आनन्द मार्ग चर्याचर्य द्वितीय खंड साधक को आध्यात्मिक एवं जागतिक पथ निर्देशना देता है। इसके १,५,६ एवं ७ अध्याय में आध्यात्मिक तथा २, ३, ४ एवं ८ अध्याय में सामाजिक अथवा सांसारिक अथवा जागतिक पथ निर्देशना दी गई है।
आध्यात्मिक निर्देशना
1.
साधना
आनन्द मार्ग चर्याचर्य द्वितीय खंड के अध्याय १ में एक साधक के आनन्द मार्गी के अवश्यकरणीय (फर्ज) एवं समान्य करणीय दायित्व को रेखांकित किया गया है।
(१) आनन्द मार्गी का फर्ज - साधना नामक का प्रथम बिन्दु आनन्द मार्गियों के लिए अवश्य करणीय कार्य दिये गये हैं। जिसके बिना एक आनन्द मार्गी के रूप में परिचय देना भी संभव नहीं है। (श्री श्री आनन्दमूर्ति जी का महात्म्य स्वीकारना, साधना में कठोरता, यम नियम की पालना, धर्म चक्र में भाग लेना तथा सभी जीवों का संरक्षण एक आनन्द मार्गी के अवश्य करणीय कार्य अर्थात फर्ज है। इसके बिना आनन्द मार्गी कहलाना अथवा आनन्द मार्ग पर रहना दुष्कर है।
(२) एक आनन्द मार्गी के दायित्व - साधना नामक अध्याय एक आनन्द मार्गी को कैसा होगा का चित्रण किया गया है। इसी अध्याय में दूसरी २० बिन्दु की निर्देशना एक आदर्श साधक अथवा एक आदर्श आनन्द मार्गी बनने के लिए आवश्यक है। इसे किये बिना आनन्द मार्गी तो रह सकता है लेकिन आनन्द मार्गी के रूप आदर्श प्रस्तति नहीं दे सकता है। एक आनन्द मार्गी दुनिया के लिए आदर्श है। इसलिए इन २० बिन्दुओं को भी मान कर चलना होगा।(मनशुद्धि का उपवास, जगत के प्रति कर्तव्य है पावना नहीं, मनुष्य जीवन साधना के लिए, ब्रह्म भित्ति, धर्म अन्दर की वस्तु है, मैं कुछ नहीं जान सका, साधना संबंधि शिक्षा शीघ्र पूर्ण करना, स्वार्थपरता, संकीर्णता एवं कुसंस्कार मुक्त जीवन, आनन्द डुबकर कार्य करना, मनुष्यत्व का उदबोधन, दोष निवृत्ति, तिरस्कार पूर्व स्वयं के दोष का मूल्यांकन, अष्टपाश पर नियंत्रण, कर्म से श्रेष्ठता, दूसरों को छोटा नहीं दिखाना, निन्दा एवं अंधकार पर जय, मूर्ति पूजा एक महापाप, रिपु को वशीभूत करना, निंदा का आश्रय नासमझी तथा इष्ट, आदर्श, चरम निर्देश और आचरण संहिता के प्रति कठोर।)
2
पंचदश शील
आनन्द मार्ग चर्याचर्य द्वितीय खंड के अध्याय ५ में १५ शील का अनुसरण करण एक महान साधक बनने की पथ निर्देशना दी गई है। (क्षमा, मन की उदारता, आचरण एवं मिज़ाज पर नियंत्रण, आनन्द मार्ग के लिए सबकुछ त्याग करने के लिए प्रस्तुत रहना, सर्वात्मक संयम, मधुर एवं हँसमुख व्यवहार, नैतिक साहस, दूसरे को शिक्षा देने के पहले अपने जीवन में उसे कर दिखाना, दूसरों की निंदा करना, दूसरों की चर्चा करना, दूसरों पर कीचड़ उछालना तथा सभी प्रकार की दलबाजी से अलग रहना, यम नियम को कठोरता पूर्वक मानकर चलना,अन्याय हो जाए तो स्वीकार कर दंड याचना करना, शत्रु पूर्ण व्यवहार के प्रति घृणा और दंभ की भावना का त्यागना, अधिक बातें नहीं करना, अनुशासनिक नियमावली को मानना, उत्तरदायित्व का बोध रहना।)
3.
साधक के लिए पालनीय आचरण विधि
आनन्द मार्ग चर्याचर्य खंड द्वितीय के अध्याय ६ में साधक के लिए पालनीय आचरण विधि दी गई है। जो एक व्यवहारिक बनाती है। जब तक मनुष्य व्यवहारिक नहीं बनता है, तब तक कुछ भी नहीं कर सकता है। इसलिए श्री श्री आनन्दमूर्ति जी एक आनन्द मार्गी के नाम एक संदेश रहता है - सैद्धांतिक नहीं व्यवहारिक बनो। ( दैनन्दिनी जीवन में पंचदश शील का ठीक-ठीक पालन करना, चर्याचर्य में निर्देशित शारीरिक, मानसिक, आध्यात्मिक और सामाजिक जीवन की विधियों का अनुसरण और उदाहरण प्रस्तुत करना, अपने इष्ट, आदर्श, चरम निर्देश और आचरण विधि पर हर समय, दृढ़ विश्वास और कठोर अनमनीय मनोभाव रखना, षोडश विधि का कठोरता से पालन करना तथा गृही आचार्य, WT, LFT, LPT, तात्विक, आचार्य एवं अवधूतों की पृथक एवं स्वतंत्र आचरण संहिता की अनुपालन करना।)
4.
षोडश विधि
आनन्द मार्ग चर्याचर्य खंड द्वितीय के ७ में एक आनन्द मार्गी को कठोर एवं दृढ़ बनाने के लिए षोडश सूत्र दिये गये हैं। जिसके बल पर हवा का झांका, आंधी तूफान का झंझावात तथा प्रलय का खौफ भी आनन्द मार्गी धर्म अर्थात सत्पथ से तिल मात्र भी विचलित, विभ्रमित एवं विमुख नहीं कर सकता है। अतः श्री श्री आनन्दमूर्ति जी की एक स्पष्ट निर्देशना होती थी कि षोडश विधि में दृढ़ बनो, ताकि तुम्हें कोई नहीं हिला सकता है। (जल प्रयोग, त्वक, केश, लंगोटा, व्यापक शौच, स्नान, सात्विक आहार, उपवास, साधना, इष्ट, आदर्श, आचरण विधि, चरम निर्देश, शपथ, धर्म चक्र तथा CSDK को मानकर चलना)
यह एक आनन्द मार्गी साधक के आत्मिक पथ चलने की निर्देशना है। इसलिए इसे श्रेय पथ निर्देशना भी कह सकते हैं।
0 Comments: