सद्विप्र नेतृत्व का उदय (Rise of Sad'vip'ra leadership)


सद्विप्र शब्द के अर्थ में यम नियम का पालन करना तथा ब्रह्म भाव की साधना का अभ्यासी होना न्यून से न्यूनतम योग्यता है। अतः वह व्यक्ति सद्चरित्र तो हो सकता है लेकिन सद्विप्र नहीं हो सकता है, जो खंड भाव का साधक है। अतः भौम भाव प्रवणता एवं सामाजिक भाव प्रवणता के बल पर नेतृत्व वह सद्विप्र नहीं कहे जा सकते हैं क्योंकि वे सद्विप्र की प्रथम परीक्षा में ही असफल हो जाते हैं। इसलिए इतिहास के गर्भ में सद्विप्र नेतृत्व को खोजना तथा उनके नेतृत्व में समाज आंदोलन की पृष्ठभूमि लिखने में बहुत अधिक सतर्कता बरतने की आवश्यकता है।
-------------------------
जब जब अव्यवस्था, अराजकता एवं पाप ने पांव पसारे तब तब सद्विप्रों ने भृकुटी तानी है। अधर्म के साम्राज्य का समूल नाश करके धर्म की प्रतिष्ठा करने में सद्विप्र सदैव अग्रणी रहे हैं। आज न्याय, नीति और नैतिकता खतरे में है और ऐसे समय में सद्विप्र नेतृत्व की चर्चा सामयिक है। 

इतिहास के गर्भ में सद्विप्रों की खोज में निकलने से पूर्व एक सद्विप्र की न्यूनतम योग्यता का अवलोकन करेंगे। सद्विप्र शब्द के अर्थ में यम नियम का पालन करना तथा ब्रह्म भाव की साधना का अभ्यासी होना न्यून से न्यूनतम योग्यता है। अतः वह व्यक्ति सद्चरित्र तो हो सकता है लेकिन सद्विप्र नहीं हो सकता है, जो खंड भाव का साधक है। अतः भौम भाव प्रवणता एवं सामाजिक भाव प्रवणता के बल पर नेतृत्व वह सद्विप्र नहीं कहे जा सकते हैं क्योंकि वे सद्विप्र की प्रथम परीक्षा में ही असफल हो जाते हैं। इसलिए इतिहास के गर्भ में सद्विप्र नेतृत्व को खोजना तथा उनके नेतृत्व में समाज आंदोलन की पृष्ठभूमि लिखने में बहुत अधिक सतर्कता बरतने की आवश्यकता है। आइये सद्विप्र नेतृत्व के उदय की अग्निपरीक्षा देने चलते हैं। 

(१) प्रागैतिहासिक काल (Pre Historic Period) एवं सद्विप्र नेतृत्व- पाषाण, कांस्य एवं लौह युग में शूद्र युग क्षत्रिय युग में परिवर्तित हो रहा था। इस युग में विप्र तथा वैश्य मानसिकता का विकास नहीं हुआ था। उसके अभाव में समाज चक्र पूर्ण नहीं हो पाया था। अतः इस काल में सद्विप्र नेतृत्व की कल्पना करना भी आशातीत था। इस युग के नेतृत्व में सद्वृत्तियों का समावेश तो हो सकता है। संभव है कि नैतिकता का प्रथम अध्याय भी लिखा जा चुका हो लेकिन ब्रह्म भाव साधना के अभाव में सद्विप्र नेतृत्व की संभावना ही शून्य है। 

