महाभारत व रामायण का प्रथम एवं अन्तिम दृश्य (First and last scene of Mahabharata and Ramayana)

आज भारतवर्ष को महाभारत एवं रामायण के दर्पण से देखना चाहेंगे। महाभारत व रामायण वह दर्पण है जिसमें से भारतवर्ष का प्राचीन समाज दिखाई देता है। यद्यपि भारतवर्ष में शास्त्र एवं साहित्य की कमी नहीं है लेकिन महाभारत एवं रामायण ने भारतीय समाज को जिस प्रकार छूआ है वैसा वेद, उपनिषद, वैदिक साहित्य, धर्मशास्त्र, स्मृति शास्त्र एवं पुराण भी नहीं कर पाये। बौद्ध के त्रिपिटक तथा जैन का साहित्य भी भारतवर्ष की यथार्थ एवं आदर्श तस्वीर को उरेखित करने में सफल नहीं हुए हैं। इसलिए आज हम महाभारत एवं रामायण के उन दृश्यों रेखांकित करने जा रहे हैं, जहाँ से महाभारत व रामायण का आदि व इत्यादि छूपा हुआ है। 

महाभारत भारतवर्ष के इतिहास की झलक तथा रामायण भारतवर्ष के समाज की अभिकल्पना है। यह दोनों ही महाकाव्य स्वयं भारतवर्ष को विश्व एवं भारतधारियों के समक्ष रखता है। विश्व के समक्ष भारतवर्ष इसलिए जाता है कि सम्पूर्ण धरा से भारतवर्ष बनने का आग्रह करता है तथा भारतधारियों के समक्ष भारतवर्ष इसलिए आता है कि तुम भारत को धारण करने सामर्थ्य तब तक नहीं जुटा पाओगे जब तक भारतवर्ष को नहीं समझ पाओगे। यद्यपि हमें महाभारत एवं रामायण का सम्पूर्ण दृश्य रखना था मगर प्रथम एवं अन्तिम दृश्य रखना इसलिए आवश्यक है कि यह दोनों ही महाकाव्य का सारांश है। चलो चलते मूल बिन्दु की ओर.... 

महाभारत का प्रथम व अन्तिम दृश्य - महाराज भरत का उत्तराधिकारी घोषित करने का दृश्य महाभारत का प्रथम दृश्य है। जहाँ महाराज भरत राजा का चयन योग्यता तथा राष्ट्र की आकांक्षा के अनुरूप करता है। वही नियम उत्तराधिकारी के प्रश्न को लेकर महाभारत का मूलतत्व बनकर साथ साथ चलता रहता है। यदि भरत राजा चयन की आदर्श परम्परा को स्थापित नहीं करता तो महाभारत बनता ही नहीं। यद्यपि परंपरा शान्तनु के खंडित होती दिखाई दी तथापि यह ग्लानि की स्थिति में धृतराष्ट्र की महत्वाकांक्षा में चरम सीमा पर पहुँच जाती है तथा यह अन्तिम दृश्य का निर्माण करती है। महाभारत का अन्तिम दृश्य युधिष्ठिर द्वारा धर्मराज्य की स्थापना करना था। युधिष्ठिर के धर्मराज्य में भरत के आदर्श राजा चयन की प्रक्रिया एवं श्रीकृष्ण का शांति की परिभाषा निहित थी। आज हम धर्मराज्य की व्याख्या नहीं करेंगे क्योंकि यह हमारा विषय नहीं है। यदि यह विषय होता तो हम बहुत कुछ सिखते। महाभारत का प्रथम एवं अन्तिम दृश्य यह शिक्षा देता है कि भारतवर्ष भौगोलिक सीमाओं का प्रतिबिंब नहीं है, अपितु यह उन आदर्श परम्पराओं प्रतिबिंब है, जहाँ मानव सभ्यता का आदर्श मान स्थापित हो। यही महाभारत पढ़ाने का उद्देश्य है। 

रामायण का प्रथम एवं अन्तिम दृश्य - अयोध्या में राजा चयन आदर्श लोकतांत्रिक परंपरा था। उस पर कैकेयी की रुढ़ परंपरा का प्रहार से धर्म ग्लानि हो जाती है। जो रावण में सर्वोच्च शिखर पर दिखाई देती है। श्री राम द्वारा उसे धराशायी कर अयोध्या का राज्य ग्रहण करने में अन्तिम दृश्य निर्माण होता है। उसमें भरत का त्याग रामराज्य की स्थापना में गुरुत्व बिन्दु था। यह कथा आशा करती थी कि आदर्श जनमत पर महत्वाकांक्षा की कु मार को एक अच्छे राजा को ग्रहण नहीं करना चाहिए। भरत जानता था कि आदर्श जनमत राम के पक्ष में तथा कु मत कैकेयी के पक्ष में है। अतः उन्होंने आदर्श जनमत को स्वीकार किया। चूंकि रामराज्य हमारा विषय नहीं है इसलिए इस पर चर्चा नही करेंगे तथा मूल तत्व रामायण के प्रथम एवं अन्तिम बिन्दु पर चर्चा करेंगे। लवकुश अथवा सीता स्वयंवर रामायण के प्रथम एवं अन्तिम दृश्य नहीं है। यह मूल कथा में अधिग्रहित थे। जिस पर व्याख्याकारों व्याख्या नहीं करनी थी लेकिन व्याख्याकारों एक अभिमान ने रामायण के प्रथम दृश्य को सीता स्वयंवर अथवा ताड़का वध अथवा दशरथ के पुत्र प्राप्ति यज्ञशाला में ले गए तथा अन्तिम दृश्य को लवकुश में समाहित किया। चलो हमारा विषय रामायण की आदर्श लोकतांत्रिक परंपरा तथा राजा चयन के बाद आदर्श राज्य अभिकल्पना का अवलोकन है। 

महाभारत में धर्मराज्य एवं रामायण में रामराज्य में कोई अन्तर नहीं है। रामराज्य एवं धर्मराज्य दोनों ही सर्वजन हितार्थ सर्वजन सुखार्थ के महान उद्देश्य में प्रचारित है। आधुनिक युग में प्रउत व्यवस्था सर्वजन हितार्थ सर्वजन सुखार्थ के आदर्श की परिभाषा स्थापित करती है। अतः प्रमाणित होता है कि महाभारत व रामायण का प्रथम एवं अन्तिम दृश्य में भारतवर्ष के आदर्श विद्यमान है। 
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         [श्री] आनन्द किरण "देव"
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