पहला समाज आंदोलन (first socioeconomic movement)

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अब तक के लगभग सभी आंदोलन एवं लड़ाइयों ने सत्ता से प्रश्न किये है। समाज आंदोलन दुनिया का पहला ऐसा आंदोलन है, जो सत्ता से नहीं समाज से प्रश्न कर रहा है। 
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महाविश्व के निर्माण करने का संकल्प में समाज आंदोलन की क्या भूमिका है। इसे समझे बिना हम मानव समाज को नहीं समझ पाएंगे। इसलिए आज विषय लिया गया है- 'पहला समाज आंदोलन'। इस वसुंधरा पर अनेक आंदोलन एवं लड़ाइयाँ हुई है। अबतक के लगभग सभी आंदोलन एवं लड़ाइयों ने सत्ता से प्रश्न किये है। समाज आंदोलन दुनिया का पहला ऐसा आंदोलन है, जो सत्ता से नहीं समाज से प्रश्न कर रहा है। इसलिए 'पहला समाज आंदोलन' नामक विषय प्रासंगिक है। पहला समाज आंदोलन शब्द का समाज का प्रथम आंदोलन नहीं, न ही प्रथम समाज आंदोलन कहाँ हुआ अथवा होगा भी नहीं है। पहला समाज आंदोलन अर्थ समाज आंदोलन का पहला स्वरूप है। समाज आंदोलन हम सभी का संकल्प है क्योंकि यही वसुंधरा पर सर्वे भवन्तु सुखिनः का आशीर्वाद फलित करने वाला सूत्र है। इसलिए महाविश्व के संकल्प में समाज आंदोलन अनिवार्य था। 

समाज आंदोलन एक सामाजिक आर्थिक इकाई का ऐसा संगठन है, जो समाज में सर्वजन हितार्थ सर्वजन सुखार्थ का प्रचार करता है। जाति, साम्प्रदायिकता, रुढ़िवादीता, पाखंड एवं आडंबर भरे संसार में सर्वजन हितार्थ सर्वजन सुखार्थ का प्रचार किये बिना एक अखंड अविभाज्य मानव समाज रचना संभव नहीं है। अतः समाज आंदोलन का पहला स्वरूप समझना आवश्यक है। समाज इकाई का नामकरण एक सांस्कृतिक पहचान को लेकर किया गया है। यह पहचान ही पहला समाज आंदोलन है। अतः आज हम पहला समाज आंदोलन नामक विषय पर चर्चा करेंगे। 

पहला समाज आंदोलन के विषय

(१) भाषा बचाओ अभियान - आज विश्व में बहुत सी भाषाएँ लुप्त हो रही है। भाषा का लुप्त होने का अर्थ है उस क्षेत्र की सभ्यता, संस्कृति एवं संस्कारों का लुप्त होना है। अतः पहला समाज आंदोलन कहता है कि भाषा बचाओ अभियान की शुरुआत करना ही समाज आंदोलनकारियों का प्रथम कार्य है। इसके स्थानीय भाषा में काव्य गोष्ठी, संगीत गोष्ठी, नाट्य गोष्ठी तथा व्याख्यान गोष्ठी का आयोजन कर स्थानीय भाषा के माध्यम से प्रउत जन जन के मनो मस्तिष्क में बैठाना ही समाज आंदोलन का प्रथम कर्तव्य है। इसके क्रम में शिक्षा का माध्यम स्थानीय भाषा, सरकारी गैर सरकारी कार्यालयों में काम स्थानीय भाषा में जैसे मुद्दों पर सरकार से प्रश्न किया जा सकता है। लेकिन सरकार से प्रश्न करने से पूर्व स्थानीय भाषा का महात्म्य समाज को पढ़ाना आवश्यक है। अतः हमें स्थानीय भाषा के लेखक, कवि, संगीतकार, गीतकार, नायक एवं वक्ता तैयार करने ही होंगे। 

(२) संस्कृति बचाओ अभियान - सम्पूर्ण धरातल की एक संस्कृति है। क्योंकि संस्कृति का निर्माण संस्कारों से होता है तथा संस्कार सभी मनुष्यों के उभयनिष्ठ है। इसमें कोई विशेष नहीं है। मानव के सदगुणों का अभिप्रकाश स्थानीय पहनावे, आचार विचार एवं स्थानीय रीतिरिवाजों की सात्विकता से होता है। अतः समाज आंदोलनकारियों को पहला समाज आंदोलन इस ओर भी ले जाना होगा। पहनावा बचाओ, रीतिरिवाज बचाओ इत्यादि छोटे छोटे सूत्रों के माध्यम से एक प्राउटिस्ट को समाज का नायक बनना ही होगा। इसके सरकार से एक प्रश्न किया जा सकता है कि शिक्षण संस्थान, सरकारी गैर सरकारी प्रतिष्ठान एवं न्यायालय में स्थानीय भाषा के साथ स्थानीय संस्कृति का दिखना आवश्यक है। कुछ लोगों को यह विषय गौण लगते होंगे लेकिन यह गौण नहीं मौन समाज आंदोलन की शक्ति है, जो बिखरे समाज को एकता के सूत्र में पिरोने के लिए आवश्यक है। 

(३) समाज बचाओ अभियान - आज रोजीरोटी के चक्कर में समाज की प्रतिभा अपना घरबार, गाँव व सगे संबंधियों को छोड़कर प्रदेश, देश विदेश जा रहे हैं। अतः पहला समाज आंदोलन कहता है कि समाज बचाओ आंदोलन अति आवश्यक है। वह देश कभी भी महान नहीं हो सकता जहाँ के पेट भरने के मातृभूमि का परित्याग करें। अतः समाज के लोगों को पलयान से बचाना ही होगा। उन्हें कहना होगा कि हम कम खाएंगे लेकिन हमारे परिजनों के साथ मिलकर खाएंगे। माता पिता, भाई बंधु मिलकर रहेंगे मिलकर एक अखंड अविभाज्य मानव समाज की नींव रखेंगे। इसके लिए पहला समाज आंदोलन सरकार से प्रश्न कर सकता है कि हमारे ब्लॉक में उद्योग क्यों नहीं? हमारे ब्लॉक में आधुनिक सुविधा क्यों नहीं? हमारे ब्लॉक में रोजगार के अवसर क्यों नहीं? इसके लिए स्थानीय लोगों को शतप्रतिशत गारंटी का प्रस्ताव समाज के द्वारा पास करके सरकार के पास भेजना ही होगा। 

(४) मनुष्य बचाओ अभियान - आज का मनुष्य आधुनिकता के नाम पर अपने आप से बहुत दूर चला जा रहा है। आध्यात्मिक शिक्षा एवं दीक्षा के माध्यम से मनुष्य बचाओ अभियान भी पहला समाज आंदोलन के स्वरूप का एक अंग है।

पहला समाज आंदोलन विषय उपसंहार की ओर जहाँ है इसमें भाषा बचाओ, संस्कृति बचाओ, समाज बचाओ एवं मनुष्य बचाओ नामक चतुष्पाद अभियान है। यही समाज आंदोलन के द्वितीय स्वरूप का निर्माण करेगा। 

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[श्री] आनन्द किरण "देव"
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