विषय की शुरुआत 'वाद' शब्द से करते है, यह एक प्रत्यय एवं शब्द दोनों ही है। शब्द के रूप में इस अर्थ मूल कथन है जबकि प्रत्यय के रुप में यह एक विचारधारा का द्योतक है। विश्व में विभिन्न विचारधारा का आगमन हुआ, उसकी व्याख्या वाद है तथा उसका मूल्यांकन प्रतिवाद है। वाद तथा प्रतिवाद के बीच विचारधारा आगे बढ़ती है। विचारधाराएँ एक चिन्तन होता है जो जगत के समक्ष परोसा जाता है, जगत उसका निचोड़ निकाल ग्रहण करता है। प्रकरण को समझने के लिए विभिन्न विचारधारा पर एक दृष्टि डाल कर मूल विचार पर आते है।
आदर्शवाद :- विचार अथवा चेतना को सृष्टि का मूल मानने वाली विचारधारा आदर्शवाद, प्रत्ययवाद अथवा विचारवाद के नाम से जानी जाती है। यह चेतना की ओर बढ़ते संशयवाद अथवा रहस्यवाद की ओर झुक जाती तथा धरती अपना संपर्क छोड़ देती है। जिसके कारण आदर्शवाद संपूर्ण कल्याण का अध्याय नहीं लिख पाईं।
यथार्थवाद :- प्रत्यक्षवाद अथवा वास्तविकवाद के नाम परिचित यथार्थवाद एक ऐसी विचारधारा है, जिसमें प्रत्यक्ष को प्रमाण माना जाता है। यह कल्पना अथवा आदर्श को अस्वीकार करने के कारण मनुष्य की बौद्धिक क्षमता के साथ सही न्याय नहीं कर पाईं।
विज्ञानवाद : - प्रमाण के आधार पर प्रमेय को सिद्ध मानने वाली विचारधारा है, जो बिना प्रमाण के सच को भी नहीं मानती तथा प्रमाण युक्त झूठ को मानने को तैयार हो जाती है। विज्ञानवाद की इन सीमाओं के कारण समग्र कल्याण के पथ पर नहीं चल पाईं ।
मानववाद - व्यक्ति को केन्द्र मानकर मानववाद का जन्म हुआ। यह व्यक्ति तथा व्यक्ति की जरूरत के आधार पर खींचा गया भौतिकवाद का एक रेखाचित्र है जिसमें मानव तो है लेकिन संवेदना नहीं है।
धार्मिक मानववाद - मान्यता के स्थान पर विवेक एवं तर्क को स्थान देने वाले विचारधारा है। जो प्रत्यक्ष को प्रमाण मानती है, इसने बोझिल एवं दकियानूसी विचारों से मनुष्य को सर्तक करते करते मानवीय गुणों के व्यापक विकास को अवरुद्ध कर दिया था।
एकात्म मानववाद - व्यक्ति, परिवार, जाति, राष्ट्र, विश्व एवं जगत को क्रमिक वलयाकार यात्रा में जोड़ कर एक धारण दी की व्यक्ति राष्ट्र के लिए राष्ट्र व्यक्ति के लिए नहीं, इसलिए यह एकात्म विकास कर पाईं।
नव मानववाद - मानववाद को यथार्थवाद एवं आदर्शवाद से जोडकर एक विचारधारा बनी जो नव मानववाद कहलाईं, इसमें विज्ञानवाद, भौतिकवाद एवं समाजवाद का भी समावेश हो जाता है। जो नैतिकता को स्वीकार करती है। यद्यपि यह समग्रता का दावा करके आईं थी लेकिन कई न कईं चुक जाने के कारण उससे अछूत रह गईं।
मानवतावाद : - अंग्रेजी में उपयुक्त शब्दकोश के अभाव में मानववाद तथा मानवतावाद को एक माना लिया जाता है। यह भ्रम नव मानववाद एवं नव्य मानवतावाद के संदर्भ में भी हो जाता है। मानववाद एवं मानवतावाद एक वस्तु नहीं है। मानववाद में व्यक्ति मुख्य होता है जबकि मानवतावाद में व्यक्तित्व मुख्य होता है। व्यक्ति मुख्य वाली विचारधारा का सामाजिक भावप्रवणता तथा भौम भावप्रवणता से नहीं होता है जबकि व्यक्तित्व प्रधान विचारधारा में इनका सामना होता है। मानववाद व्यक्ति को निखारता नहीं अपितु समझता जबकि मानवतावाद व्यक्तित्व निखारता है। इसलिए मानववाद एवं मानवतावाद को समझकर आगे बढ़ना होता है। जहाँ जाति-समुदाय व देश का स्थान नहीं होता है, उसे मानवतावाद कहते है। यह मानव को मानव से जोड़ने के कारण मानववाद से बड़ी विचारधारा कहलाती है। लेकिन उसने व्यक्ति को प्राणी ओर पर्यावरण से सचेत के प्रति सचेत नहीं करने के कारण अपनी महानता पर प्रश्न चिन्ह लगा दिया।
नव्य मानवतावाद : - विषय मूलतत्व नव्य मानवतावाद है, जिसके जनक श्री प्रभात रंजन सरकार है। इसे मानवेन्द्र नाथ राय का नव मानववाद समझने की भूल नहीं करनी चाहिए। नव्य मानवतावाद आध्यात्मिकता से ओतप्रोत रूहानी इंसानियत जो रहस्यवाद व यथार्थवाद बीच के अंतर को शून्य करता है। इसने मनुष्य ही नहीं चराचर जगत के जीव व अजीव की प्रगति का पथप्रदस्त किया है। इसने समाज की भेद मूलक तस्वीर से बुद्धि को मुक्त जीवन के सत्य से जोड़ने का कार्य किया है।
नव्य मानवतावाद क्या?
