विश्व का धार्मिक इतिहास (Religious history of the world)


विश्व में ईश्वर के संबंध में जो अवधारणा विकसित हुई, उसे धार्मिक क्षेत्र में रखा गया। व्यक्ति के व्यक्तित्व विकास के तीन पहलू - शारीरिक, मानसिक एवं आध्यात्मिक विकास है। जब मनुष्य आत्मिक जगत के विकास का कोई पथ खोज लेता है, तो वह एक मत के निर्माण का निर्माण करता है। जब कोई अन्य व्यक्ति अथवा व्यक्तियों का समूह इस मत को अंगीकार कर लेता है, तब यह पथ एवं मत एक सम्प्रदाय का रुप लेता है। जब तक यह सम्प्रदाय किसी रूढ़ मान्यता में आबद्ध नहीं होता है तब तक वह मनुष्य का धर्म रहता है। जब-जब भी यह मत एवं पथ देश, काल एवं पात्र की  दीवारों में जकड गया है तब-तब यह धर्म के पथ विमुख होकर सम्प्रदाय, मजहब अथवा रिलिजन में बंद गया है। हम विश्व का धार्मिक इतिहास लिखने जा रहे हैं, इसलिए धर्म तथा धर्म के सआयामी अंग के बारे जाना जरूर है। 

(१) धर्म - धर्म धृ धातु के मन  प्रत्यय बना एक शब्द है। जिसका अर्थ है, धारण करना। चूंकि धर्म शब्द के अर्थ में यह नहीं बताया गया है कि क्या धारण करना इसलिए धर्म के व्याख्याकार अपने अपने ढंग से धर्म की परिभाषा तय कर लेते हैं। जो‌ कभी-कभी धर्म शब्द के अर्थ के अनुकूल भी नहीं होती है। धर्म शब्द का अर्थ 'धारण करने' के साथ उस सत्ता के अस्तित्व बनाये रखने वाले आवश्यक तत्व का सम्मेलित करता है। अर्थात धर्म का अर्थ केवल धारण करना ही नहीं है अपितु वह गुणधर्म है, जिसका उस विशेष सत्ता अस्तित्व जगत में है। उदाहरणतः अग्नि में दहकता, जल में शीतलता, दूध में धवलता इत्यादि। जिस प्रकार उक्त गुणधर्म के कारण उपरोक्त तत्व अस्तित्व है। उसी प्रकार मनुष्य का अस्तित्व मानवता में निहित है। मानवता कभी मनुष्य तक ही सीमित नहीं रहती है, यह सम्पूर्ण चराचर जगत में समाहित हैं। इसलिए मनुष्य की इस सोच नव्य मानवतावाद नाम दिया गया है। यदि मनुष्य, मनुष्य बनकर ही रह जाता है तो भी मानव अपने धर्म के साथ न्याय नहीं करता है, इसलिए मनुष्य का धर्म वृहद प्रणिधान को बताया गया है। वृहद प्रणिधान का अर्थ, मनुष्य को जीव कोटी से उपर उठकर ब्रह्म कोटी में प्रतिष्ठित होना है। यही मानव धर्म कहा जाता है। जिसमें विस्तार, रस, सेवा एवं तदस्थिति नामक चार तत्व होने के कारण संस्कृत में भावगत नाम भागवत धर्म दिया गया है। अतः सम्पूर्ण मानवों का एक ही धर्म भागवत धर्म है। 

(२) सम्प्रदाय -  एक परंपरा अथवा जीवन शैली, जिसे एक मनुष्य का समूह जी रहा है। यह किसी महापुरुष एवं महापुरुषों के विचार से निर्मित हो सकती है। जब इसमें अपना पराया का भाव सृजित हो जाता है तब यह साम्प्रदायिकता बनकर रह जाती है तथा यह धर्म के सआयामी अंग को रुग्ण कर देती है। 

(३) मजहब - मज व हब शब्द मिलकर बना एक मजहब है जिसका हिन्दी अर्थ है - एक निश्चित मान्यता को मानकर चलना। जब यह मजहब की परिभाषा मनुष्य के स्वतंत्र चिन्तन शक्ति से निर्मित शास्वत विचारों का गला घोंटने लग जाता है तब उसे मजहबी उन्माद के रूप में लिया जाता है। 

