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[श्री] आनन्द किरण "देव"
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साधक की धारक क्षमता का विकास तत्व धारणा से होता है। इसलिए आज हम तत्व धारणा के विषय में चर्चा करेंगे। तत्व धारणा आनन्द मार्ग के आचार्य निशुल्क सिखाते हैं। लेकिन इससे पूर्व दो लेशन सिखने होते हैं।
तत्व धारणा शब्द का शाब्दिक विन्यास तत्व को धारणा करना होता है। सृष्टि के सभी पदार्थ की मूल संरचना पृथ्वी, जल, अग्नि, वायु एवं आकाश नामक पंच महाभूत है। इनको दार्शनिक अर्थ में तत्व कहते हैं। साधक का मन को इन्हें किस धारणा कर सकता है। यह प्रक्रिया आचार्य बताते हैं। हम तत्व धारणा करते हैं।
तत्व धारणा के तत्व की प्रकृति एवं चक्र की प्रकृति का अध्ययन किया जाता है। तत्पश्चात मन में उपयुक्त चक्र पर उपयुक्त तत्व को बिठा कर साधक उन्हें अपने में धारणा करता है। इससे साधक अतिविशिष्ट शक्तियों का विकास होता है। जो साधक के लिए आवश्यक है लेकिन उसका व्यवहार करना सुपथ नहीं बताया गया है। साधक के अंदर विकसित होने यह विशिष्ट शक्तियां साधक को साधना जगत की सभी चुनौतियों के लिए तैयार रखता है। यहाँ रुककर कपालिक साधना पर चर्चा करेंगे।
कपालिक साधना - कपाल के साथ की जाने वाली साधना को कपालिक साधना कहा जाता है। कपालिक साधना महाकौल सिखाते हैं। तथा वह इसको अच्छे समझा सकते हैं। यह भौतिक जगत से लिया गया एक उपकरण होता है। उसके अन्य उपकरण के एक निर्धारित प्रक्रिया के आध्यात्मिक जगत चनौतियों के अपने आप को तैयार करते हैं। कपालिक साधकों का अनुभव बताता है कि यह साधना इन्हें आध्यात्मिक दृष्टि से मज़बूत बनाती है।
पुनः तत्व धारणा की ओर चलते हैं। तत्व धारणा की साधना से पूर्व मधु विद्या में दक्ष होना होता है। मधु विद्या साधना के संदर्भ में आगामी आलेख में चर्चा करेंगे। तत्व धारणा की साधना तत्व की शक्तियों को साधक में प्रवेश कराती है। अतः ब्रह्म भाव में प्रबल हुए बिना करने साधक की गति जड़ हो सकती है। अतः सदगुरु मधु विद्या के द्वारा साधक को तैयार करते हैं। तत्व साधना में पंच महाभूत के आध्यात्मिक महात्म्य से साधक सीधा संपर्क होता है।
तत्व धारणा क्यों?
साधक का लक्ष्य परमब्रह्म है। वही परमपद है। फिर उस राह पंचमहाभूत की धारणा क्यों?
उत्तर - सद्गुरु का लक्ष्य अपने पुत्र/पुत्री को परमपद तक ले जाना है। परमपद की प्राप्ति के लिए स्वयं परमब्रह्म को धारण करना होता है। इसलिए साधक की धारणा क्षमता में विकास होना आवश्यक है। धारण क्षमता विकास सर्वोत्तम तरीका धारणा है। यह स्थूल जगत से सूक्ष्म जगत होती हुई कारण जगत पहूंचती है। जहाँ उन्हें परमपुरुष को धारण करना होता है। अतः तत्व धारणा की व्यवस्था साधना का अनिवार्य अंग है। तत्व धारणा से साधक की शक्ति में होने वृद्धि उसे परमपद तक ले जाने में सहायक है तथा उससे मिलने वाले ऐश्वर्य एवं आध्यात्मिक शक्तियों पर सदैव साधक को सदगुरु का अधिकार रखना है। स्वयं कभी भी इसका अधिकारी न माने। इसलिए तत्व धारणा के तुरंत बाद गुरु वंदना अच्छा है।
तत्व धारणा कैसे?
तत्व धारणा साधक के लिए इतनी महत्वपूर्ण है तो प्रश्न उठता है कि तत्व धारणा कैसे की जाए?
उत्तर - यह आचार्य ही बता सकते हैं। लेकिन साधक को तत्व धारणा करने से पूर्व ब्रह्मभाव में प्रगाढ़ होना आवश्यक है। मधुविद्या की शिक्षा भी आचार्य ही देते हैं। साधक यहाँ स्थूल, सूक्ष्म एवं कारण समस्त सृष्टि का भार धारण करने जा रहा है इसलिए आध्यात्मिक जगत में पलायन का पाठ नहीं पढ़ाया जाता है। अतः पलायनवादी साधना अथवा ब्रह्म को नहीं समझने वाली अवधारणा साधक को अनन्त नहीं बना सकती है। अनन्त बने बिना पूर्णत्व संभव है।
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करणसिंह
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