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[श्री] आनन्द किरण "देव'
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ध्यान सिखने से पूर्व साधक को अपना सम्पूर्ण शोधन करना होता है। शोधन की प्रक्रिया का आध्यात्मिक जगत नाम 'चक्र शोधन' हैं। 'चक्र शोधन' को आनन्द मार्ग की साधना में पांचवा लेशन कहा गया है। आज हम चक्र शोधन के विषय में चर्चा करेंगे।
आध्यात्मिक जगत में चक्रों की भूमिका महत्वपूर्ण है। हमारे शरीर में शारीरिक, मानसिक एवं आध्यात्मिक क्रियाओं को नियंत्रित करने वाले स्थानों को चक्र कहते हैं। हमारे शरीर में अनेक चक्र है। इनमें से सात मुख्य चक्र है। यह क्रमशः मूलाधार चक्र, स्वाधिष्ठान चक्र, मणिपुर चक्र, अनाहत चक्र, विशुद्ध चक्र, आज्ञा चक्र एवं सहस्त्रारचक्र है। चक्र शोधन की प्रक्रिया का आनन्द मार्ग के आचार्यों से निशुल्क सिख सकते हैं लेकिन इससे पूर्व चार लेशन सिखने होते हैं। आओ अब चक्र शोधन करने के लिए निकलते हैं।
चक्र शोधन का अर्थ चक्र का शोधन होता है। इसमें सबसे पहले चक्र स्थित का निर्धारण किया जाता है। तत्पश्चात उस ध्यान लगाया जाता तथा अन्त में उस चक्र का शोधन किया जाता है। चक्र शोधन करता सर्वप्रथम शरीर में चक्र स्थिति सुनिश्चित करता है। इसके बाद चक्र पर ध्यान केंद्रित करना होता है। इसके बाद शोधन की ओर चलते हैं। शोधन के लिए चक्र को अपने ही स्वरूप में अनुभव किया जाता है। ऐसा क्यों? इसका रहस्य मात्र गुरु ही बताते हैं। लेकिन इसकी प्रक्रिया आचार्य बताएंगे।
यह चक्र मानव की शारीरिक, मानसिक एवं आध्यात्मिक गतिविधियों के केन्द्र अथवा प्राण बिन्दु होते हैं। इसलिए चक्र शोधन से पूर्व चक्रों प्राणवान बनाना जरूरी है। प्राणवान बनाने की प्रक्रिया का नाम प्राणायाम कहते हैं। जिसकी चर्चा आगामी आलेख में करेंगे। पुनः चक्र शोधन की ओर चलते हैं। चूंकि चक्र मानव शरीर की शारीरिक, मानसिक एवं आध्यात्मिक क्रियाओं के नियंत्रक बिन्दु है। इसलिए उन पर साधक नियंत्रण आवश्यक है। अतः ध्यान से पूर्व साधक यह अधिकार प्राप्त कर लेता है।
चक्रों का शोधन - सभी चक्रों के शोधन की एक ही प्रक्रिया एवं रीत है। चक्रों की शक्ति को देखना तथा उसको अपने में स्थापित करना होता है। इससे साधक वृत्तियों के नहीं वृत्तियाँ साधक के नियंत्रण में रहती है। प्रत्येक चक्र में चक्र शोधन के बाद एक रहस्य प्रकट होता है जो साधक को आत्मसात कर लेना होता है। यह अपार ऊर्जा के स्रोत होते हैं। अतः चक्र शोधन साधना में पारंगत साधक की कार्य क्षमता में बहुत अधिक विकास होता है। प्रत्येक चक्र में बहुत सी गतिविधियों होती है। जिसे माइक्रोविटा का साधक सहजता से पहचान सकता है।
माइक्रोविटा साधना - चक्र में धनात्मक एवं ऋणात्मक माइक्रोविटा का वास होता है। माइक्रोविटा का साधक चक्रों में उसका संघर्ष देखता है तथा अपने आध्यात्मिक बल से धनात्मक माइक्रोविटा की विजय सुनिश्चित करता है तथा उन्हें परमपुरुष की ओर मोड़ देता है। मैंने अपनी पुस्तक रामायण में ब्रह्म विज्ञान में इसको समझने की कोशिश की है। जो प्रत्येक चक्र के बारे विस्तार से सिखती है।
चक्र शोधन की साधना कर रहे हैं। इसलिए माइक्रोविटा की साधना की ओर अधिक नहीं जाएंगे। भौतिक एवं मानसिक क्रियाओं का आध्यात्मकरण ही चक्र शोधन का केवल एकमात्र उद्देश्य नहीं अपितु चक्र शोधन का उद्देश्य चक्रों में परम रस का संचार करना भी है। इसलिए चक्र शोधन को ध्यान साधना का पूर्वगामी बनाया गया है। चक्र शोधन में गहन होने से साधक वास्तविक अर्थ में आनन्द मार्गी बन जाता है। वह आनन्द मार्ग को अपने में तथा संसार में देखता है।
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करणसिंह
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