(४) रिलिजन - जो महसूस किया अथवा जो महसूस करवाया गया है। उसे मानकर चलना रिलिजन है। जिसका हिन्दी अर्थ एक धारणा है। जब मनुष्य किसी व्यक्ति अथवा समुदाय से कोई विचार प्राप्त कर धारणा बना देता तब उसे व्यक्ति का रिलिजन कह देते हैं। यह धारणा जब नूतन एवं प्रगतिशील विचारों को अंगीकार नहीं करता है तब यह रिलिजन शब्द के अर्थ खतरनाक बना देता है तथा पापमोचन पत्र के बल पर स्वर्ग में जाने की बात रेखांकित करता है। 

पुनः विषय की ओर लौटते हैं - विश्व का धार्मिक इतिहास का मतलब विश्व धर्म तथा उसके सआयामी अंग को लेकर बने मत व पथ का विस्तार है। उसे समझने की कोशिश करते हैं। 

(1) सनातन मत - अब ज्ञात मत में यह सबसे प्राचीन मत है। जिसमें अनेक पथ विद्यमान है। इसमें अलग-अलग धारणा, मान्यता एवं विश्वास भी है। इसका उदभव ऋग्वेद से माना जाता है। यह भारतवर्ष एवं उसके आसपास क्षेत्र में अधिक विकसित है। इसके प्रवर्तक स्वयंभूव मनु को माना जाता है। इसे आजकल हिन्दू मत भी कहते हैं। 

(2) यहुदी मत - एकेश्वरवादी एक विचारधारा जिसका विकास अरब युरोपीय क्षेत्र में हुआ। इसके आदि प्रवर्तक इब्राहिम आदम‌ को माना जा सकता है। यह मसिहा के आगमन की‌ प्रतिक्षा में विकसित हुई मान्यताओं का समूह है। वर्तमान में यह मत इजराइल का राजधर्म है।

(3) पारसी मत - विश्व का अत्यन्त प्राचीन धर्म है। इस धर्म की स्थापना सन्त ज़रथुष्ट्र ने की थी। यह एक समय ईरान का राजधर्म था, जो आज भारतवर्ष के मुम्बई तथा उसके आसपास हैं।

(4) जैन मत - इसका विकास रिषभदेव के जिन विचार के बलवती होने के साथ हुआ। मूलतः यह वैदिक ऋषियों के आर्ष मत के विरोध में हुआ। यह भारत व उसके आसपास विकसित है। यह महावीर स्वामी के बाद अधिक बलवान हुआ। 

(5) बौद्ध मत - इसका विकास भारतवर्ष में महात्मा बुद्ध के मत से हुआ, जो आजकल भारतवर्ष से  पूर्वी राष्ट्रों एवं चीन में भी है। तिब्बत के दलाईलामा आज के विश्व में इस‌म के सबसे प्रभावशाली स्पीकर है। 

(6) ईसाई मत - ईसा मसीह के मत पर आधारित ईसाई मत है, आज की दुनिया में सबसे अधिक क्षेत्र एवं लोगों में यह मत प्रचलित है। 

(7) इस्लाम मत - हजरत मुहम्मद साहब के मत का विस्तार इस्लाम मत है। यह दुनिया का दूसरा बड़ा मत है। इसका विस्तार अरब एवं एशियाई देशों में अधिक है। 

(8) सिख मत - गुरु नानक एवं दस गुरुओं का साझा मत सिख मत है। जो पंजाब में विकसित हुआ तथा अधिकांश अनुयायी पंजाब में ही है। 

(9) अन्य मत - दुनिया में ओर भी ऐसे कई मत है, जो उनके अनुयायियों के जीवन वाक्य है। इसके अलावा एक ही मत के मानने वालों के पंथ भी अलग है। उदाहरणतः सनातन जैन, बौद्ध, ईसाई, इस्लाम इत्यादि मतों में एकाध पंथ दिखाई देते हैं। 

(10.) विभिन्न संस्थाएं
मत एवं पंथ की दुनिया से मानव जाति के एकिकरण के विभिन्न संस्थाएं कोशिश रत है। इन संस्थाओं के अपने-अपने नियम एवं कायदे है। इन्हें मत व पंथ की परिधि में रख सकते हैं। 

इस प्रकार 10 बिन्दुओं में विश्व का धार्मिक इतिहास समाविष्ट है। धर्म मूलतः एक है, इसलिए मानव समाज को मत, पथ एवं संस्थाओं में नहीं बाटा जा सकता है। 

एक अखंड अविभाज्य मानव समाज रचना के मत, पथ से उपर उठकर वसुधैव कुटुबंकम के आधार पर करनी चाहिए। अतः मनुष्य का एक ही धर्म मानव धर्म है। जिससे संस्कृत में भावगत अर्थ - भागवत धर्म है।

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      [श्री] आनन्द किरण "देव"
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