सद्विप्रों का अधिनायकतंत्र हमारी आदर्श राजनीति का स्तंभ है। इसलिए सहज ही एक प्रश्न उठता है कि क्या हम लोकतंत्र विरोधी हैं?
हम आर्थिक लोकतंत्र की बात करते हैं, जिसमें अर्थशक्ति का विकेन्द्रीकरण एवं राजनैतिक शक्ति का केन्द्रीकरण करने की बात कहते हैं। आर्थिक लोकतंत्र, जिस आंदोलन की बुनियाद है, वह लोकतंत्र का विरोधी कैसे हो सकता है। आओ हम इस प्रश्न का उत्तर ढूँढते है।
हमारे आर्थिक लोकतंत्र की सर्वोच्च संस्था सद्विप्र बोर्ड है। बोर्ड शब्द के अर्थ में ही लोकतंत्र समाया होता है। निरंकुश तंत्र अथवा राजतंत्र नहीं। निर्णय लेनी की आदर्श प्रणाली को बोर्ड कहते हैं। जिसमें विषय के विशेषज्ञ बैठकर लोकतांत्रिक रीति से निर्णय लेते हैं। सद्विप्र बोर्ड की कार्यवाही एक आदर्श लोकतंत्र की सर्वोत्तम प्रक्रिया है। आओ सद्विप्र बोर्ड को विस्तार से समझते हैं। सद्विप्र बोर्ड पांच बोर्डों का समूह है जिसमें सद्विप्रों का सर्वोच्च बोर्ड, कानून बोर्ड, शासन कार्य संचालन बोर्ड, न्याय व्यवस्था बोर्ड एवं विभिन्न शाखाओं के सभी बोर्ड शामिल हैं। यह सम्पूर्ण प्रक्रिया किसी निरंकुश तंत्र अथवा राजतंत्र की परिभाषा में नहीं समा सकती हैं। इसके लिए लोकतंत्र की व्यवस्था एवं मानसिकता होना आवश्यक है।
आर्थिक लोकतंत्र, जन आंदोलन का परिणाम बनकर स्थापित होता है। जिस लोकतंत्र के आंदोलन को जन आंदोलन बनकर आगे बढ़ना है वह निरंकुश तंत्र अथवा राजतंत्र की वकालत नहीं कर सकता है। आर्थिक लोकतंत्र को केवल जन आंदोलन के सहारे ही आगे नहीं बढ़ना है अपितु सर्वजन हितार्थ, सर्वजन सुखार्थ समर्पित भी रहता है। इसलिए आर्थिक लोकतंत्र में निरंकुश तंत्र अथवा राजतंत्र प्रवेश नहीं कर सकते हैं। यह आर्थिक आजादी की लड़ाई है। स्वतंत्रता निरंकुशता का नहीं लोकतंत्र का आगाज करती है।
विश्व की सबसे सुन्दरतम आर्थिक व्यवस्थाओं 'प्रउत' युग की सर्वनिम्न आवश्यकता की सबके लिए उपलब्धता कराता है तथा प्रतिभा सम्पन्न व्यक्तियों के सम्मान की सम्पूर्ण व्यवस्था प्रदान करता है। प्रउत यही पर नहीं रुकता है, वह युग के मानक स्तर को वृद्धिमान रखता है तथा प्रकृति की विचित्रता का भी सम्मान करता है। यह सभी व्यवस्था दुनिया को राजतंत्र अथवा निरंकुश तंत्र नहीं दे सकता है। इसके लिए आर्थिक लोकतंत्र ही एक मात्र विकल्प है। अतः प्रमाणित रुप कहा जा सकता है कि प्रउत लोकतंत्र विरोधी नहीं, अपितु लोकतंत्र का आदर्श स्वरूप देता है।
आओ हम अपना प्रश्न लेकर आनन्द मार्ग के पास जाते हैं। आनन्द मार्ग का सर्वोच्च पदाधिकारी 'पुरोधा प्रमुख' आदर्श लोकतांत्रिक प्रक्रिया के माध्यम से चुना जाता है। यह किसी पर थोपा नहीं जाता है अथवा पूर्वाधिकार द्वारा उत्तराधिकारी के रूप में मनोनीत करके नहीं जाते हैं। आनन्द मार्ग में पुरोधा बोर्ड, आचार्य बोर्ड एवं तात्विक बोर्ड का होना निरंकुश तंत्र एवं राजतंत्र के सिद्धांतों की हिमायत नहीं करता है। आनन्द मार्ग आदर्श लोकतांत्रिक प्रणाली में विश्वास रखता इसका प्रमाण यह है कि आनन्द मार्ग की संगठनात्मक संरचना के प्रतीक भुक्ति प्रधान, उपभुक्ति प्रधान का समाज द्वारा चुनाव होता है। किसी सत्ता द्वारा मनोनयन नहीं किया जाता है।
