क्षेत्रवाद, राष्ट्रवाद एवं प्रदेशवाद इत्यादि भूमि केन्द्रित मानसिकता को भौम भाव प्रवणता (Geo Sentiment) कहा जाता है। मनुष्य का जन्म विश्व ब्रह्माण्ड के किसी ग्रह विशेष के किसी भूखंड विशेष में होने से उस भूखंड के प्रति अपनापन होना स्वाभाविक है, लेकिन उसके अंदर ही बौद्धिक विकास बद्ध होने को भौम भाव प्रवणता (Geo Sentiment) कहा जाता है। भौम भाव प्रवणता शब्द का अर्थ भूमि के प्रति अनुरागमय मानसिकता है। भूमि केन्द्रित मानसिकता का भावावेग अथवा भावावेश जन्म लेना अथवा ऐसा भाव पैदा करना - यह भूमि पवित्र है, शेष सार शून्य है को जियो सेंटीमेंट का उग्र स्वरूप कहा जाता है।
जन्मभूमि बनाम भौम भावप्रवणता -
सभी व्यक्तियों का कोई न कोई भूखंड जन्मस्थान अथवा जन्मभूमि होती है। इस जन्मभूमि के प्रति प्रेम स्वाभाविक मानवीय वृत्ति है, लेकिन इसके प्रति अनुराग भौम भावप्रवणता की परिधि में आ जाता है। 'अपि स्वर्णमयी लंका न रोचते लक्ष्मण, जननी जन्मभूमि स्वर्गादपि गरियसि' रामायण की यह उक्ति जन्मभूमि को स्वर्ग से बड़ा सुख देने वाली बताती तथा परायी भूमि के स्वर्ण अलंकार में भी मन को न रमाती है। इसको भौम भावप्रवणता के भावावेश को निर्मित करने वाला गिरोह आदर्श उक्ति मानकर अपना पाठ पढ़ाता है। वे इस उक्ति के मूलभाव को नहीं समझ पाने के कारण ऐसी नादानी करते है, उनकी यह नासमझी प्रभु श्री राम को विवादों के गलियारे में खड़ा कर देती है। यह उक्ति जन्मभूमि का भावावेग तैयार करने को नहीं थी अपितु यह उक्ति पराया धन-धान्य, महलों की विपुलता धूल समाना, निजी टुटी झोपड़ी, अभाव परमसुख समाना को दर्शाने के लिए है। रावण को हराने पर भी श्री राम लंका की विपुलता, समृद्धि को अपने मन में स्थान न देकर अयोध्या की कठोर कर्मभूमि को आनन्द देने वाली बताता है। इसका अर्थ यह नहीं था कि श्री राम के मन में अयोध्या के प्रति अनुराग था तथा लंका के प्रति राग था। इसलिए आदर्श पुरुष को अपने अल्पज्ञान की गठरी में बांधना छल है। जन्मभूमि के आधार पर प्रदेशवाद, राष्ट्रवाद, देशवाद व क्षेत्रवाद बन जाना भौम भावप्रवणता की परिधि में आता है। जन्मभूमि के प्रति सम्मान बुरा नहीं उसे कर्मभूमि बनाकर एक आत्मनिर्भर इकाई के रूप में विकसित करना अच्छा है। समग्र धरा को अपना गुलाम बनाने का भाव भौम भावप्रवणता का दानवोचित स्वरुप है। 'दुनिया का समग्र संपदा को लूटकर मेरी जनमभूमि को चमका दूँ' की मानसिकता भौम भावप्रवणता को शैतानी स्वरूप है।
मातृभूमि, पितृदेश एवं राष्ट्रवाद बनाम भौम भावप्रवणता -
व्यक्ति की मानसिकता तैयार करने के लिए मातृभूमि अथवा पितृदेश के नाम से विचार प्रेषित किये जाते है। कभी-कभी राष्ट्र की दुआ देकर राष्ट्रवाद व्यक्ति के दिलोदिमाग में ठूसा जाता है। मातृभूमि की वंदना, मातृभूमि की पूजन इत्यादि इत्यादि द्वारा व्यक्ति के सूक्ष्म भाव को खंड में केन्द्रित करते हैं, जब त्रिभुवन स्वदेश है तो एक भूखंड विशेष को मातृभूमि मानकर वंदन क्यों? इसका एक भक्ति का कल्ट तैयार किया जाता है ताकि व्यक्ति को आत्मिक रुप से जियो सेंटीमेंट की खूंटी से बांधा जा सकें। इस प्रकार यह मनुष्य के वैश्विक चिन्तन को रोककर बुद्धि की मुक्ति पर प्रहार करता है। इसलिए भौम भावप्रवणता से छूटकारा पाना मुश्किल माना गया है।