नव्य मानवतावाद श्री प्रभात रंजन सरकार द्वारा प्रतिपादित एक विचारधारा है, जिसका विकास उनके ग्रंथ बुद्धि की मुक्ति नव्य मानवतावाद से माना जाता है। नव्य मानवतावाद का अर्थ मनुष्य के विचारों को सम्पूर्ण सृष्टि के जीव व अजीव के कल्याण मूलक बनाना है। यही मनुष्य के विचार एवं विचारधारा में तनिक भी मलिनता अथवा अस्वस्थता नहीं रहने देता है। यह भाव प्रवणता के स्थान पर मनुष्य विवेक बुद्धि प्रदान करता है, जिसके बल मनुष्य सर्वात्मक कल्याण की ओर अग्रसर होता है। सम्पूर्ण विश्व मनुष्य की अपनी जिम्मेदारी है, इसलिए नव्य मानवतावादी कभी वैमनस्य, प्रतिकार, प्रतिशोध तथा बदले की भावना का उत्तर नहीं है। यदि सदैव सकारात्मक, व्यापक एवं सर्वांगीण होता है। नव्य मानवतावाद वह शक्ति है, जिसके सहारे मनुष्य जीव शिव को देखता है।
नव्य मानवतावाद की परिभाषा - मनुष्य का एक ऐसा वैचारिक संगठन जहाँ सामाजिक, भौम भाव प्रवणता तथा तथाकथित मानवतावादी अवधारणा प्रभावित नहीं करती है। नव्य मानवतावाद एक ऐसा तराजू है, जिसमें स्वयं साथ किया जाने वाला न्याय तुलता है। नव्य मानवतावादी व्यक्ति वह है जिसके हाथ में समाज देकर समाज के रचियता निश्चिंत हो सकत है।
नव्य मानवतावाद क्यों?
१. यह सृष्टि पर्यावरण, पादप, जीव जन्तु एवं मनुष्य का एक परिवार है, जिसमें सब एक दूसरे से बंधुत्व, प्रेम एवं पारस्परिक आकर्षण जुड़े हुए है, उसका यह मधुर सामंजस्य बना रहे, इसलिए मनुष्य अपने वैचारिक, बौद्धिक एवं सामाजिक संगठन को तदरुप तैयार करें, इसके लिए नव्य मानवतावाद आया है।
२. समष्टि की संरचना व्यष्टि की शारीरिक, मानसिक एवं आध्यात्मिक संगठन पर निर्भर करता है तथा व्यष्टि का विकास समष्टि के स्वरुप पर निर्भर है इसलिए व्यष्टि व समष्टि जगत में प्रगति का पथ प्रदर्शक बनकर नव्य मानवतावाद आया है।
३. मनुष्य का निर्माण समग्रता में है, नव्य मानवतावाद समग्रता का वह सागर है जिसमें सामाजिक भाव प्रवणता, भौम भाव प्रवणता तथा मानवतावाद घुलकर विशुद्ध एक अखंड व अविभाज्य मानव समाज प्रदान करता है, जिसका प्रत्येक व्यष्टि सदविप्रता में प्रतिष्ठित होता है।
४. नव्य मानवतावाद सृष्टि के विकास का एक विज्ञान है, जहाँ मानव मानव एक है, मानव का धर्म एक है, एक चौका एक चूल्हा एक है मानव समाज के सूत्र सिद्ध होते हैं।
५. नव्य मानवतावाद वह पैमाना है, जिसे व्यक्ति के व्यक्तित्व को नापा जाता है, जिसमें से एक देव/देवी निकलती है।
७. नव्य मानवतावाद वह प्रमेय है, जिसमें मानव तथा उसका समाज सिद्ध होता है।
नव्य मानवतावाद कौन व कहाँ?
यह प्रश्न अजीब लग रहे होगा लेकिन यह प्रश्न ही नव्य मानवतावाद क्या एवं क्यों का मूल्यांकन करता है। रहेगी नव्य मानवतावादी को सदैव आनन्द मार्गी होना आवश्यक है, क्योंकि नव्य मानवतावादी यदि आनन्द मार्गी नहीं होता है तो वह नव्य मानवतावाद पर चल नहीं सकता है। एक सुख दुःख की अभिलाषा उसे नव्य मानवतावाद से बाहर निकालने की चेष्टा करती रहेगी, इसलिए बिना आनन्द मार्ग के नव्य मानवतावाद नहीं रह सकता है, अत: कहा जा सकता है कि नव्य मानवतावाद आनन्द मार्गी है, नव्य मानवतावाद आनन्द मार्ग में है।
-----------------------------
श्री आनन्द किरण "देव"
-----------------------------
0 Comments: