कृषि से प्रउत ( From Agriculture to Prout)

 'मास्टर यूनिट' (Master unit) की सफलता के लिए समाज की सहभागिता होना सुनिश्चित है। जब मास्टर युनिट के विकास में अंशदान देने वाले प्रत्येक व्यष्टि के मन में यह होना आवश्यक है कि प्लान मेरा है, भाव का जागरण नहीं होगा तब तक हम समन्वित सहकारिता के लक्षण को प्राप्त नहीं कर सकते हैं। जब तक समन्वित सहकारिता का गुण मास्टर युनिट में समाविष्ट नहीं होगा तब तक यह शोभायात्रा की वस्तु ही बनकर रह जाएंगे।
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प्रउत प्रणेता श्री प्रभात रंजन सरकार ने रेखांकित किया है। मनुष्य की मूलभूत समस्या अन्न, वस्त्र, आवास, चिकित्सा एवं शिक्षा है। जिसमें प्रथम समस्या अन्न की है। अतः उन्होंने कृषि से प्रउत की शुरुआत करने का आदेश दिया है। आजकल कुछ उद्यमियों ने कृषि पर आधारित उत्पादों को लेकर समन्वित सहकारिता के माध्यम से 'अभ्यास में प्रउत' (Prout in practice) योजना की शुरुआत की है। उनकी इस‌ सोच एवं पहल के लिए धन्यवाद के अधिकारी तो लेकिन उन्हें सफल होने के लिए 'कृषि से प्रउत' योजना पर अमल करना चाहिए। जब तक कच्चे माल की जननी प्रबल नहीं होगी तब तक द्वितीयक श्रम की सिद्धि प्रश्न की परिधि में रहेगी।

कृषि से प्रउत की शुरुआत करने के लिए अच्छे उद्यमियों को आगे आना चाहिए तथा उन्हें एक समन्वित सहकारी समिति का निर्माण कर प्रथम कृषि, कृषि सहायक तथा कृषि आधारित उद्योग पर काम करना चाहिए। कृषि सहायक एवं कृषि आधारित उद्योग की सफलता की मूल कृषि है। अतः एक निश्चित कृषि भूखंड लेकर समन्वित सहकारिता के आधार पर कृषि उद्योग, कृषि सहायक उद्योग एवं कृषि आधारित उद्योग व्यवस्था की शुरुआत करनी चाहिए। प्रउत प्रणेता ने इसे 'मास्टर यूनिट' (Master unit) नाम दिया है।

'मास्टर यूनिट' (Master unit) की सफलता के लिए समाज की सहभागिता होना सुनिश्चित है। जब मास्टर युनिट के विकास में अंशदान देने वाले प्रत्येक व्यष्टि के मन में यह भाव होना आवश्यक है कि यह प्लान मेरा है,  जब तक इस भाव का जागरण नहीं होगा तब तक हम समन्वित सहकारिता के लक्षण को प्राप्त नहीं कर सकते हैं। जब तक समन्वित सहकारिता का गुण मास्टर युनिट में समाविष्ट नहीं होगा तब तक यह शोभायात्रा की वस्तु ही बनकर रह जाएंगे। अतः मास्टर युनिट जो कृषि में प्रउत(Prout in Agriculture) अथवा कृषि से प्रउत (Agriculture to Prout) के साक्षात्कार प्रतिभूत है, इनमें समाज की भागीदारी सुनिश्चित होनी आवश्यक है। अतः प्रउत के द्वितीय समाज आंदोलन के तहत व्यवहार में प्रउत पर काम करने वालों को यह कार्य करना ही होगा। यही प्रउत का भौतिक समृद्धि के लिए किया गया कार्य  है। इससे ऋद्धि एवं सिद्धि के क्षेत्र में भी काम होगा। इस प्रकार के मास्टर युनिट के माध्यम एक समाज में आदर्श प्रस्तुत कर प्रउत के प्रति जन जागरुकता अभियान चलाया जाएगा।