हमारे पास सन्यासियों की एक परंपरा अवधूत प्रणाली है। इसमें भी लोकतांत्रिक पद्धति अवधूत बोर्ड को बैठाना प्रमाणित करता है कि हमारा सन्यासी भी निरंकुश नहीं है। अतः हम हर दृष्टि से लोकतंत्र के विरोधी नहीं है।
विषय के अन्त में सद्विप्रों के अधिनायक तंत्र की उक्ति का विश्लेषण कर सवाल का हल ढूंढते हैं। सद्विप्र उस व्यक्ति को नाम दिया है जिसमें आध्यात्मिक नैतिकता का निवास करता है तथा सदैव उसको आगे रखकर सर्वजन हित एवं सर्वजन सुख के लिए जीवन समर्पित करता है। सद्विप्र में विप्रोचित्त उज्ज्वल बुद्धि, क्षत्रियोचित्त प्रचंड शक्ति, वैश्योचित्त उन्नत कौशल एवं शूद्रोचित्त श्रेष्ठ सेवा समाई होती है। इसलिए सद्विप्र को एक विशुद्ध सच्चरित्र मानव के रूप में पेश किया गया है। उनका अधिनायकतंत्र कभी भी लोकतंत्र के महान आदर्श में सेंधमारी एवं निरंकुशता का वरण नहीं कर सकता है। राजतंत्र शब्द तो सद्विप्र में प्रवेश नहीं कर सकता है क्योंकि सद्विप्र जन्मता नहीं अपितु धरती की कठोर माटी पर साधना, सेवा एवं त्याग के बल पर बनता है। यदि सच कहूं तो सद्विप्र का अधिनायकतंत्र ही लोकतंत्र की मर्यादा की रक्षा करता है वरना तो लोकतंत्र सभी बुराइयों का घर बनकर रह जाता है। सद्विप्र बनने के लिए सभी मनुष्य एवं मनुष्योचित्त जीवों के लिए द्वार खुले हैं। इसलिए सद्विप्र को लोकतंत्र विरोधी पेश नहीं किया जा सकता है तथा इनका अधिनायकतंत्र ही सच्चा, पक्का एवं अच्छा लोकतंत्र है।
परमपुरुष इस धरती के लिए अवधूत बनाकर दे दिए। इससे भी बड़ी बात उन्होंने आदर्श समाज के लिए आचार्य, तात्विक एवं पुरोधा भी बनाकर दे दिए। लेकिन एक को भी आधिकारिक सद्विप्र घोषित करके नहीं गए हैं तथा नहीं किसी प्रशिक्षण केंद्र में सद्विप्र बनाने की व्यवस्था दी है। यद्यपि परमपुरुष सद्विप्र बनने की प्रक्रिया देकर गये तथापि किसी को सद्विप्र के रूप में पेश नहीं किया। उसका निर्माण साधना, सेवा एवं त्याग तथा आध्यात्मिक नैतिकता के महान संकल्प शक्ति के लिए छोड़ा है। परमपुरुष ने बताया कि सद्विप्र बनना एक गहन प्रक्रिया है, उसे किसी समारोह में पुरुस्कृत करके नहीं बनाया जा सकता है। यद्यपि सद्विप्र बनाने की कार्यशाला स्थापित की जाती है तथापि सद्विप्र के रूप प्रतिष्ठित स्वयं को ही होना पड़ता है। इसके लिए कोई प्रमाण पत्र का वितरण नहीं होता है। एक व्यक्ति स्वयं की सद्विप्र होने की इस प्रकार घोषणा करता है कि वह स्वयं नहीं बोलता अपितु उसके संपर्क में आने वाले सर्वजन स्वत: ही कहे कि यह सद्विप्र है। यह धरती का उद्धारक अथवा उद्धारक दल है। इसलिए परमपुरुष सद्विप्र की घोषणा नहीं की अपितु यह घोषणा स्वयं मनुष्य को अपने दिव्य गुणों के बल पर करने के लिए छोड़ गए।
0 Comments: