माइक्रोवाइटा सिद्धांत में नव्य मानवतावाद (Neo Humanism in Microvita Theory)


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श्री प्रभात रंजन सरकार ने दुनिया में एक माइक्रोवाइटा सिद्धांत दिया है तथा उन्होंने ने नव्य मानवतावाद भी प्रदान किया है। आज हम माइक्रोवाइटा सिद्धांत में नव्य मानवतावाद पढ़ने जा रहे हैं। माइक्रोवाइटा एक सूक्ष्मत्तम प्राणी है। जीव विज्ञान के अनुसार इसे जीव की श्रेणी में रखा जाए अथवा अजीव की श्रेणी रखा जाए, यह जीव वैज्ञानिकों एवं जैव मनोवैज्ञानिकों के शोध का विषय है। योग विज्ञान कहता कि जैव तथा अजैव ( भौतिक) जगत पांच तत्व से मिलकर बना है, जिसे क्रमशः व्योम, मरु, तेज, जल व क्षिति तत्व कहा जाता है। इसमें प्राण तथा मानस तत्व के समिश्रण जैव जगत की संपदा है, जबकि भौतिक जगत को पदार्थ की सूक्ष्मत्तम अवस्था परमाणु का व्यापक विकास बताया गया है। जैव तथा अजैव जगत में एक अणुजीवत (Microvita) एक ऐसा तत्व अथवा प्राणी है। जो जीवीत रहने के लिए हवा, पानी एवं अन्न का उपयोग नहीं करता है फिर भी वह चिन्तन मनन एवं स्मरण जैसी क्रियाओं को संपन्न करता है। माइक्रोवाइटा विज्ञान के अनुसार अणुजीवत (Microvita) अग्नि,वायु एवं आकाश नामक तीन तत्व से युक्त प्राणी है। इसमें पृथ्वी व जल तत्व नहीं होने के कारण शरीर से मुक्त प्राणी माना गया हैं। अग्नि तत्व होने के कारण इसे देखा जाने वाला प्राणी कहा जा सकता है तथा वायु व आकाश तत्व के कारण इन्हें छूआ एवं सुना भी जा सकता है। चूंकि अणुजीवत (Microvita) भौतिक शरीर अर्थात जल व पृथ्वी से मुक्त है इसलिए इसमें पाचन तंत्र, उत्सर्जन तंत्र, परिसंचरण तंत्र की आवश्यकता नहीं होती है। क्या अणुजीवत (Microvita) में प्राण तत्व तथा श्वसनतंत्र है? वायु तत्व के होने से इसका अस्तित्व होना संभव माना जा सकता है लेकिन जिसके लिए श्वसनतंत्र की आवश्यकता है - वह भोजन व पानी है, इसकी अणुजीवत (Microvita) को आवश्यकता नहीं होने के कारण श्वसनतंत्र का होना आवश्यक नहीं माना जाता है। अग्नि तत्व की उपस्थिति बताती है कि अणुजीवत (Microvita) के संचालन की ऊर्जा होती है। अणुजीवत (Microvita) यह ऊर्जा संभवतया प्रकृति से प्राप्त करता है। श्री प्रभात रंजन सरकार ने इन अणुजीवत (Microvita) की सात श्रेणियों का भी उल्लेख किया है। यह यक्ष, रक्ष(विदेही), गंधर्व, किन्नर, विद्याधर, सिद्ध व प्रकृतिलीन है। इसमें सिद्ध सबसे अधिक चेतनाशील तथा प्रकृतिलीन सबसे कम चेतनाशील अथवा चेतनाशून्य अणुजीवत (Microvita) है। इन्हें पराभौतिक सत्ता अथवा देवयोनी जीव भी कहा गया है। श्री प्रभात रंजन सरकार ने नकारात्मक अणुजीवत (Negative Microvita) के अस्तित्व को  भी स्वीकारा है। अत: धनात्मक अणुजीवत (Positive Microvita) के लिए संस्कृत शब्द देवयोनी है तो नकारात्मक अणुजीवत ( Negative Microvita) के दानवयोनी शब्द होना अस्वभाविक नहीं लगता है। चूंकि अणुजीवत सिद्धांत (Microvita theory) के जनक श्री प्रभात रंजन सरकार ने इस शब्द का प्रयोग नहीं किया है इसलिए हम इस शब्द का प्रयोग किये बिना ही अपनी बात को रखने की चेष्टा करते हैं। 

