कृषि आधारित अर्थव्यवस्था की आधारशिला - ग्राम पंचायत (Foundation stone of agriculture based economy - Gram Panchayat)

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             AकिरणM
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‌स्वाधिनता से पूर्व हथाई हमारी पंचायत थी। ग्रामवासियों के सामाजिक, आर्थिक, सांस्कृतिक एवं धार्मिक हितों‌ का ख्याल रखा जाता था। वहाँ से फरियादी की फरियाद सुनकर न्याय दिया जाता था। चूंकि उस युग में राजनीति का जन्म नहीं हुआ था, इसलिए किसी के कोई राजनैतिक हित नहीं थे। अतः उसके सिद्ध की गवाह स्थली हमारी हथाई नहीं थी। इसके अलावा बिलिया फालना गाँव की ठाकुरदारी के अधीन था तथा डुंगरली भी राणावतों की ठाकुरदारी के अधीन था। मालारी में अपनी स्वतंत्र ठाकुरदारी थी। अतः हम रुककर ठाकुरदारी, जागीदारी एवं खालसा गाँव पर दृष्टि डालते हैं। ठाकुरदारी वाले गाँव की‌ संपदा का मालिक ठाकुर होता था, जागीदारी वाले गाँव में सामूहिक जागीदारी होती थी तथा खालसा राजा के द्वारा सीधा नियंत्रित होता था। अतः ठाकुरदारी एवं खालसा गाँव में लोकतंत्र की पाठशाला नहीं होती थी लेकिन सामूहिक जागीदारी में एक जाति प्रभुत्व वाली लोकतंत्र की पाठशाला अवश्य होती थी। हमारा कार्य हथाई की कार्यप्रणाली से ग्राम पंचायत की कार्य प्रणाली सिखना है। इसलिए हथाई को प्रेरणा केन्द्र बनाकर आगे चलते हैं। रावला इसलिए प्रेरणा केन्द्र इसलिए नहीं होता था कि वहाँ ठाकुर का फैसला होता था लोकतंत्र की आवाज नहीं। अतः हथाई को गाँव की लोकतंत्र की पहली पाठशाला मानकर ग्राम पंचायत की जिम्मेदारी पढ़ते हैं। 

हथाई में 'हम' तथा रावला में 'मै' रहता था। इसलिए हथाई लोकतंत्र के सिख बनकर उभरती है। ग्राम पंचायत शिवतलाव में एक मात्र शिवतलाव में हथाई थी। यह शिवतलाव के नागरिकों की पंचायत थी। यद्यपि उस युग में अलग-अलग जातिय पंचायत समय पर किसी निश्चित उद्देश्य के लिए अलग-अलग जगह बुलाई जाती थी लेकिन उसका समुदाय के लोगों को न्याय देना तथा जाति हद बनाये रखना था। वह व्यवस्थापिका एवं कार्यपालिका का कार्य नहीं करती थी। उस गाँव के सभी बासुंदों के फौजदारी एवं दीवानी मामलों का न्याय हथाई से ही होता था। हथाई बुलाने का अधिकार एक विशेष संस्था को होता था, जो गाँव की सार्वजनिक व्यवस्था संभालती थी तथा फरियाद चाहे तो अति लघु नोटिस पर हथाई बुला सकता था। यह हथाई न्यायपालिका का काम करती थी। हम समझने के लिए निकले हैं कि हथाई किस प्रकार आमजन की आवाज थी। हथाई पर अर्द्ध वार्षिक होली एवं दीपावली के अवसर अधिवेशन होता था। उसमें सामूहिक हिसाब, कर का निर्धारण एवं सामूहिक विकास कार्य के एजेंडे बनते थे। अति प्राचीन काल में यह हथाई प्रतिव्यक्ति आय का भी अवलोकन करती थी। यदि कोई भाई व्यक्तिगत बीमारी अथवा आपदा के कारण सामूहिक दौड़ से पीछे रह जाता था तो उसे बराबर लाने पर भी विचार होता था। यहाँ पर सभी को अपना मत रखने का खुला अधिकार था। फैसला आमराय अथवा बहुमत की राय होता था। यद्यपि इस युग में भी प्रभावशाली आवाज महत्वपूर्ण थी तथापि आम आवाज को दबाया नहीं जाता था। यहाँ कर निर्धारण की अविवेकपूर्ण समान व्यवस्था नहीं थी अपितु कर निर्धारण की विवेकपूर्ण आदर्श व्यवस्था थी। जो आर्थिक हेसियत के आधार पर तय होती है। हमारे कर निर्धारण का चलयमान कृषि फार्म (अट) था। प्रति घर नहीं, प्रति अट(कृषि फार्म) कर का निर्धारण होता था। कर निर्धारण की आदर्श व्यवस्था में कृषि फार्म रहित अथवा कामकाजी जातियों पर कोई कर नहीं लगाया जाता था। उस युग में वस्तु विनिमय था इसलिए सेवा एवं वस्तु के बदले वस्तु ही कर तथा व्यवसाय का आधार था। हथाई सामूहिक हित के आधार पर काम करती थी लेकिन व्यक्ति के अधिकार की भी रक्षा करती थी। 

