज्ञान के शोधपत्र के अनुसार सृष्ट वस्तु की आधारभूत पांच श्रेणियाँ है - पृथ्वी (ठोस पदार्थ), जल ( तरल पदार्थ), अग्नि ( ऊर्जा एवं प्रकाश), वायु ( गैसीय पदार्थ), आकाश (परा भौतिक पदार्थ) इनके भी नियंत्रक मंत्र, मूल मंत्र अथवा बीजमंत्र है। उनके द्वारा उनको नियंत्रण में लाया जाता है।  विद्या साधक इनको धारण करता है, इस पर राज करता इनको अपने पर हावी नहीं होने देता है। अतः इन तत्वों बीजमंत्र से स्मरण करता है। जिस साधक के शरीर की ठोस, द्रव, ऊर्जा,गैस एवं परा भौतिक शक्तियाँ जागृत होती है। यह धीरे धीरे साधक के नियंत्रण में आती है। इनसे प्राप्त होने वाली शक्तियाँ साधक के साथ होती है लेकिन साधक उन्हें अपने उपयोग के लिए नहीं रखता है। यह जनकल्याण के गुरु को समर्पित करता है। 

तत्व धारणा करते समय साधक इन बीजमंत्रों के संपर्क गुजरना पड़ता है। लेकिन इसमें रमने की नसीयत नहीं दी जाती है। साधक का दायित्व तत्व को धारण करना है। तत्व की नियत शक्तियों के साथ खेलना नहीं। बीजमंत्र में सूक्ष्म भाव भी होता है। वह भाव फलादेश के रूप में प्रकट होता है। उसमें ब्रह्म भाव बिठाकर साधक आगे बढ़ता है। 

तत्व धारण हमारा विषय नहीं है इसलिए बीजमंत्र की ओर लौटते हैं। बीजमंत्र  तत्व को धारण करने की शक्ति एवं सामर्थ्य का नाम होता है। जो एक अलौकिक शक्ति होती है। जिसके कार्य कारण को भी समझ लेता है। 

बीजमंत्र साधक का लक्ष्य एवं उद्देश्य नहीं है। यह मात्र आध्यात्मिक यात्रा के दरमियान लक्ष्य तक पहुँचने के मदद करते हैं। अतः बीजमंत्रों में खोना या रमना नहीं है। साधक के लिए खोने के लिए इष्ट मंत्र है तथा रमने के गुरुमंत्र है। बीजमंत्र एक उपकरण है, जिसकी सहायता से अपूर्णता से पूर्णता की यात्रा को सुगम, सरल एवं पारदर्शी बना सकते हैं। साधक का वास्तविक बीजमंत्र उसका इष्ट मंत्र ही है। शेष बीजमंत्र भौतिक, मानसिक एवं आध्यात्मिक अवस्थाओं के है।            
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      ®️ आनन्द किरण ©️
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