प्रमा (PRAMA)

"#प्रमा"
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 मनुष्य जीवन की प्रगति त्रिस्तरीय है। शारीरिक, मानसिक एवं आध्यात्मिक इन को लेकर एक त्रिभुज का निर्माण होता है। उसे प्रमा कहते हैं। इस प्रमा का अध्ययन करने के पर ज्ञात होता है कि आनन्द मार्ग दर्शन विश्व के अन्य दर्शनों से विशिष्ट क्यों है? इतिहास में कई दर्शन आए एवं लुप्त हो गए। किसी ने भौतिक या शारीरिक विकास के क्षेत्र में कार्य किया तो किसी ने मानसिक तथा अन्यन ने आध्यात्मिक विकास पर ध्यान केंद्रित किया। आनन्द मार्ग दर्शन की विशिष्टता यह है कि शारीरिक, मानसिक एवं आध्यात्मिक विकास की प्रमा को सन्तुलित रखने की बात करता है। इसलिए श्री श्री आनन्दमूर्ति जी की उदघोषणा है कि शारीरिक दृष्टि से मजबूत, मानसिक रूप सुदृढ़ एवं आध्यात्मिक अनुशीलन की ओर अग्रसरशील एक अच्छे एवं तगड़े आनन्द मार्गी के गुण है। प्रमा सन्तुलन के द्वारा मनुष्य जीवन के तीनों पक्षों के विकास की बात करता है। श्री श्री आनन्दमूर्ति जी ने अपने दर्शन में क्रांतिकारी पहल करते हुए बताया कि ब्रह्म सत्य है तथा जगत भी आपेक्षिक सत्य है। जगत को मिथ्या कहने वाले भाव जगत में पल-पल एवं कदम-कदम पर चोरियां करते हैं। उनके चिन्तन, कथनी एवं करणी में अन्तर होता है। वे जगत में कपटाचरण का आश्रय लेते हैं। इसलिए आनन्द मार्ग के गुरुदेव के रुप श्री श्री आनन्दमूर्ति ने सत्याश्रयी बनने की राह दिखाई है। उन्होंने आन्तरिक जगत आत्म सुख एवं बाह्य जगत में सम सामाजिक तत्व को लेकर चलने का निर्देश दिया है।    
जय बाबा ...
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श्री आनन्द किरण @ प्रमा सन्तुलन
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धर्मयुद्ध मंच से .............
 ............... श्री आनन्द किरण शिवतलाव

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धर्मयुद्ध मंच से .............
 ............... @ श्री आनन्द किरण
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 "प्रमा"
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मनुष्य जीवन की प्रगति त्रिस्तरीय है। शारीरिक, मानसिक एवं आध्यात्मिक इन को लेकर एक त्रिभुज का निर्माण होता है। उसे प्रमा कहते हैं। इस प्रमा का अध्ययन करने के पर ज्ञात होता है कि आनन्द मार्ग दर्शन विश्व के अन्य दर्शनों से विशिष्ट क्यों है? इतिहास में कई दर्शन आए एवं लुप्त हो गए। किसी ने भौतिक या शारीरिक विकास के क्षेत्र में कार्य किया तो किसी ने मानसिक तथा अन्यन ने आध्यात्मिक विकास पर ध्यान केंद्रित किया। आनन्द मार्ग दर्शन की विशिष्टता यह है कि शारीरिक, मानसिक एवं आध्यात्मिक विकास की प्रमा को सन्तुलित रखने की बात करता है। इसलिए श्री श्री आनन्दमूर्ति जी की उदघोषणा है कि शारीरिक दृष्टि से मजबूत, मानसिक रूप सुदृढ़ एवं आध्यात्मिक अनुशीलन की ओर अग्रसरशील एक अच्छे एवं तगड़े आनन्द मार्गी के गुण है। प्रमा सन्तुलन के द्वारा मनुष्य जीवन के तीनों पक्षों के विकास की बात करता है। श्री श्री आनन्दमूर्ति जी ने अपने दर्शन में क्रांतिकारी पहल करते हुए बताया कि ब्रह्म सत्य है तथा जगत भी आपेक्षिक सत्य है। जगत को मिथ्या कहने वाले भाव जगत में पल-पल एवं कदम-कदम पर चोरियां करते हैं। उनके चिन्तन, कथनी एवं करणी में अन्तर होता है। वे जगत में कपटाचरण का आश्रय लेते हैं। इसलिए आनन्द मार्ग के गुरुदेव के रुप श्री श्री आनन्दमूर्ति ने सत्याश्रयी बनने की राह दिखाई है। उन्होंने आन्तरिक जगत आत्म सुख एवं बाह्य जगत में सम सामाजिक तत्व को लेकर चलने का निर्देश दिया है।    
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