आदर्श पंचायत ( Ideal Panchayat)

          हमारी ग्राम पंचायत

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              AकिरणM
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‌एक आदर्श ग्राम पंचायत बनाने की यात्रा में आज हम ग्राम पंचायत पर ही चर्चा करेंगे। हमने इस यात्रा में सर्वप्रथम शिव की गण व्यवस्था का आदर्श देखा, तत्पश्चात पंच परमेश्वर की उक्ति को समझा, उसके बाद सरपंच भी भूमिका को परखा। आज हम ग्राम पंचायत का समग्र स्वरूप समझने की कोशिश करेंगे।

 ग्राम पंचायत का अर्थ उस पंचायत क्षेत्र के समस्त नागरिक एवं सरकारी संस्थान के कर्मचारियों का समूह है। जब तक सहकारी सेवाओं के संस्थान ग्राम पंचायत की भूमिका से अलग रुप में देखा जाएगा तब तक एक आदर्श गाँव का निर्माण नहीं कर सकते हैं। आओ ग्राम पंचायत के समस्त नागरिकों एवं सरकार संस्थान की भूमिका को समझते हैं। 

शब्दों के शाब्दिक विन्यास के अनुसार नगर में रहने वाला नागरिक एवं गाँव में रहने वाला गवइया अथवा ग्रामीण अथवा ग्रामीण कहलाता है। लेकिन राजनीति की भाषा सभी देशवासियों के अंग्रेजी शब्द citizen का प्रयोग किया गया है। अतः गाँव एवं शहर सबके रहवासियों के एक उभयनिष्ठ शब्द नागरिक है। नागरिक शब्द का भावगत अर्थ देश, राज्य, जिला, तहसील एवं गाँव के प्रति संवेदनशील एवं जिम्मेदार व्यक्ति हैं। जो व्यक्ति इन सामुहिक संस्थान के प्रति उदासीन, तटस्थ अथवा असंवेदनशील व गैर जिम्मेदार है। वह वहाँ का निवासी होने के बाद भी नागरिक नहीं है। लोकतंत्र में अवस्था का मूल कारण है। गैर जिम्मेदार एवं असंवेदनशील भीड़ का बढ़ना। चंद पैसों में वोटर का बिकना, चुनाव में दारू मांस का प्रचलन होना। ध्रूमपान, नास्ता एवं पार्टी चार्टी में अपने स्वाभिमान को बेचना एक नागरिक के लक्षण नहीं है। जब तक देश एवं गाँव में ऐसी किस्म के मतदाता है तब तक एक आदर्श ग्राम की संरचना असंभव है। अतः आज की सभ्यता एवं संस्कृति का पहला कर्तव्य आदर्श नागरिक का निर्माण करना है। गाँव हमारा अपना परिवार है। यदि उसके प्रति हम संवेदनशील एवं जिम्मेदार नहीं है तो हमें एक मनुष्य कहलाने का हक नहीं है। पैसों एवं पार्टी चार्टी में बिक जाना अथवा चुनाव को उस नजरिये से देखना एक आदर्श सोच नहीं है। *`ईमानदार सरपंच की चाहत रखने वालों को स्वयं ईमानदार बनाना ही होगा`* सुशासन केवल जनप्रतिनिधियों की स्वच्छता से ही नहीं जनता की जागरूक एवं जिम्मेदारी से आता है। अतः नीतिशास्त्र कहता है कि *समस्त नागरिकों को यम-नियम में प्रतिष्ठित होना ही होगा।* आदर्श नागरिक वही है, जो सबके सुख दुःख में साथ रहे तथा मिलकर एक अच्छा एवं सच्चा समाज बनाए। 