श्री प्रभात रंजन सरकार का अणुजीवत सिद्धांत (Microvita theory) समझने के बाद उनके नव्य मानवतावाद दर्शन की ओर चलते है, उनके अनुसार मनुष्य जियो व सोसियो सेंटीमेंट के आधार पर वस्तु जगत में चलता है। जब उसमें विचारपूर्ण मानसिकता का विकास होता है तथा स्टेडी की ओर अग्रसर होता है तब वही जियो एवं सोसियो सेंटीमेंट से अपनी बुद्धि को मुक्त कर मानवतावाद तथा नव्य मानवतावाद की ओर चलता है। उसकी बुद्धि जब तक मनुष्य तक ही सीमित रहती है तब तक मानवतावाद से दीदार होता है लेकिन जब उसकी बौद्धिक क्षमता चराचर जगत से जुड़ जाती तब नव्य मानवतावाद के दर्शन करता हैं। नकारात्मक व धनात्मक दोनों अणुजीवत (Negative & positive  both Microvita) मनुष्य को सेंटीमेंट के पथ ले चलते है जबकि उच्च स्तर के धनात्मक अणुजीवत ( high level positive Microvita) उसे नव्य मानवतावाद की ओर ले चलता है। 

श्री प्रभात रंजन सरकार ने बताया कि मनुष्य विशेष कौशल के बल पर अणुजीवत (Microvita) के दोनों  स्वरुपों में बदलाव किया जा सकता है। नकारात्मक अणुजीवत  (Negative Microvita) को धनात्मक अणुजीवत (positive Microvita) में तथा धनात्मक अणुजीवत (positive Microvita) को नकारात्मक अणुजीवत  (Negative Microvita) में बदलाव करना संभव है। अत: मनुष्य के लिए सुअवसर है कि अपने बौद्धिक व आध्यात्मिक गठन को सही कर अधिक से अधिक धनात्मक अणुजीवत (Positive Microvita) का सामीप्य लाभ कर अपना कल्याण करें तथा बुद्धि को मुक्त कर नव्य मानवतावाद की ओर ले चले। 

वास्तव में यह जगत धनात्मक व नकारात्मक अणुजीवत(positive & Negative   Microvita) का खेल है। अत: विद्या बुद्धि संपन्न लोग अपनी साधना एवं कीर्तन के बल पर अधिक से अधिक धनात्मक अणुजीवत (Positive Microvita) का सर्जन कर जगत को सर्वात्मक कल्याण के पथ पर ले चल सकते है तथा जगत में सेंटीमेंट के स्थान पर नव्य मानवतावाद को स्थापित कर सकते है। लेकिन साधना शिविर तथा अखंड कीर्तन कभी भी उद्देश्य मूलक नहीं होते है यह निष्काम आध्यात्मिक विकास के लिए किये जाते है। जब मनुष्य अपने बौद्धिक चातुर्य के बल पर इन्हें सकाम रुप देने निकलता है तो वह न तो जगत का कल्याण कर सकता है तथा न ही अपना शारीरिक, मानसिक एवं आध्यात्मिक विकास कर सकता है।  कीर्तन व साधना निष्काम, इच्छा रहित व चाहत रहित होनी चाहिए। साधक का यह प्रयास जगत में नव्य मानवतावाद  की स्थापना में महत्वपूर्ण सहयोग प्रदान करता है तथा स्वयं का शारीरिक, मानसिक एवं आध्यात्मिक विकास करता है। 

आओ सकारात्मक सोच व निष्काम भाव से आध्यात्मिक साधना करते हुए आगे बढ़ते हैं, इससे जगत को मिलेगा एक अखंड व अविभाज्य मानव समाज तथा व्यष्टि को मिलेगा मुक्ति व मोक्ष का पथ आनन्द मार्ग। आओ समष्टि एवं व्यष्टि को उस मूलाधार पर खड़ा करें जहाँ  सर्वजन हितार्थ, सर्वजन सुखार्थ के सूत्र स्थापित होते रहे। उच्च स्तर के साधक चारों उच्च स्तर के धनात्मक अणुजीवत (Positive Microvita) का जमााावड़ा होता है उनकी इच्छा मात्र से यह धनात्मक अणुजीवत (Positive Microvita) सर्वजन हितार्थ, सर्वजन सुखार्थ के कार्य में लग जाते तथा मानव समाज को मिलती प्रगतिशील उपयोग तत्व मूलक व्यवस्था। आओ मिलकर कर चले संधच्छध्व, आओ मिलकर बोल संवद्धध्वं, आओ मिलकर जाने सवोंमानसि जानतम् आओ मिलकर करे देवभागं यथा पूर्व सजनानाम उपासते, आओ मिलकर बनाए समानिवआकुति समानाहृदयानिव तथा आओ मिलकर हो जाए समानमस्तुओ मनो यथा व सुभाषते। यह परिवेश है उच्च स्तर के धनात्मक अणुजीवत (Positive Microvita) का, नव्य मानवतावाद काा। 
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     श्री आनन्द किरण "देव"
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