पूर्णकालिक बंधु (PKB)

®️         पूर्णकालिक बंधु            ®️
                (PKB) 
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        श्री आनन्द किरण "देव"
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जिस गृहस्थ ने अपने सांसारिक दायित्व का निवहन कर दिया है, उनका परिवार उनके अभाव पूर्णतया सुरक्षित रह सकता है एवं स्वास्थ्य साथ दे रहा है, तो  वह जीवन की शेष अवधि समाज को समाज सेवा एवं धर्म प्रचार के लिए समर्पित कर सकता है। ऐसे व्यक्ति को पूर्णकालिक बंधु (PKB) कहलाएंगे। PKB अपने जीवन का यह समय समाज के लिए जीता है। समाज ही उसका परिवार है। अर्थात छोटे परिवार के छोटे सुख का परित्याग कर बड़े परिवार के बड़ा सुख ग्रहण करता है। प्राचीन भारतीय समाज में इस कार्य को वानप्रस्थ कहते थे। 

वानप्रस्थ शब्द का समाज सेवा के लिए जीवन देने के लिए प्रस्थान करना है। भूल से  किसी ने इस शब्द का अर्थ वन गमन कर दिया गया था। वान शब्द का अर्थ वृहद उद्देश्य के लिए जीवन समर्पित करना है। इस अवधि में व्यक्ति समाज के लिए जीता था। उसका प्रत्येक कार्य सार्वजनिक हित के लिए होता था। इसलिए समाज में वानप्रस्थ करने वालों खुब सम्मान था। यह मुख्यतः शिक्षा, चिकित्सा, राहत, कल्याण मूलक सेवाएं एवं धर्म प्रचार का कार्य करते थे। 

आधुनिक युग में इस अवधारणा का नाम पूर्णकालिक बंधु (PKB) नाम दिया गया है। जिस किसी भी भाई बहिन को यह सुयोग मिले तो इस पुनीत कार्य को करना चाहिए। इसके माध्यम अपने जीवन धन्य किया जा सकता है तथा जीवन पर हितार्थ जिया जा सकता है। PKB के लिए आयु का क्राइट ऐरिया नहीं है। पारिवारिक दायित्व के भार मुक्त होना आवश्यक है तथा स्वास्थ्य साथ देना भी आवश्यक है। PKB समाज पर भार नहीं होता है अपितु समाज का भार अपने उठाकर नया जीवन जिता है। PKB ERWS कार्य के लिए सबसे उपयुक्त कार्यकर्ता हैं। ERWS  शिक्षा, राहत एवं कल्याण मूलक कार्य करने वाला विभाग है। इसके अलावा सेवादल, स्वयंसेवक एवं सामाजिक आर्थिक आंदोलन के लिए उपयुक्त रह सकता है। 

सेवाधर्म के कार्य भी वरिष्ठ एवं अनुभवी  PKB को लगया जा सकता है। हरि परिमंडल गोष्ठी में यह अच्छा कार्य कर सकते हैं। प्राचीन भारतीय समाज में इन्हें सन्यास आश्रम कहते थे। जिसका अर्थ सत्य धर्म के लिए जीवन अर्पित करने वाला है। जब वानप्रस्थ आश्रमी अधिक दौड़ धूप नहीं कर सकता था अथवा शरीर में काम करने के अधिक क्षमता नहीं होती थी। तब एक स्थान पर रहकर अथवा कम दौड़ धूप करके सेवा धर्म के कार्य सम्पन्न करता था। आधुनिक युग में यह अवधारणा PKB में ही समाविष्ट है। 

प्राचीन गृहस्थाश्रमी भी अंशकालिन सेवा देते थे। आधुनिक युग में इन्हें स्थानीय अंशकालिक कार्यकर्ता (LPT Local part timer Worker) कहते हैं। इसी प्रकार प्राचीन ब्रह्मचर्याश्रमी शिक्षा अध्ययन के बाद अपने जीवन को सन्यास ग्रहण कर सम्पूर्ण जीवन समाज सेवा एवं धर्म प्रचार के लिए लगा देता था अथवा स्थानीय क्षेत्र में समाज के साथ रहकर समाज सेवा एवं धर्म प्रचार करता था। यह लोग पारिवारिक उत्तरदायित्व ग्रहण नहीं करते थे। इसके अतिरिक्त पारिवारिक उत्तरदायित्व ग्रहण करके आदर्श गृहस्थ जीवन जीते थे। आधुनिक युग में सन्यास ग्रहण करके सेवा करने वालों को WT - Whole timer  एवं स्थानीय पूर्णकालिक को LFT - Local full timer कहा जाता है। 

 प्राचीन आश्रम व्यवस्था एवं आधुनिक कार्यकर्ता जीवन सुन्दर एवं आदर्श समाज व्यवस्था के द्योतक है। आओ मिलकर ऐसी व्यवस्था का निर्माण करते हैं तथा ऐसे समाज का अंग बनते हैं। जहाँ आदर्श सामाजिक आर्थिक व्यवस्था का निर्माण होता हो। 
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©️श्री आनन्द किरण "देव", ©️
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नोट - यह अवधारणा मूलतया  श्री श्री आनन्दमूर्ति जी है। 
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