भविष्यवाणी का‌ विज्ञान (Science of Prediction)


-------------------------------------------
श्री आनन्द किरण "देव" का आलेख
-------------------------------------------
हमने‌ फ्रांसीसी भविष्यवक्ता नास्त्रेदमस की भविष्यवाणी की आड़ लेकर सामाजिक, आर्थिक, राजनैतिक, एवं आर्थिक संगठन के अनुयायी अपने नेता को जगत का तारणहार बताते हुए देखा है। अरब व युरोप में मसीहा की चाहत में पारसी, ईसाई एवं इस्लाम मजहब का प्रादुर्भाव हुआ। फिर भी यहुदी समाज को आज भी मसीहा की इंतज़ार है। इसी क्रम में भारतवर्ष में भी कल्कि अवतार की प्रतीक्षा में हर मत एवं पंथ का दावा करता है कि  उनके प्रणेता तारणहार है। दूसरी ओर कुछ व्यवसायजीवी, शौकइया, ज्योतिषी एवं दरबार लगाने वाले तथाकथित साधुसन्त भूत भविष्य बताने एवं माइंड रिडिंग इत्यादि की कला एवं चमत्कार को‌ अथवा इस प्रकार के दावों को करते हम सभी ने देखा। दुनिया में चल रहा यह खेल मनुष्य को भविष्यवाणी एवं चमत्कार के‌ खेल को समझने‌ व समझाने की आवश्यकता महसूस करता है। 

ज्योतिष शास्त्र, चमत्कार, जादू एवं भविष्यवाणियां का एक विज्ञान है। जिसे भौतिक, रसायन, जीव, कृषि, राजनीति, अर्थ, सामाजिक विज्ञान की भांति पढ़ा एवं समझा जा सकता है। कुछ लोग अपने व्यवसाय अथवा प्रभाव  बनाये रखने के चलते इसे रहस्य रखते है अथवा रहस्य में ढंग से प्रस्तुत करते हैं। कभी कभी तो इस कला का कलाकार किसी अलौकिक शक्ति का आदेश बताकर अथवा स्वयं को ईश्वरीय रुप बताकर भी पेश करते है। इन सभी मायाजाल से पर्दा तब उठ जाएगा जब मनुष्य आध्यात्मिक साधना के बल पर आत्म साक्षात्कार कर लेगा। इसलिए सभी मनुष्यों को आध्यात्मिक साधना के पथ पर चलना चाहिए। बिना किसी चमत्कार, अनुभूतियों अथवा भौतिक‌ प्राप्तियों की चाहत में की गई आध्यात्मिक साधना ही सत्य से साक्षात्कार कराती है। सत्पुरुष कहते है कि आध्यात्मिक साधना के मार्ग में आने वाले अलौकिक शक्ति को‌ धूल कण‌‌ की भांति झाड़ कर आगे बढ़ना चाहिए। आज हम भविष्यवाणी का विज्ञान समझने की कोशिश करेंगे। यद्यपि इस आलेख में भविष्यवाणी कैसे की जाती है। इसका कोई व्यवहारिक प्रर्दशन का उल्लेख नहीं किया जाएगा, इसमें मात्र सिद्धांत के द्वारा भविष्यवाणी का विज्ञान समझने का प्रयास किया जाएगा। भविष्यवाणी का विज्ञान समझने से पहले मनुष्य के मनोविज्ञान में संचित संस्कार विज्ञान को समझना आवश्यक है। संस्कार विज्ञान के अनुसार मनुष्य के द्वारा कृत कर्म एवं‌ कर्मफल ही मनुष्य भूत, भविष्य एवं वर्तमान है। भविष्यवाणी भी मनुष्य के भूत, भविष्य एवं‌ वर्तमान को‌‌‌ लेकर कार्य करती है। संस्कार के विज्ञान के अनुसार मनुष्य के कर्म करने के कारण मानस जगत में एक विकृति आती है। यह विकृति सु व कु दोनों प्रकार की होती है। सुकर्म के कारण जो‌ सुविकृति आती है, वह पूर्वावस्था में सुफल के माध्यम से आती है। जबकि कुकर्म के कारण जो कुविकृति आती है वह कुफल अथवा बुरे फल के माध्यम से पूर्वावस्था को प्राप्त करता है। इसी के बीच मनुष्य का जीवनचक्र चलता है। इससे प्रमाणित होता है कि भविष्यवाणी का विज्ञान इससे बाहर नहीं है। इसे समझने की आवश्यकता है। संस्कार का विज्ञान बताता है कि एक जन्म में किये कर्म जिसका फल भोग नहीं हुआ है वह विपाक कहलाते है। वे संस्कार के रुप जीवात्मा के साथ रहते है तथा वे ही जीव का भविष्य तय करता है। चूंकि संस्कार का विज्ञान समझाता है विदेही मन में सुख ‌- दु:ख काा बोध नहीं होता है इसलिए वह कर्तव्य कर्म नहीं कर सकता तथा फलभोग भी नहीं कर सकता है। इसलिए जीव नूतन देह की जरूरत होती है। संस्कार विज्ञान यहाँ यह भी स्पष्ट करता है कि स्वर्ग-नरक व भूत प्रेत नहीं होते है, इसलिए पुनः जन्म ही कर्मफल भोग का एक मात्र रास्ता  रह जाता है। मनुष्य के जन्म के साथ संस्कार की पूंजी लेकर आता है। यह संस्कार मनुष्य के भविष्य मुख्य आधार है। इसलिए भविष्यवाणी इससे पृथक रह नहीं सकती है।

