सामाजिक भाव प्रवणता पर एक दृष्टि (A Look at Socio Sentiment)


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 जातिवाद, साम्प्रदायिकता, नस्ल एवं रंगभेद को मोटे तौर पर सामाजिक भाव प्रवणता ( Socio Sentiment) कहा जाता है। इस एक दृष्टि डालते है तथा देखते हैं कि Socio Sentiment किस प्रकार मनुष्य की बुद्धि को अपने पंख में जकड़ देता है। जाति,सम्प्रदाय, नस्ल व रंग से मनुष्य जन्म से जुड़ होता है अथवा कालांतर में जुड़ जाता है। यह तत्व जब उसके विचारों को प्रभावित करने लग जाते तब इसको सोसियो सेन्टिमेंट कहा जाता है। सेंटीमेंट सदैव बुरा नहीं होता है लेकिन उसमें रची पची बुद्धि को मुक्त बुद्धि नहीं कहा जाता है। समुदायगत विचार मनुष्य के भावों को प्रभावित करने लग जाता है तो यह दुखदायी एवं सुखदायी में विभाजित होते है। यह भावावेग अथवा भावावेश सकारात्मक होने पर कुछ सत्कर्म हो जाते है जबकि यह नाकारात्मक फ्लो में बह जाता है तो कुछ अप्रिय कर बैठते है। कभी कभी दुष्कर्म की परिधि तक भी चले जाते है। इतिहास में मजहब की तलवार जो सिर काटे है, वह सोसियो सेन्टिमेंट का हैवान था। विजेता जाति द्वारा पराजित जाति के साथ किया गया अमानवीय एवं निर्दयी व्यवहार अवश्य ही सोसियो सेन्टिमेंट का राक्षसी स्वरूप था। हमने पूर्व में देखा कि सोसियो सेन्टिमेंट सदैव बुराई का रास्ता नहीं फिर भी इसे मनुष्य की बुद्धि के चलन की राह नहीं कहा जा सकता है। मनुष्य बुद्धि सेंटीमेंट में बह जाने के लिए नहीं बनी है। मनुष्य की बुद्धि बनी नव सृजन के लिए, सत्कर्म करने के लिए अत: मनुष्य की बुद्धि को सेंटीमेंट से मुक्त होना चाहिए। 

जातिवाद, साम्प्रदायिकता, नस्लवाद एवं रंगभेद हमारा अनुसंधान का विषय नहीं है, इन शब्दों के माध्यम से सोसियो सेन्टिमेंट को समझने का प्रयास किया जा रहा है। अधिकांशत जाति, सम्प्रदाय, नस्ल व रंग जन्मगत विरासत में मिलते है लेकिन उसके आधार पर बुद्धि का संगठन मनुष्य को परिवेश से प्राप्त होती है। मजहब व जाति की पाठशालाएँ कभी कभी सोसियो सेन्टिमेंट पैदा करनी की कार्यशाला बन जाती है तब यहाँ आतंकवादी, उग्रवादी, नक्सलवादी एवं साम्प्रदायिक पशु तैयार होते है। जो बर्बर होने पर मानवता को नोचने का काम करते है। यद्यपि हम इस बात से इंकार नहीं कर सकते है कि सोसियो सेन्टिमेंट ने क्रांतिकारी, विप्लवी एवं आंदोलनकारी योद्धा भी तैयार किये है तथापि मनुष्य की बुद्धि सोसियो सेन्टिमेंट को समर्पित करने के लिए नहीं बनी है, उसे विचारशील, तर्कशील मानसिकता के पथ को ही चुनना होगा। 

सोसियो सेन्टिमेंट खतरनाक कैसे? 
सोसियो सेन्टिमेंट तब अधिक खतरनाक हो जाता है जब वह इसके आधार पर पुरा तंत्र खड़ा कर देता है। वह अर्थनीति, शिक्षानीति, संस्कृति, धर्म नीति, समाजनीति तथा ज्ञान विज्ञान को तैयार कर लेते है। स्वधर्म , स्वजाति, स्वजन इत्यादि नामों से मनुष्य की बुद्धि को मायाजाल में बांध देते है। मनुष्य होने के नाते मनुष्य का स्वधर्म मानवता है, मनुष्य की स्वजाति मानव है तथा मनुष्य के स्वजन मनुष्य है। इसके अलावा हिन्दू मुस्लिम, सिख ईसाई, ब्राह्मण, राजपूत, जैन, कायस्थ, दलित, दमित इत्यादि परधर्म, विजाति तथा पराये है। सोसियो सेन्टिमेंट के आधार पर निर्मित मायाजाल मनुष्य की बुद्धि को मलिन कर दे तो बुद्धि की मुक्ति की दवा की जरूरत पड़ती है। जाति-महजब के परिणाम सदैव दुखद नहीं रहे है, इसने कर्म कौशल को निखारा है, सभ्यता एवं संस्कृति का संरक्षण व संवर्धन भी किया है फिर भी मनुष्य बुद्धि को इसके लिए समर्पित करना सुकर्म नहीं है। 

सोसियो सेन्टिमेंट का आधुनिक स्वरूप - राजनैतिक दलवाद तथा जाति, साम्प्रदायिक आधार पर निर्मित संस्था एवं संगठनवाद सोसियो सेन्टिमेंट का आधुनिक स्वरूप है। राजनैतिक का दलदल सामाजिक वातावरण का गंदा करें तो अवश्य ही इन्हें सोसियो सेन्टिमेंट का ऋणात्मक परिणाम कहा जाएगा इसी प्रकार जाति व सम्प्रदाय आधारित संगठन भी वैमनस्य का वातावरण के जनक बन जाए तो सोसियो सेन्टिमेंट का दुष्परिणाम कहा जाता है। राजनैतिक गुटबाजी समाज में गुटों जन्म देते मनुष्य की बुद्धि को अपने बंद करके रख देते हैं। यह नूतन प्रकार के सोसियो सेन्टिमेंट को जन्म देता है। सोसियो सेन्टिमेंट का यह नूतन रुप भी मनुष्य की बुद्धि खुले आसमान की हवा खाने नहीं देते है। इसलिए बुद्धि को इस बूचड़खाने में बंद करने से नहीं चलेगा। 

गुटबाजी अथवा ग्रुपीज्म भी एक प्रकार का सोसियो सेन्टिमेंट है, जो अपने स्वार्थ सिद्धि के लिए समाज की एकता को गुटबाजी के अन्दर कैद करके के रखते, गुटबाजी के यह सरगना अपने-अपने हिसाब से बुद्धि को जकड़ने का तंत्र खड़ा करते हैं। अत: हमारी बुद्धि को इस अजीबोगरीब विनाशघर में नहीं धकेलनी से नहीं चलेगा। 

सामाजिक भाव प्रवणता का यह अध्ययन पत्र बुद्धि की मुक्ति की मांग करता है।   
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श्री आनन्द किरण "देव"
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