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A किरण M
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एक चरित्रवान, नैतिकवान एवं ईमानदार सरपंच का नाम बड़े गर्व से लिया जाता है। उनकी पीढियाँ भी गौरवान्वित एवं सम्मानित होती है। लेकिन एक बेईमान, चरित्रहीन, अनैतिक तथा भष्ट्राचारी सरपंच को सभी कोसते है तथा उनकी पीढियों को भी उनकी करतूतों का फल भोगना पड़ता है। इसलिए यदि हमें सरपंच बनना है तो चरित्रवान, नैतिकता एवं ईमानदार सरपंच बनना चाहिए, वरना कभी भी सरपंच बनने का नहीं सोचना चाहिए। अपने निज स्वार्थ की बलिवेदी पर गाँव चढ़ाने की चाहत रखने वाले नेतृत्व इतिहास में खलनायक बन जाते हैं। इसके विपरीत परहित में अपने निज स्वार्थ का बलिदान देने वाले महानायक बनकर लोगों के दिलों पर राज करते हैं। अतः राजा बनो तो श्रीराम जैसे वरना नेता बनो ही नहीं है। हम समझ गए कि आज हमें ग्राम पंचायत के नेता सरपंच के बारें में चर्चा करनी है।
ग्राम पंचायत का प्रथम नागरिक, ग्राम पंचायत का मुखिया एवं ग्राम पंचायत का नेता सरपंच कहलाता है। अन्य शब्दों में कहा जाए तो पंचों का पंच सरपंच कहलाता है। सरपंच शब्द का शाब्दिक विन्यास सर+पंच होता है। जिसमें सर का है - वरिष्ठतम, सम्मानित एवं आदरणीय जन अथवा प्रथम, प्रधान तथा पंच का अर्थ निर्णयकर्ता। अर्थात सरपंच शब्द का साहित्यक अर्थ हुआ निर्णयकर्ताओं में प्रधान।
(How should our Sarpanch be?)
सरपंच गाँव का मुखिया है, इसलिए हमारा सरपंच हमारे घर के मुखिया के जैसा हो। जिस प्रकार घर का मुखिया समस्त परिवार की जिम्मेदारी अपने कंधों पर लेता है तथा सभी के सुख-दु:ख का ख्याल रखता है। उसी प्रकार का सरपंच हमें चाहिए। जो यह नहीं कहे कि दुखी मेरे पास आए, अपितु यह सोचे की मेरे गांव परिवार में कोई दुखी रहता है तो वह मेरी जिम्मेदारी में, मैं उसके पास सबसे पहले पहूँचू। हमें हमारा सरपंच एक अभिभावक एवं पिता व माता तुल्य चाहिए। इससे बड़ी कोई सरपंच की योग्यता नहीं है। क्या सरपंच बनने की मनचाहा रखने वाला समस्त ग्रामवासियों का अभिभावक बनकर जी सकता है, तो सरपंच बनिए। वरना सरपंच बनना सोचे ही नहीं। आओ हम इतिहास की ओर चलते हैं।
भारतीय इतिहास का प्रथम पृष्ठ सिन्धुघाटी सभ्यता रहा है। वहाँ की राजनीति में पुरोहित राजा के प्रमाण मिले हैं। उस युग में नगर राज्य अथवा ग्राम राज्य होते थे। उसके मुखिया को राजा अथवा पुरोहित कहा जाता था। पुरोहित शब्द का अर्थ होता पुर अर्थात नगर अथवा गाँव का हित करने वाला। आज हम उसी पुरोहित राजा को समझकर सरपंच की भूमिका को तय करेंगे। पुरोहित राजा प्रतिदिन भोजन करने से पूर्व यह तय करता था कि मेरे नगर अथवा गाँव में कोई भुखा तो नहीं है। नगर अथवा गाँव में कोई अभुक्त नहीं रहने पर भोजन करता था। यदि अन्न, वस्त्र, आवास, चिकित्सा एवं शिक्षा के अभाव में एक भी नागरिक रहता है तो पुरोहित राजा सुख की नींद नहीं लेता है। इसलिए पुरोहित राजा आदरणीय, सम्मानीय एवं पूजनीय माना गया था। क्या सरपंच पुरोहित राजा बन सकता है? हा तो ग्राम पंचायत सुरक्षित हाथों में है।
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यह कोई नारा अथवा अभिवादन नहीं, यह मानव इतिहास की आदर्श राजनैतिक अभिकल्पना का बिम्ब था। राजा हो तो राम जैसा, वरना राज्य राजा विहिन ही रहना उचित है। इसलिए भारतवर्ष का सबसे प्यारा एवं लोकप्रिय अभिवादन राम-राम बना। इसलिए लिए तो भारतवर्ष का सबसे अधिक लोगों का सरनेम राम बना। इसलिए तो भारतवासियों का आदर्श वाक्य जय श्री राम, जय जय श्री राम बना। हे सरपंच बनने वालो यदि श्रीराम जैसा किरदार निभा सकते हो तो सरपंच बनो वरना रावण की तरह जलाये जाओगे।
सरपंच बनने की अन्तिम यात्रा में शिवतलाव में आज दिन तक सर्वोत्तम सरपंच आदरणीय श्रीमान दाता श्री सबल सिंह जी थे। क्यों उन्होंने ईमानदारी, जिम्मेदारी एवं सत्यता की मिसाल कायम की इसलिए सब उनको याद करता है। वरना तो सबसे बेईमानी सरपंच को ढूंढ कर गाली ही देते हैं। सबसे बड़ा बेईमानी सरपंच कौन यह हमारी विषय वस्तु नहीं है। आओ एक चुनौती देता हूँ कि कोई है, जो ईमानदारी, सत्यता, एवं जिम्मेदारी में दाता श्री से भी आगे बढ़ सकता है। स्वागत है - आप सरपंच बनिए।
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