कृषि से प्रउत विषय पर चर्चा हो रही है। अतः व्यवहार में प्रउत का मूल्य भी जाना जा रहा है। व्यवहार में प्रउत का मूल बिन्दु समन्वित सहकारिता है। जिसमें सभी सहकारी सदस्य युनिट के प्रति किसी न किसी रुप में अपना अंशदान देता है। इसलिए प्रतिफल में अंशदान भी पाते हैं। यही कृषि में प्रउत, कृषि से प्रउत अथवा मास्टर युनिट का मूल है। श्री प्रभात रंजन सरकार बताते हैं कि समन्वित सहकारिता मात्र प्रउत दर्शन में ही रह सकती है। पूंजीवाद एवं समाज में आश्रित सहकारिता रहती है। जो सहकारिता के मूल अर्थ के मेल नहीं खाती है। हम कम्यून अथवा व्यक्तिगत मिलकियत बनाने नहीं आए हैं, हम आए समाज में समन्वित सहकारिता की प्रतिष्ठा करने के लिए। सहकारी समिति में प्रथम सहकारी समिति कृषि सहकारी समिति होती है, उसके बाद उत्पादन सहकारी समिति तत्पश्चात उपयोग सहकारी समिति इत्यादि सहकारी समितियाँ आती है। अतः प्रउत की शुरुआत कृषि से की जाने का प्रावधान है। कृषि के साथ पशुपालन स्वत: ही पनपने वाला द्वितीय प्रकार प्राथमिक उद्योग है। यह भी समन्वित सहकारिता के आधार पर चलाते हुए इस प्रकार आधारित उद्योग का संचालन कर प्रउत व्यवस्था को सुदृढ़ता से स्थापित की जा सकती है।

कृषि में प्रउत व्यवस्था की शुरुआत के बिना प्रउत व्यवस्था की स्थापना संभव नहीं है। इसलिए  कृषि से प्रउत विषय लिया गया है। यह जिम्मेदारी समाज आंदोलन की है अथवा यह हिस्सेदारी समाज आंदोलन है। जिसने प्रउत को नहीं जिया, वह कभी भी प्रउत नहीं ला सकता है। (One who has not lived Prout, can never bring Prout.)  अतः प्रउत को लाने के 'कृषि से प्रउत' विषय पर काम करना आवश्यक है। ऐसे ' मास्टर युनिट' हर सामाजिक आर्थिक इकाई के प्रत्येक ब्लॉक में स्थापित करने की आवश्यकता है। यही व्यवहार में प्रउत की शुरुआत है। यही समाज आंदोलन का भौतिक समृद्धि की दिशा में किया गया प्रथम कदम है।

बाबा को किसने ने पूछा कि प्रउत कब आएगा तो बाबा का उत्तर था पहले तिलजला प्रउत लाओ। अर्थात जब तक हमारे भीतर, हमारी जीवन शैली में, हमारे समाज में प्रउत नहीं आएगा तब तक हम दुनिया को प्रउत देने के प्रश्न का उत्तर नहीं खोज पाएंगे। प्रउत व्यवस्था में मूल, बड़े तथा राष्ट्रीय महत्व के उद्योग सरकार के हाथ में दिये है तथा अतिलघु एवं विलासिता के उद्योग निजी हाथों में दिये है तथा शेष सभी उद्योग समन्वित सहकारिता को सौपे है। जिसमें कृषि उद्योग, कृषि सहायक उद्योग तथा कृषि आधारित उद्योग तथा कृषि के साथ स्वत: पनपने वाले पशुपालन उद्योग, पशुपालन पर आधारित उद्योग इत्यादि भी समन्वित सहकारिता से चालाने का आदेश है।

अतः कृषि से प्रउत की ओर चलों (move from agriculture to prout ) श्लोग्न बुलंद करने की जरूरत है। श्लोग्न से ही काम नहीं चलेगा इस पर आधारित योजना बनाने की आवश्यकता है।

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लेखन कर्ता -
[श्री] आनन्द किरण "देव"

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