राष्ट्र एक विचार एवं भौम भावप्रवणता -
राष्ट्र भौगोलिक सीमाओं से घिरा एक विचार है, जो समान हितों एवं समान आकांक्षाओं के आधार पर बना एक संगठन है, जो मिलकर एक उद्देश्य को पुरा करता है। इस विचार को व्यक्ति की सुरक्षा के लिए हितकर माना गया है। क्या इसे भौम भावप्रवणता कहा जाएगा? भौम भावप्रवणता तब कहा जाता है जब व्यक्ति विचार एक परकोटे में बंद होते हैं अथवा परकोटे में बांधने का प्रयास किया जाता है। राष्ट्र एक अनुशासन है, उसे पालना भौम भावप्रवणता नहीं कहा जाता है। व्यक्ति विचारों में रुग्णता नहीं रहनी चाहिए उनके विचार में स्वच्छता रखकर राष्ट्र का अनुशासन अच्छा ही रहता है। राष्ट्र को कभी जियो सेंटीमेंट मत बनने दो, वह एक आवश्यक अनुशासन है, जो विश्व शांति की आधारशिला पर स्थापित है। विश्व राष्ट्र के सुन्दर विचार है, अत: राष्ट्र को विश्व राष्ट्र में ले जाना चाहिए।
राष्ट्र की टीम जीतने की खुशी मनाना भौम भावप्रवणता? -
राष्ट्र की टीम जीतने की खुशी भौम भावप्रवणता नहीं है लेकिन अन्य राष्ट्र की टीम जीतने पर दुखी होना अथवा हारने पर खुशी अनुभव करना भौम भावप्रवणता का अंकुरण है। नीति तो कहती शत्रु राष्ट्र को भी युद्ध एवं कुटनीति को छोड़कर उन्हें दुखी देखकर खुश नहीं होना चाहिए अथवा खुश देखकर दुखी नहीं होना अथवा दुखी होने की चाहता नहीं रखना अथवा दुखी करने के उपाय नहीं करना चाहिए, यदि ऐसा होता है तो यह भौम भावप्रवणता का निंदनीय स्वरूप है।
सामाजिक आर्थिक इकाई एवं भौम भावप्रवणता
आर्थिक एवं सामाजिक विकास की दृष्टि से गठित सामाजिक आर्थिक इकाई एक समाज है, इन्हें यदि कोई भौम भावप्रवणता माने तो यह उसकी मुर्खता अथवा नादानी है। यदि सामाजिक आर्थिक इकाई किसी के प्रति घृणा का पाठ पढ़ाती अथवा मनुष्य की बुद्धि वैश्विक चिन्तन से हटाने का कोई भी कार्य करती तो अवश्य ही निंदनीय होता। यह समाज को आत्मनिर्भर एवं व्यक्ति की स्वावलम्बी बनाती है तो गर्व की बात है। प्रउत अर्थव्यवस्था को जनोपयोगी बनाने के लिए कार्यशील समाज इकाइयां नव्य मानवतावाद एवं भूमा भाव की साधना को कभी नहीं भूलती है इसलिए जियो सेंटीमेंट रुपी शत्रु इसकी परिधि में तो दूर आसपास भी नहीं भटक सकता है।
Geo sentiment पर एक नज़र का अन्तिम पैरा कहता है कि सम्पूर्ण धरती सबकी मातृभूमि है, ब्रह्माण्ड सबका पितृदेश है। इसलिए किसी भी प्रकार की भाव जड़ता को प्रश्रय नहीं देना है। भूमाभाव साधना में अग्रसर व्यक्ति एवं संगठन ही गा सकता है सर्वे भवन्तु सुखिनः............
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श्री आनन्द किरण "देव"
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