(२) वैदिक युग एवं सद्विप्र नेतृत्व- प्रागैतिहासिक युग के बाद ऐतिहासिक युग के प्रथम चौखट पर वैदिक युग आता है। वैदिक ऋषियों ने निस्संदेह बहुत अधिक परिश्रम किया तथा उन्होंने दुनिया को परा तथा अपरा ज्ञान प्रदान किया। इस युग में ऋषियों की राजर्षि, महर्षि, देवर्षि एवं ब्रह्मर्षि की उपाधियाँ मिलती हैं। राजर्षि, महर्षि एवं देवर्षि वाली उपाधियों में अधिक दम नहीं है। लेकिन ब्रह्मर्षि की उपाधि इस युग में सद्विप्र नेतृत्व के खोज में सहायक हो सकती है। जो ब्रह्मर्षि श्रेणी के ऋषि थे, उनकी साधना में ब्रह्म भाव था। यम-नियम की नीति निपुणता तो राजर्षि, महर्षि एवं देवर्षि में भी विद्यमान होती थी। अतः निश्चित रूप से नहीं कहा जा सकता है कि कौन सा ब्रह्मर्षि सद्विप्र है, लेकिन सद्विप्र के गुणों की पुष्टि इस युग में होती है। 

(३) तंत्र युग एवं सद्विप्र नेतृत्व- तंत्र के प्रणेता भगवान सदाशिव थे तथा वह इस धरती के प्रथम महासद्विप्र थे, यह निःसन्देह माना जा सकता है। अतः उनके गणों से आशा की जा सकती है कि वे सद्विप्र के रूप में अपना परिचय देने में सक्षम हुए होंगे। 

(४) उत्तर वैदिक युग एवं सद्विप्र नेतृत्व- वैदिक युग एवं तंत्र युग के बाद उत्तर वैदिक युग की ओर चलते हैं जिसमें यजुर्वेद, सामवेद, अथर्ववेद, ब्राह्मण ग्रंथ, उपनिषद एवं आरण्यक नामक ग्रंथों की रचना हुई थी। चूंकि यह युग महासद्विप्र भगवान सदाशिव से परिचित था तथा उपनिषद ब्रह्म तत्व से भरे हुए है। अतः ब्रह्म भाव की साधना एवं यम नियम की पालना से इनकार नहीं किया जा सकता है। इस आधार पर हम कह सकते हैं कि इस युग ने सद्विप्र नेतृत्व को देखा तथा परखा था। 

(५) सभ्यता का उदय एवं सद्विप्र नेतृत्व- विश्व इतिहास के प्राथमिक सभ्यताओं में मिश्र, भारत, चीन, मेसोपोटामिया, युनानी एवं रोमन सभ्यता को पढ़ाया जाता है। इन सभ्यताओं के उपलब्ध प्रमाण हमें सद्विप्र नेतृत्व होने को प्रमाणित करने के लिए पर्याप्त नहीं है लेकिन इतनी बड़ी तथा‌ अनुशासित सभ्यता बिना सद्विप्र नेतृत्व के कल्पनातित है। अतः दावे के साथ तो नहीं कहा जा सकता है लेकिन अनुमान लगाया जा सकता है कि सद्विप्र नेतृत्व के बीज यहाँ अवश्य विद्यमान रहे होंगे। 

(६) महाकाव्य काल एवं सद्विप्र नेतृत्व- महाभारत एवं रामायण नामक महाकाव्य के काल में श्री कृष्ण के महासद्विप्र होने के प्रमाण उपलब्ध है तथा पांडवों में सद्विप्र के गुण विद्यमान है। अतः प्रथम बार प्रमाणित रुप से कहा जा सकता है कि इस युग में सद्विप्र नेतृत्व विद्यमान था। 

(७) जैन-बौद्ध युग एवं सद्विप्र नेतृत्व- जैन तथा बौद्ध युग में नीति तथा आध्यात्मिक की जड़ें गहरी हो गई थी। अतः सद्विप्र नेतृत्व के विकास की संभावना भी उतनी ही प्रबल हो गई थी। चाणक्य के अभियान को मैं सद्विप्र आंदोलन तो प्रमाणित नहीं कर सकता हूँ लेकिन इससे सद्विप्र नेतृत्व अवश्य कुछ सीख सकता है। अतः जैन एवं बौद्ध युग में सद्विप्र नेतृत्व के उदय से इंकार नहीं किया जा सकता है। 

