बुद्धि की मुक्ति कैसे?


नव्य मानवतावाद ने बुद्धि की मुक्ति का बीड़ा उठाया है इसलिए प्रश्न उठता है कि बुद्धि की मुक्ति कैसे? हमने देखा कि हमारी बुद्धि सामाजिक भाव प्रवणता (Socio sentiment) व 
भौम भाव प्रवणता (Geo sentiment) में अटक कर रह जाती है। इससे ज्ञात होता है कि मनुष्य का जीवन 'भावप्रवणता' (Sentiment) से अछूता नहीं है। इनसे मुक्त होना असाध्य अथवा दु:साध्य भी नहीं है। अत: बुद्धि की मुक्त का उपाय संभव है। 
भौम भाव प्रवणता ( Geo Sentiment) एवं उससे मुक्ति का उपाय :- भूमि केन्द्र विचार को Geo Sentiment कहते है - इसे राजनीति की सरल भाषा में क्षेत्रवाद, प्रदेशवाद, राष्ट्रवाद, जिला, तहसील एवं गाँव/शहर/कस्बावाद भी कहा जाता है। इसको लेकर मातृभूमि, पितृभूमि इत्यादि इत्यादि संकल्पनाएँ प्रचलित होती है। इस प्रकार Geo sentiment व्यक्ति का भावनात्मक दोहन करना शुरू करता है तथा व्यक्ति इस भूलभुलैया में अपना व्यक्तित्व ही भूल जाता है। Geo Sentiment यही नहीं रुकता है अपना पुरा तंत्र खड़ा कर देता है। Geo Sentiment पर आधारित अर्थनीति, समाजनीति एवं तथाकथित शिक्षानीति इत्यादि का भी सर्जन हो जाता है। व्यक्ति को एकबार तो ऐसा लगता है कि यह Geo Sentiment ही उसकी दुनिया है। उसकी बुद्धि मुक्त होने का प्रयास ही नहीं करती है। Geo Sentiment मात्र राजनैतिक सीमाओं का खेल है, जो इधर उधर होते ही राष्ट्र, प्रदेश एवं क्षेत्र की अर्थ ही बदल देती है। इतिहास विजेता की तलवार ने Geo Sentiment की संस्कृति की परिभाषा ही बदल दी थी। इसलिए Geo Sentiment में फसी बुद्धि को मुक्ति मिलनी ही चाहिए, श्री प्रभात रंजन सरकार बताते हैं कि Geo Sentiment के विकराल हाथों से मनुष्य को तर्कवादी मानसिकता अथवा विचारशील मानसिकता ( Rationalist mentality) ही बचा सकती है। मनुष्य विचारशील एवं तार्किक बनना होगा, अपने ज्ञान, बुद्धि एवं विवेक को भौम भाव प्रवणता के हाथों बेचने से नहीं चलेगा, उन्हें दिमाग को विचारशील मानसिकता में सुव्यवस्थित (setup) करना ही होगा। इससे वह Geo Sentiment से मुक्त बुद्धिवाला व्यक्ति बनेगा। वह कहता है परमपुरुष मेरे पिता, परमाप्रकृति मेरी माता त्रिभुवन है स्वेदश, जहाँ भी रहे समग्र सृष्टि के विकास का चिन्तन धारण करते रहे। इस प्रकार मनुष्य Geo Sentiment को हरा कर आगे बढ़ जाता है। बुद्धि की मुक्ति का प्रथम रास्ता दुरस्त हो जाता है। 

विचारशील मानसिकता का अर्थ हुआ अपने मन के तराजु में सत्य-असत्य, अच्छाई-बुराई, न्याय-अन्याय व ईमानदारी- बेईमानी को तौल तौलकर आगे बढ़ने की बुद्धि का नाम है। जब मनुष्य की तर्क व युक्ति की कसौटी पर कसेंगी तब मुक्ति मिलेगी। विचारशील मानसिकता के कारण मनुष्य भावावेश व भावावेग में नहीं बहेगा और एक विशुद्ध मनुष्य की गति चल पायेगा। 

