प्रथम समाज आंदोलन - भाषा बचाओ, संस्कृति बचाओ, समाज बचाओ एवं मनुष्य बचाओ कार्यक्रम को समर्पित किया गया था। आज हम दूसरे समाज आंदोलन की ओर चलते हैं। जब भाषा, संस्कृति, समाज एवं मनुष्य बच जाएँगे, तब मनुष्य अपने प्रगति का प्रश्न समाज से करेगा। इस प्रश्न के उत्तर के लिए द्वितीय समाज आंदोलन की पृष्ठभूमि तैयार करना आवश्यक है।
चूंकि द्वितीय समाज आंदोलन मनुष्य की प्रगति को समर्पित है, इसलिए मनुष्य प्रगति सभी आयाम को लेकर द्वितीय समाज आंदोलन चलेगा। अतः हम द्वितीय समाज आंदोलन की रुपरेखा तैयार करते हैं।
(१) भौतिक समृद्धि का पाठ पढ़ना एवं पढाना - मनुष्य की पहली समस्या भौतिक समृद्धि है, इसलिए द्वितीय समाज आंदोलन को प्रथमतः भौतिक समृद्धि की ओर लेकर चलते है। कृषि, खनन, उद्योग, व्यापार, वाणिज्यिक, सेवाएँ इत्यादि आर्थिक गतिविधियों का बेतरीन तरिके से समायोजन करने लिए जन जन को प्रउत व्यवस्था का पाठ पढ़ाना होगा। प्रउत व्यवस्था के अभाव में समाज में भौतिक समृद्धि का पाठ लिखा ही नहीं जा सकता है। मुट्ठी भर लोगों की समृद्धि अथवा धनिकों बल पर दिखने वाली शहर व गाँवों की चकाचौंध समग्र समाज की तस्वीर नहीं खिंच सकती है। मनुष्य तथा उसके समाज की भौतिक समृद्धि का पाठ बताता है कि ईंट एवं पथ्थरों बनी गगनचुंबी इमारतें एवं चमचमाती हुए सड़कें भौतिक समृद्धि का आधार नहीं है। भौतिक समृद्धि का आधार है - सर्वजन हित व सर्वजन सुख की आधारशीला पर खड़ा समाज तथा सम सामाजिकता के आधार पर निर्मित व्यक्तित्व। सुख वातानुकूलित कमरे में ही मिलता तो पूंजीवादी व्यवस्था सर्वे भवन्तु सुखिनः का अध्याय लिख चुकी होती। तपती धुप भी सुहाना लगती है, जब मनुष्य के सुख दुःख का भागीदार समाज हो जाए। महलों चमक भी फीकी लगने लगते है, समाज उस सुख दु:ग में साथ खड़ा नहीं रहता है। अतः द्वितीय समाज आंदोलन का प्रथम कर्तव्य है कि प्रउत को जन जन के मनोमस्तिष्क में पूर्णतया बिठा देना, जब तक हम मनुष्य के मन में प्रउत के प्रति मछली से तड़पन पैदा नहीं कर पाते है, तब तक हमारा प्रउत के प्रति किया गया कार्य अर्थहीन है।
(२) ऋद्धि की ओर बढ़ती मानसिकता- मनुष्य की प्रगति का पहला अध्याय भौतिक समृद्धि से शुरू होता है लेकिन ऋद्धि के अभाव में भौतिक समृद्धि कारगर नहीं होगी। अतः मनुष्य को मानसिक क्षेत्र में विकसित होने के सभी अवसर उपलब्ध कराने होंगे। इसके लिए छात्र संगठन, युवक संगठन, किसान संगठन, मजदूर संगठन एवं बुद्धिजीवी संगठन की नींव रखनी होगी। मनुष्य को अधिक से अधिक अपने से, समाज से तथा व्यवस्था से प्रश्न करना सिखाना होगा। जितना व्यक्ति का मानसिक विकास प्रश्नों की खोज से होता है, उतना विकास किसी पुस्तक अथवा साहित्य पढ़ने से नहीं होता है। वह समाज की समस्या, परिवार की समस्या, स्वयं