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[श्री] आनन्द किरण "देव"
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चक्र शोधन से पूर्व चक्रों का प्राणवान किया जाना होता है। इसलिए साधना के चौथे लेशन के रूप में प्राणायाम का अध्ययन करेंगे। प्राणायाम साधना आनन्द मार्ग के आचार्य निशुल्क सिखाते हैं। लेकिन इससे पूर्व साधना के तीन लेशन सिखना आवश्यक है।
प्राणायाम शब्द का शाब्दिक विन्यास प्राण को आयाम देना है। आयाम शब्द का एक अर्थ स्वरूप देना है। प्राणायाम शब्द का अर्थ मात्र प्राणायाम को नियंत्रित अथवा नियमन करना ही है। उसको अनन्त का स्वरूप देना भी होता है। जो लोग प्राणायाम को मात्र रेचक व पूरक अथवा रेचक, कुम्भक व पूरक की प्रक्रिया समझते हैं। वे प्राणायाम के विषय में अनभिज्ञ है। प्राणायाम में रेचक, कुम्भक व पूरक तो होते ही लेकिन साथ में प्राण को अनन्त का आकार भी दिया जाता है। अनन्त निराकार होता है इसलिए प्राणायाम को निराकार में ही बिठाया जाता है। प्राणायाम की प्रक्रिया तो आचार्य ही सिखा सकते हैं लेकिन इस विषय में चर्चा करने के क्रम में बताना आवश्यक है कि प्राणायाम जड़ चक्रों को नियंत्रित करने के लिए नहीं दिया जाता है। इसके लिए आसन, मुद्रा एवं बंध है। प्राणायाम मनो भौतिक, मानसिक एवं आध्यात्मिक चक्र को नियंत्रित करता है। इसलिए अनाहत से सहस्त्रारचक्र तक प्राणायाम को विस्तार दिया जाता है। इसके लिए चारो संध्या में साधक को अलग-अलग स्थान पर नियमक बिन्दु दिया जाता है। इसका क्रम अलग क्यों होता है। यह रहस्य गुरु ही बता सकते हैं तथा संध्यावार इनका स्थान आचार्य बताते हैं।
आसन साधना - किसी विशेष स्थिति में शरीर को मोड़ना तथा उसके प्राण क्रिया एवं मानसिक क्रियाओं नियमित करने का नाम आसन साधना है। यह शरीर, प्राण एवं मन की क्रिया है। इस मूलतः प्रभाव निम्नतर चक्रों पर होता, इसके उच्चतम चक्र भी नियमित होते हैं।
मुद्रा साधना - एक विशेष स्थिति में शरीर को रखकर प्राण एवं मन को नियमित करने वाली क्रिया को मुद्रा कहते हैं। यह मूलाधार से आज्ञाचक्र जा सकती है। लेकिन मूलतः मूलाधार से मणिपुर तथा आंशिक रूप अनाहत व विशुद्ध तथा उच्च स्तर पर आज्ञाचक्र का नियमन होता है।
बंध साधना - एक विशेष अवस्था में प्राण एवं मन को बंध करना बंध कहलाता है। इसमें कुम्भक अधिक महत्वपूर्ण होता है।
यह सभी शरीर, प्राण एवं मन के नियमन में भूमिका निभाते हैं। लेकिन प्राणायाम आध्यात्मिक एवं आत्मिक भी होता है। अतः प्राणायाम बहुत सावधानी से आचार्य द्वारा बताई गई विधि से ही करना होता है।
प्राणायाम से न केवल नियंत्रित चक्र ही प्राणवान होता अपितु सभी चक्र प्राणायाम एवं ऊर्जावान होते हैं। प्राणायाम में ब्रह्मभाव रहने के कारण तेजवान भी होते हैं। अतः प्राणायाम करने वाला साधक तेजस्वी होता है।
आओ प्राणायाम सिखते है। लेकिन प्राणायाम सिखने से पूर्व साधक की धारक क्षमता का विकास होना आवश्यक है। इसलिए तत्व धारणा इससे पूर्व सिखनी होती है। तत्व धारण के विषय आगामी आलेख में चर्चा करेंगे। प्राणायाम को साधना के रूप में लेना चाहिए न कि अनुलोम विलोम अथवा किसी अन्य शारीरिक क्रिया के रूप में लेना चाहिए। कपाल भारती प्राणायाम की सबसे जड़तम क्रिया है। इसलिए योगशास्त्र इन्हें मनो आध्यात्मिक क्रिया में रखता है।
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करणसिंह
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