भविष्यदृष्टा व्यष्टि एवं समष्टि के संस्कार को देखकर ही भविष्यवाणी करता है। यहाँ एक प्रश्न उठता है कि संस्कार मानस जगत की वस्तु है जबकि भविष्यवाणी भौतिक जगत में करता है, यह कैसे संभव है? यह सत्य है कि संस्कार मानस जगत में संचित है लेकिन उसका फल भौतिक जगत से संबंधित है इसलिए भविष्यवाणी संस्कार की पृष्ठभूमि से होती है, इसमें कोई दो राय नहीं है। मनुष्य के संस्कार एवं मातापिता के जीन्स उसके शारीरिक व मानसिक संगठन का आधार होता है। जो संगठन जीन्स से प्रभावित है उन्हें देखकर खानदान एवं कुल सभ्यता का अनुमान लगाया जाता है। उसमें विज्ञ भविष्यदृष्टा उन शारीरिक व मानसिक लक्षणों को देखकर मनुष्य के परिवेश, परिवार, घर, कार्यालय, भाई बहन, सगे संबंधियों तथा मित्रों के बारे में बता देता है। जबकि संस्कार के कारण जो शारीरिक व मानसिक संगठन तैयार हुआ है उसे पढ़ने वाला वैज्ञानिक भूत, भविष्य तथा वर्तमान का सटीक दृश्य देख पाता उसी के आधार पर भविष्यवाणी की जाती है। जो हस्तरेखा, पाद रेखा, मस्तिष्क रेखा, फेसरिडिंग, बोडिलेंग्वेज इत्यादि इत्यादि नाम के माध्यम से प्रकट होती है। इस विद्या में पारंगत कुछ साधक माइक्रोवाइटम (अणुजीवत्) का भी सहारा लेकर मनुष्य के संस्कार एवं संस्कार की गति के आधार पर भूत, भविष्य एवं वर्तमान बताते है। इस में कार्य सहायता करने वाले साथी (माइक्रोवाइटम) को बालाजी, कलाजी इत्यादि देवी शक्ति का नाम देकर उसकी ओर से भविष्यवाणी करते है तथा इसे चमत्कार नाम देता है। इसको लेकर कई बार व्यक्ति व्यवसायी बन जाता है अथवा एक व्यवसायी संस्थान का निर्माण करता है। भविष्यवाणी का यह कार्य संस्कार विज्ञान का खेल मात्र है। 