की समस्या एवं जन जन की समस्या के समाधान में अपना दिमाग लगाएगा। उसका यह दिमाग आनन्द मार्ग दर्शन, नव्य मानवतावादी चिन्तन एवं प्रउत विचारधारा को आत्मसात करने में मददगार होगा। अतः नये कैडर को प्रशिक्षण देकर आगे बढ़ने के लिए जिम्मेदारी पर जिम्मेदारी देते रहना ही द्वितीय समाज आंदोलन द्वितीय कार्य है। मानसिक ऋद्धि के लिए शांतिकाल से अधिक क्लेश एवं संघर्ष काल उपयोगी सिद्ध हुआ है। अतः नीतिशास्त्र कहता है कि मनुष्य को संघर्षशील बनाना ही मनुष्य की मानसिक विकास के लिए आवश्यक बताया गया है। अतः द्वितीय समाज आंदोलन मनुष्य को संघर्ष करने के अधिक से अधिक मंच उपलब्ध कराएगा।
(३) आध्यात्मिक सिद्धि ही सच्ची प्रगति है - द्वितीय समाज आंदोलन तब तक अपनी मंजिल तक नहीं पहुंच सकता जब तक आध्यात्मिक प्रगति की ओर मनुष्य को नहीं ले जाता है। समृद्धि, ऋद्धि एवं सिद्धि जीवन की प्रमा है। जिसका संतुलन ही सर्वांगीण विकास को सुनिश्चित करता है। अतः वह सामाजिक आर्थिक सिद्धांत असफल है, जो समृद्धि, ऋद्धि एवं सिद्धि के समीकरण को संतुलित नहीं करता है। आध्यात्मिकता के बिना नैतिकता का भविष्य असुरक्षित है, अतः मनुष्य को आध्यात्मिक नैतिकवान बन तथा बनाना ही होगा। भौतिक जगत में अफरातफरी तथा मानसिक जगत की उथलपुथल को आध्यात्मिक मानसिकता के बल सरल रेखा में लाया जाता है। अतः प्रउत एक आध्यात्मिक सामाजिक आर्थिक दर्शन लेकर आया है। जहाँ समाज का भार सदविप्रों हाथ में देता है। सदविप्र आध्यात्मिक नैतिकवान व्यक्तित्व है। जो यम नियम में प्रतिष्ठित एवं भूमाभाव का साधक है। प्रउत नागरिक के जीवन की भित्ति आध्यात्मिकता को निर्धारित करता है। अतः समाज में अधिक अधिक सदविप्र तैयार करने की जिम्मेदारी द्वितीय समाज आंदोलन की सबसे मजबूत कड़ी है। इसके उपयोगिता प्रशिक्षण शिविर की वृद्धि करनी होगी। प्रउत प्रशिक्षण कार्यक्रम अधिक से अधिक लेने होंगे।
द्वितीय समाज आंदोलन पूर्णतया एक व्यवहारिक प्रक्रिया है, जो सत्ता से नहीं समाज से प्रश्न करता है। सत्ता के द्वार पर जहाँ खड़ा हो जाएगा। जन हित लड़ाई लड़ने में कभी भी कर्पणता नहीं बरतेगा। सत्ता यदि प्रउत को अभ्यास में लाने के बाधक सिद्ध होगी तो द्वितीय समाज आंदोलन इसे परिवर्तन करने में पीछे नहीं रहेगा।
द्वितीय समाज आंदोलन का उपसंहार यह कहता है कि प्रउत को व्यवहार में लाना भौतिक समृद्धि, प्रउत के काम करने के लिए तैयार होना मानसिक ऋद्धि तथा समाज को नेतृत्व देने के लिए तैयार होना आध्यात्मिक सिद्धि की ओर बढ़ता एक मजबूत कदम है। आओ प्रउत को समृद्धि, ऋद्धि एवं सिद्धि की ओर ले चलते हैं। द्वितीय समाज आंदोलन के ध्वज तले सर्वजन हितार्थ सर्वजन सुखार्थ के समीकरण को संतुलित करते हैं।
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