                   जनप्रतिनिधि
जनप्रतिनिधि जनता की‌ आवाज अथवा अपने क्षेत्र के लोगों की सामूहिक आवाज अथवा मत है। आज लोकतंत्र में हमारे प्रतिनिधि हमारे वोटों से जीत जाते हैं तथा जनता का मत देने की बजाय स्वयं की मन इच्छा का वोट देते रहते हैं। इसलिए जनप्रतिनिधि उसी कहना चाहिए, जो अपनी जनता का मतदाता हो। आज दलबदलू प्रतिनिधि एक गैर जिम्मेदार जनप्रतिनिधि है। दल के दलदल में फसे अंधभक्त प्रतिनिधि जनता के नहीं अपने दल के मोहरे है। अतः आदर्श जनप्रतिनिधि को अपने निजी सुख के लिए नहीं समग्र समाज के सुख को अपना सुख मानना चाहिए। अतः हमारे प्रतिनिधि को ऐसा गढ़ों तभी तो हम गढ़ का निर्माण कर पाएंगे वरना हमारा कार्य गढ़इयां निर्माण का रह जाएगा‌। 

सरकार का प्रत्येक संस्थान जनता का है तथा यह जनता के लिए भी है लेकिन विडम्बना यह है कि यह जनता के द्वारा नहीं है। इसलिए एक कर्मचारी जनता के प्रति नहीं सरकार एवं उच्चाधिकारियों के प्रति जिम्मेदार है। चूंकि हम ग्राम पंचायत की बात कर रहे है तो ग्राम पंचायत मात्र पंचायत भवन तथा जनसमुदाय का समूह नहीं वहाँ जितनी भी सरकारी गैर सरकारी संस्थान है। वे सभी गाँव एवं पंचायत के प्रति जिम्मेदार है। विद्यालय, चिकित्सालय, पटवारी, डाककर्मी, कृषि विभाग कर्मी तथा अन्य सभी प्रतिष्ठान के कर्मी भी पंचायत एवं जनता के संरक्षण में है। अतः एक आदर्श ग्राम पंचायत इन सबका साथ लेकर एक आदर्श गांव की रचना क्यों नहीं कर सकती है? अब चलते कुछ गैर सरकारी संस्थान की ओर यह यदि गाँव के सामूहिक हित को प्रभावित करती है तो निजी कहकर अपना पल्ला नहीं झाड सकती है। उन्हें भी पंचायत के साथ मिलकर एक आदर्श समाज की रचना में अपनी भूमिका का निवहन करना ही होगा। अतः दुकान, डेयरी इत्यादि निजी संस्थान भी गाँव पंचायत के अनुशासन की परिधि में है। 

               आदर्श पंचायत
लोकतंत्र की नींव गाँवों में ग्राम पंचायत तथा शहरों में नगर निकाय है। यदि गाँव पंचायत एवं नगर निकाय आदर्श प्रतिनिधित्व के प्रतीक नहीं है तो कभी भी लोकतंत्र का मंदिर अच्छा नहीं बन सकता है। अतः मेरा व्यक्तिगत सुझाव है कि ग्राम पंचायत को लोकतंत्र का आश्रम बनाना चाहिए‌। आश्रम उस संस्थान को कहते हैं, जहाँ सच्चरित्र का निर्माण होता है। लोग जब भी पंचायत जाए सुख को बोध एवं परेशानियों से हल्का बनकर लौटना चाहिए। अतः लोकतंत्र के संस्थान को आध्यात्मिक नैतिकता से भरना ही चाहिए। 

विषय के अन्त में शिवतलाव पंचायत की ओर चलते हैं। यह शिवतलाव, डुंगरली, बिलियाँ एवं मालारी नामक चार गाँव को समूह है। इसलिए सभी के प्रति समान जिम्मेदार है। यह यहाँ की जमीन पर वैध, अवैध तरीकों पट्टा, भूपट्टी काटने वाली संस्थान नहीं है। यह सर्वजन हितार्थ सर्वजन सुखार्थ समाज बनाने वाली संस्थान है। हमारे राजनैतिक, आर्थिक, सामाजिक एवं धार्मिक हितों को यदि पंचायत सुरक्षित रख पाएगी तो एक आदर्श पंचायत है। लोकतंत्र के पहले हमारी हथाई इस जिम्मेदार को बेखुबी से निभाती थी। `हथाई न्याय का मंदिर, लोकतंत्र की आवाज तथा जनता के सुख दुःख की साथी थी। अतः उसी आदर्श मूल्यों के साथ आदर्श पंचायत का निर्माण करो।` 
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