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जल एवं सफाई व्यवस्था के अतिरिक्त विकास मूलक कार्य पंचायत के प्रत्यक्ष कार्य है। लेकिन इस अर्थ यह नहीं की पंचायत की जिम्मेदारी यही पर खत्म हो जाती है। गाँव में जितनी भी सरकारी, अर्द्ध सरकारी, सहकारी एवं गैर सरकारी संस्थान है, उनके के कार्यों पर निगरानी रखना पंचायत का कार्य है। यदि यह संस्थान जनहित एवं अपने उद्देश्य से विमुख चलती है तो पंचायत उन्हें उसके उद्देश्य एवं हद बता सकती है। विद्यालय एवं चिकित्सालय प्राय गाँव के सबसे बड़े सरकारी केन्द्र होते हैं। इसलिए बालकों शिक्षा सही चले इसलिए हर विद्यालय में एक SDMC का गठन होता है। उसका अध्यक्ष प्रायः एक ग्रामीण अथवा अभिभावक होता है। पंचायत इस संस्था को नाममात्र की बनने नहीं देकर एक जागरूक संस्थान बना सकता है तथा विद्यालय के अध्यापको के कार्य पर नजर रख सकती है। ठीक उसी प्रकार चिकित्सालय भी ठीक ढंग कार्य करें उसकी निगरानी भी कर सकती है। पुनः पंचायत के मूल कार्य की ओर लौटते हैं। जल एवं सफाई व्यवस्था पंचायत का प्रत्यक्ष कार्य है। इसकी जरूरत नागरिकों को प्रतिदिन होती है। इसलिए इस दिक् दृष्टि रखना एवं सुचारू रुप चलाना पंचायत का दायित्व है। पंचायत की प्रत्यक्ष जिम्मेदार में विकास कार्य है, जिसमें बिना भ्रष्टाचार के अधिक से अधिक ठोस का करवाना पंचायत की जिम्मेदारी में है। इसके बजट पर पंचायत का अधिकार होता है। पंचायत सबसे अधिक बदनामी पट्टा तथा भूपट्टी काटने के मनमानी एवं दोषपूर्ण सिद्धांत के कारण लेती है। जब भी पट्टा वितरण में सरपंच ने मनमानी, घूसखोरी एवं लूटखसोट की है तब सरपंच को बदनामी उठानी पड़ी। सरपंच को अपने किए की सजा भी भुगतनी पड़ सकती है। अतः एक आदर्श व्यवस्था के तहत पट्टा वितरण अधिकार हीन को अधिकार देने की नीति पर होना चाहिए। इसमें भाई भतीजावाद अथवा मित्र समर्थक वाद अथवा स्वार्थ सिद्ध कदापि नहीं होनी चाहिए। 


पंचायत के आदर्श दायित्व के साथ आओ एक आदर्श पंचायत बनाते हैं। 
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