(८) ईस्वी युग एवं सद्विप्र नेतृत्व- ईसा पूर्व के युग के बाद ईस्वी युग की ओर चलते हैं। जिसमें भारत वर्ष में कुषाण व गुप्त युग के पदचाप दिखे थे। वहीं शेष विश्व में यहुदी, पारसी, ईसाई तथा इस्लाम आंदोलन हुए हैं। गुप्त युग को भारतीय इतिहास का स्वर्ण युग कहते हैं। इस युग में मात्र राजनैतिक घटना क्रम ही नहीं नीतियाँ, धर्म शास्त्र, धर्म सूत्र तथा स्मृतियाँ निर्मित हुई है। यह युग खगोलीय ज्ञान एवं अन्तरिक्ष विज्ञान का भी स्वर्ण युग था। इसलिए इस युग में सद्विप्र नेतृत्व की खोज असंभव कार्य नहीं था। पतंजलि का यम-नियम को परिभाषित करना तथा ब्रह्म ज्ञानियों का उपलब्ध होना सद्विप्र तथा उनके नेतृत्व की पुष्टि को बल प्रदान करती है। शेष विश्व में उपर्युक्त इतने बड़े आंदोलन का होना, सद्विप्र नेतृत्व की संभावना को शून्य नहीं बता सकते हैं। 

(९) मध्यकाल एवं सद्विप्र नेतृत्व- मध्यकाल को इतिहास में अंधकार का युग कहा जाता है। इस युग में सभ्यता, संस्कृति एवं सदमूल्यों की सबसे अधिक हानि होना बताया जाता है। इतना होने पर भी इतिहास के इस युग को सद्विप्र नेतृत्व शून्य युग नहीं कहा जा सकता है। भक्ति आंदोलन एवं पश्चिम में धर्म सुधार आंदोलन अवश्य ही हमें सद्विप्र नेतृत्व की खोज की ओर चलने के लिए प्रेरित करती है। हो सकता है कि इस युग में सद्विप्र नेतृत्व का उदय तो हुआ हो लेकिन राजनैतिक हस्तक्षेप के समक्ष युग पर अपने हस्ताक्षर नहीं कर पाया। 

(१०) आधुनिक युग एवं सद्विप्र नेतृत्व- मानव इतिहास का आधुनिक विज्ञान, तकनीक एवं ज्ञान विज्ञान का युग रहा है। इस युग में सामाजिक, आर्थिक, सांस्कृतिक, धार्मिक, राजनैतिक, कला, विज्ञान तथा जीवन के लगभग सभी क्षेत्रों में नव परिवर्तन का युग रहा है। इस युग में समाज को सिद्धहस्त नेतृत्व मिला है। इसमें जो ज्ञात एवं अज्ञात रुप से जो ब्रह्म भाव की साधना की ओर अग्रसर थे तथा नैतिकता का अनुसरण कर रहे थे। उन में से सद्विप्र नेतृत्व ढूंढ कर निकाला जा सकता है। 

(११) आनन्द मार्ग युग एवं सद्विप्र नेतृत्व- सद्विप्र नेतृत्व के उदय की खोज के अंत में ऐतिहासिक युग के आनन्द मार्ग आंदोलन की ओर चलते हैं। आनन्द मार्ग आंदोलन एवं मिशन मानव इतिहास में पहला युग है, जहाँ सद्विप्र निर्माण की कार्यशाला चल रही है। सम्पूर्ण समाज को सद्विप्र बनाने की जिम्मेदारी आनन्द मार्ग ने उठाई है। अतः आनन्द मार्ग युग में सद्विप्रों की एक लंबी फ़ौज़ तैयार होने की प्रबल संभावना है। 

(१२) भावी युग एवं सद्विप्र नेतृत्व- भावी युग सद्विप्र नेतृत्व से लबालब भरा रहने वाला है। 

सद्विप्र नेतृत्व सभ्यता के उषाकाल से आज तक विद्यमान है। 
-------------------------
आनन्द किरण
Previous Post
Next Post

post written by:-

1 टिप्पणी:

  1. महाकाव्य के बारे आपने लिखा है कि महाभारत और रामायण महाकाव्य है। यह गलत है। महाभारत इतिहास है जबकि रामायण महाकाव्य है।

    जवाब देंहटाएं