सामाजिक भाव प्रवणता (Socio sentiment)एवं उसका निदान - व्यष्टि ने सामाजिक भाव प्रवणता ( Socio sentiment) को जातिवाद, साम्प्रदायिकता एवं नस्ल-रंग भेद के नाम से जाना है तथा उसका दुष्परिणाम भी भोगा है। जाति, सम्प्रदाय, नस्ल व रंग के आधार पर रक्त की नदी बही है। मानव इसमें मनुष्य के गुणों को ही स्वाहा करते देखा गया है। अपनी जाति, अपने सम्प्रदाय, अपने नस्ल एवं अपने रंग के आधार पर पिशाच बनकर अन्य जाति, अन्य सम्प्रदाय, अन्य नस्ल व अन्य रंग का खून पिया है। इसलिए Socio sentiment के लहूलुहान हाथों से अपने बुद्धि को आजाद करना ही होगा। सामाजिक भाव प्रवणता वह जहर जो मनुष्य अमृत समझकर पिता रहता है तथा मनुष्य को मिलती दर्दनाक मौत। Socio sentiment को गाढ़े बिना मनुष्यत्व का विकास नहीं होता है। एक व्यक्ति को न्याय जाति, सम्प्रदाय, नस्ल एवं रंग के आधार पर मिलने लग जाएगा तब मनुष्य सार्वजनिक रूप नंगा हो जाएगा। उसके हाथ में इज्जत नाम की वस्तु नहीं रहेगी। इतिहास ऐसे मनुष्य को एक हैवान के रूप में देखेगा। अत: Socio sentiment को अलविदा कर मनुष्य एक अखंड अविभाज्य मानव समाज का निर्माण करना होगा। Socio sentiment भी अपना तंत्र स्थापित करता है तथा Geo sentiment के तर्ज पर 'जो भरा नहीं भावों से, वह हृदय नहीं पत्थर से जिसे स्वदेश अथवा स्वजाति से प्यार नहीं है' का गाना गाकर मनुष्य का भावनात्मक शोषण करता है। Socio sentiment मनुष्य को पशु बनाकर अपने खूंटे बांधने के सारे यत्न करता है। लेकिन मनुष्य को Socio sentiment के हाथों से स्वयं को बचाना ही होगा, विश्व बंधुत्व का गान गाना ही होगा। श्री प्रभात रंजन सरकार ने Socio sentiment से बुद्धि की मुक्ति की राह स्टेडी (study) को बताया है। मनुष्य जितना अधिक स्वाध्याय करेगा, सत साहित्य का अध्ययन करेगा उतना अधिक अपनी बुद्धि को Socio sentiment के दायरे उपर उठाएगा। ज्ञान की पूंजी मनुष्य को भगवान के अखिलेश स्वरूप के दर्शन कराती है। वह सम्पूर्ण सृष्टि को अपना परिवार मानने लगेगा और मनुष्य हो जाएगा Socio sentiment से मुक्त। इसलिए मनुष्य को अध्ययनशील बनाना होगा, उसे ज्ञानवान बनना ही होगा। यही उसे बुद्धि की मुक्ति का पथ दिखाएगा। 

मानवतावाद एवं उससे निजात - मानवतावाद से उपर मनुष्य को आध्यात्मिकता के बल पर उठेगा तथा रूहानी इंसानियत दिल में आई। यह रुहानी इंसानियत सृष्टि के जीव-अजीव एवं चराचर जगत से प्रेम करना सिखाएगी ओर मनुष्य मानवतावाद से नव्य मानवतावाद में प्रोन्नत हो जाएगा। नव्य मानवतावाद ही बुद्धि को दिलाएगा मुक्ति। इसलिए नव्य मानवतावाद को समझना आवश्यक है। 
-----------------------------
श्री आनन्द किरण "देव"
-----------------------------
Previous Post
Next Post

post written by:-

0 Comments: