प्रउत में संस्कृति एवं समाज का वास (Residence of culture and society in Prout)

प्रउत शब्द का अर्थ प्रगतिशील उपयोग तत्व है। उपयोग तत्व इसका मूल है, जिसे प्रगतिशील बनाने के कारण प्रउत अर्थव्यवस्था दुनिया की सबसे महान व्यवस्था की संज्ञा पाती है। उपयोग तत्व को प्रगतिशील बनाने में सबसे गुरुत्व भूमिका समाज एवं संस्कृति की है। अतः समाज एवं संस्कृति को अपने आंचल में लेकर प्रउत सर्वजन हितार्थ सर्वजन सुखार्थ लक्ष्य को सिद्ध करता है।
सम्पूर्ण विश्व की एक ही संस्कृति एवं एक ही समाज है। इसकी अभिव्यक्ति भाषा के कारण होने पर विश्व एक ही समाज एवं संस्कृति लगभग 250 भिन्न भिन्न प्रकार व्यक्त हो रही है। समाज एवं संस्कृति की विभिन्नता युक्त अभिव्यक्ति एक वरदान है। इसके अभाव में हम प्रकृति धर्म वैचित्र्यं  के विपरीत चले जाते। जो धर्म, न्याय एवं यथार्थ की ग्लानि की अवस्था होती।
 प्रउत एक सामाजिक आर्थिक व्यवस्था है। जिसके मूल में सर्वजन हितार्थ सर्वजन सुखार्थ तत्व विद्यमान है। यह समाज का सार तत्व है। समाज एक संस्कृति की‌ अभिव्यक्ति है। अतः प्रउत दुनिया की पहली ऐसी अर्थव्यवस्था है, जो अपने आंचल में संस्कृति एवं समाज को समाये हुए हैं। प्रउत में संस्कृति एवं समाज कैसे निवास करते हैं? यही आज का विषय है। 

प्रउत शब्द का अर्थ प्रगतिशील उपयोग तत्व है। उपयोग तत्व इसका मूल है, जिसे प्रगतिशील बनाने के कारण प्रउत अर्थव्यवस्था दुनिया की सबसे महान व्यवस्था की संज्ञा पाती है। उपयोग तत्व को प्रगतिशील बनाने में सबसे गुरुत्व भूमिका समाज एवं संस्कृति की है। अतः समाज एवं संस्कृति को अपने आंचल में लेकर प्रउत सर्वजन हितार्थ सर्वजन सुखार्थ लक्ष्य को सिद्ध करता है। सम्पूर्ण विश्व की एक ही संस्कृति एवं एक ही समाज है। इसकी अभिव्यक्ति भाषा के कारण होने पर विश्व एक ही समाज एवं संस्कृति लगभग 250 भिन्न भिन्न प्रकार व्यक्त हो रही है। समाज एवं संस्कृति की विभिन्नता युक्त अभिव्यक्ति एक वरदान है। इसके अभाव में हम प्रकृति धर्म वैचित्र्यं के विपरीत चले जाते। जो धर्म, न्याय एवं यथार्थ की ग्लानि की अवस्था होती। अतः प्रउत व्यवस्था ने इस मूल को पकड़ा तथा समाज एवं संस्कृति की इस अभिव्यक्ति को लगभग 250 सामाजिक आर्थिक इकाई के रूप में विकसित करने की योजना से विश्व को परिचित कराया। यह संकल्प पूंजीवादी, समाजवादी एवं भावजड़ व्यवस्थाओं के पास नहीं है। इसी कारण यह व्यवस्था अर्थव्यवस्था के मूल सर्वजन हितार्थ सर्वजन सुखार्थ के लक्ष्य सिद्ध नहीं कर पाई। 

प्रउत व्यवस्था ने विश्व को एक सामाजिक आर्थिक इकाई के रूप में विकसित करने की योजना बनाई है। जब तक विश्व समान आर्थिक समस्या, समान आर्थिक संभावना, नस्लीय समानता एवं भावनात्मक एकता नामक चार पहलूओ का समग्र विकास नहीं करता तब तक एक अखंड अविभाज्य मानव समाज का महाविश्व नहीं बन सकता है। अतः महाविश्व की यह महान योजना लगभग 250 सामाजिक आर्थिक इकाई को समाज के रूप में विकसित करने की योजना प्रस्तुत करता है। चूंकि प्रउत के पास समाज विकसित करने की योजना है। इसलिए समाज को संस्कृति की पहचान के रूप चिन्हित करना परम आवश्यक है। पहले कहा गया समस्त विश्व की एक ही संस्कृति एवं समाज की लगभग 250 प्रकार अभिव्यक्ति हमारे वरदान है। अतः विश्व को  लगभग 250 समाज के रूप में विकसित कर एक अखंड अविभाज्य मानव समाज का महाविश्व बनाया जाना सहज सरल एवं सुसाध्य है। अतः समाज आंदोलन की शुरुआत भाषा, संस्कृति, समाज एवं मनुष्य बचाओ अभियान से होती है। जो विचारधारा विश्व को एक भाषा में विकसित करने का अव्यवहारिक सिद्धांत देती है, वह विश्व को मौत के मूह में धकेलना चाहती है। भाषा समाज एवं संस्कृति की भौगोलिक, प्राकृतिक एवं ऐतिहासिक अभिव्यक्ति है। इसको ध्वंस कर हम उपयोग तत्व को प्रगतिशील आयाम में स्थापित नहीं कर सकते हैं। अतः हम कह सकते हैं कि समाज एवं संस्कृति प्रउत में वास करती है। प्रगति के पहला सौपान स्व:भाषा से निकलता है। यह मनुष्य संस्कृति एवं समाज से अपनत्व का बोध कराती है। अतः विश्व की किसी भाषा की मृत्यु नहीं होनी चाहिए, क्योंकि भाषा ही समाज एवं संस्कृति की अभिव्यक्ति है। 

विश्व के सबसे शक्तिशाली समाज आंदोलन ने भाषा बचाओ, संस्कृति बचाओ, समाज बचाओ एवं मनुष्य बचाओ अभियान के माध्यम से विश्व एवं मानवता बचाने का संकल्प हाथ में लिया है। इसलिए कहा गया है कि प्रउत में समाज एवं संस्कृति का वास है। 

[श्री] आनन्द किरण "देव"
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