व्यष्टि जीवन में तो संस्कार पूंज के आधार गठित मानसिक एवं शारीरिक संरचना काम कर लेती है। लेकिन समष्टि जगत में भी भविष्यवाणियां की जाती है, वह कैसे संभव है? अणुमन की भांति भूमामन का भी संस्कार है। भूमामन का एक मात्र संस्कार अणुमनों की मुक्ति है। इस दिशा में काम करते करते युग आगे बढ़ता है तथा सूक्ष्म जगत में अज्रस माइक्रोवाइटम क्रियाशील होते तथा उसके कारण समष्टि वतावरण एक दृश्य का निर्माण होता है। जिसे ग्रह नक्षत्रों की गति अथवा खगोलीय दशा नाम देते हुए, उन्हें देखकर भविष्यदृष्टा कुछ सटीक भविष्यवाणी कर सकता है। इस प्रकार की भविष्य देखने वाला कितना भी पारंगत होने पर भी देश, काल व पात्र का स्पष्ट नाम न बताकर सांकेतिक शब्दावली का प्रयोग करता है। युग विशेष में आने वाली पीढ़ी के अध्ययन कर्ता इससे मेल बिठा कर व्यक्ति एवं घटना का सटीक अध्ययन करते है। भूमामन की कल्पना यह विश्व है। उनकी यह कल्पना भी एक विज्ञान है। इसमें पारंगत होने पर भी मनुष्य भविष्यवाणी कर सकता है। लेकिन इस प्रकार के व्यक्ति इस प्रकार के कार्य से अपने को दूर रखते है क्योंकि इससे व्यष्टि व समष्टि का कल्याण संभव नहीं है। भविष्यवाणी के क्रम में बता देना चाहता हूँ कि व्यष्टि मानस पटल की भांति समष्टि मानस पटल भी कुछ रेखाएँ उरेखित होती है। इसके दृष्टा ऋषि भविष्य का पुरा रेखाचित्र प्रकट कर देते है। युग उन्हें भविष्यवेत्ता कह कर सम्मान देते है। 

भविष्यवाणी का विज्ञान समझने के उपरांत ग्रह दोष निवारण इत्यादि गोरखधंधे की ओर चलते हैं। आध्यात्मिक विज्ञान कहता है कि मनुष्य का भविष्य वर्तमान के कर्म के आधार पर बनता है। उसी के आधार पर उसका भविष्य निर्धारित होता है। जिसे मनुष्य स्वयं के अतिरिक्त कोई नहीं बदल सकता है। फिर भी पंडित, पादरी एवं मौलवी इस प्रकार के गोरखधंधा करते देखे जाते है। क्या यह मिथ्या एवं ढकोसलाबाजी है? इसके लिए एक विधा अविद्या तंत्र है‌। अविद्या तंत्र को टोटका, जादूटोना नाम भी दिया गया है। जो मनुष्य के भाग्य आने वाले सुखदुख का समय, स्थान एवं पात्र में परिवर्तन ला सकते है‌। लेकिन इसका सम्पूर्ण निदान कर नहीं सकते है। इसके चलते ही ग्रह दोष निवारण इत्यादि गोरखधंधे पनपते है। सत्पुरुष शिक्षा देते है कि मनुष्य को इस प्रकार के कृत्यों से दूर रहना चाहिए‌‌। कर्म विज्ञान कहता है कि टोटका व दोष निवारण करने वालों का भविष्य बड़ा ही दुखदायी होता है। इसलिए मनुष्य को इस विज्ञान को नहीं सिखना चाहिए। यह लोग कई प्रकार की शारीरिक एवं मानसिक व्याधियों से ग्रसित रहते है। अत: इसके चुगल में मानव को नहीं फसना चाहिए। 

भविष्यवाणी की ओर फिर से चलते है। भविष्यवक्ता का भविष्य कैसा होता है? भविष्यवक्ता मात्र भविष्य में होने वाली घटना का छायाचित्र दिखता है, इसलिए उनके भविष्य की दुखद गति नहीं भी हो सकती है। यदि वह इसे अपना पेशा बनाकर मनुष्य को ठगना आरंभ करे तो कर्म एवं कर्मफल विज्ञान का परिणाम भुगतना ही‌‌‌ पड़ता है। 

विषय के अंत में मनुष्य को भूत‌ व भविष्य जानने में वक्त नहीं लगाना चाहिए। मनुष्य को अपने वर्तमान पर ध्यान देना चाहिए। यदि वर्तमान अच्छा, अनुशासित एवं योजनाबद्ध तरिके से जी लिया तो भविष्य जानने की जरूरत नहीं है। वह निस्संदेह उत्तम है। रही बात भूत की तो वह अपने हाथ में नहीं है इसलिए उस ओर ध्यान देने की आवश्यकता नहीं है। इसलिए सत्पुरुष कहते हैं कि वर्तमान में जियो तथा जीने दो। 
-----------------------------
           हस्ताक्षर
(श्री आनन्द किरण "देव") 
-----------------------------
Previous Post
Next Post

post written by:-

0 Comments: