प्रात: 5 बजे आनन्द मार्गी द्वारा किया जाने वाला आध्यात्मिक कर्म का नाम पंचजन्य दिया गया है। इसमें प्रभात संगीत, कीर्तन, साधना, गुरु वंदना एवं साष्टांग नाम पंच तत्व दिये गये हैं। अर्थात पंचजन्य को इन पंच तत्व का समुच्चय कह सकते हैं। पंचजन्य करने से पाप का क्षय होता है तथा माया का चक्र भी साधक मुक्त हो जाता है। अतः सभी साधकों के लिए पञ्चजन्य अनिवार्य है।
पञ्चजन्य की विधि - प्रातः 5 बजे पवित्र अथवा अपवित्र जो भी भाव हो जागृति में उपस्थित होकर क्रमशः साष्टांग, प्रभात संगीत, कीर्तन, साधना, गुरु वंदना एवं साष्टांग करने का विधान है। यह लगभग 35 मिनट से 40 मिनट का कार्यक्रम है।
(१) प्रभात संगीत - सामान्य दिन में 5 मिनट अथवा एक प्रभात संगीत तथा रविवार को 10 मिनट अथवा दो प्रभात संगीत गाने का प्रवधान है। इससे वाक, श्रवण, दर्शन एवं सिमरन शक्ति क्रियाशील होती है। जो विश्राम के बाद ताजगी एवं तंदरुस्ती के लिए जरूरी है।
(२) कीर्तन - सामान्यतः 15 मिनट कीर्तन का प्रावधान किया है। इस प्रातः कालीन भ्रमण, वायु सेवन तथा नाद की क्रिया के निष्पादन के साथ सिमरन, श्रवण, दर्शन एवं समर्पण क्रिया भी संपन्न होती है।
(३) साधना - सामान्यतः 10 मिनट साधना करने का प्रावधान है। इसमें ईश्वर प्रणिधान नामक प्रथम लेशन किया जाता है। इससे चिन्तन, मनन एवं एकाग्रता नामक क्रिया के साथ भाव तथा भावातित की गति भी संपन्न होती है।
(४) गुरु वंदना - साधक के जीवन में सर्वोत्तम महत्व गुरु का होता है। गुरु वंदना के माध्यम से गुरु दर्शन, गुरु वंदन, गुरु ध्यान एवं गुरु पूजन का कार्य संपन्न होता है।
(५) साष्टांग - गुरु स्पर्श, गुरु नमन, समर्पण की क्रिया के साथ सरलता एवं साधुता भाव प्रकट होता है। इसके भक्ति जागरण का सरलतम तरीका भी पञ्चजन्य के माध्यम से मिलता है।
आओ मिलकर कर पञ्चजन्य करते हैं तथा गुरुदेव का आशीर्वाद, कृपा एवं प्यार पाते हैं।
--------------------------
आनन्द किरण
0 Comments: