किसान को धरतीपुत्र व अन्नदाता की उपमा से अलंकृत किसान को बजट पर बजट समर्पित होने पर भी दो घूंट आंसू पीने को मजबूर है। कृषि से नौजवानों को मोहभंग हो रहा है तथा गाँव छोड़ शहरों की ओर अपना भविष्य संवारने निकल रहे है। यह बात किसी देश अथवा समाज के लिए गौरव की बात नहीं है। कृषि को लाभकारी बनाने एवं कृषि को देश व समाज के विकास का आधार बनाने के लिए किसानों द्वारा कमर कसना ही सच्चे अर्थ में किसान आंदोलन है। इतिहास के व वर्तमान में चल रहे किसान आंदोलन के नेताओं ने किसानों को कुछ लोलीपोप देकर ठगा है तथा ठग रहें है। प्रउत आधारित कृषि ही किसानों के साथ न्याय कर सकती है। अतः नये किसान नेताओ को प्रउत की कृषि नीति का अध्ययन कर एक आदर्श किसान आंदोलन का शंखनाद करना चाहिए। मैं सड़कों पर घरना देना, चक्काजाम करना, रेल रोकना, पटरियां उखाड़ना, देशव्यापी बंद का आह्वान करना इत्यादि तरीकों में विश्वास नहीं करता हूँ। यह देश को कमजोर करते है तथा समाज को अशांति की राह पर ले चलता है। अतः किसानों को अपना आंदोलन सकारात्मक करना होगा। व्यवधान नहीं समाधान देकर किया गया किसान आंदोलन आदर्श किसान आंदोलन कहलाएगा।
*आदर्श किसान आंदोलन का पथ*
१. *पेशागत राजनेताओं को वोट बंद* - किसान जाति, सम्प्रदाय, दल एवं राजनीति से उपर उठकर पेशागत तथा नीति हीन दलगत राजनीति को सहयोग नहीं करेंगे। ऐसा राजनीति जीवियों को वोट, मान, सम्मान, सहयोग व समर्थन तुरंत बंद कर देना होगा। यदि आवश्यकता महसूस करें तो नई राजनैतिक संस्कृति का निर्माण करना चाहिए। इससे सरकार व शासन हिल जाएगा।
२. *कृषि सहायक व कृषि आधारित उद्योग पर किसान एकाधिकार स्थापित करें* - किसानों को पूंजीपतियों द्वारा संचालित कृषि आधारित एवं कृषि सहायक उद्योग पर से अपनी निर्भरता समाप्त कर, उन पर अपना एकाधिकार स्थापित करना होगा। इस औद्योगिक संस्कृति व पूंजीपति व्यवस्था हिल जाएगी।
३. *शोषणकारी शक्ति को अन्न मूल्य बताना* - किसान को अन्नदाता कहा जाता है। किसान सम विषम परिस्थितियों का सामना कर अन्न उत्पन्न कर जगत पेठ भरता है। वैश्यों व दुर्बुद्धि राजनीतिज्ञों को अन्न की कीमत का अंदाजा नहीं है। भूख देश की समस्या हो सकती है लेकिन शोषणकारियों व दुर्बुद्धि धारियों की नहीं। उनके ऐश्वर्य में कोई कमी नहीं होती है। चूंकि किसान अन्नदाता है इसलिए किसी को भूखा नहीं रख सकता है लेकिन अपना उत्पाद सीधा इन लोगों के घर पहूँचता है। गरीब, मजदूर, आम आदमी के बाद उनके द्वार पहुंचे ऐसा इन्तजाम अवश्य करा सकते है। अन्न उच्च दाम पर निलाम करने की परंपरा पर रोक लगानी होगी। इस व्यवस्था से लाभकारी कृषि प्रश्न चिन्ह लग सकता है। यह वैकल्पिक व्यवस्था है, इसके लाभ को अन्य उत्पाद से निकाल कर अपना आंदोलन मजबूत कर सकते हैं।
*किसान व्यवस्था के क्या चाहता है?*
1. *कृषि को उद्योग का दर्जा मिलें* - किसानों का उद्धार कृषि को उद्योग का दर्जा दिये बिना संभव नहीं है। अत: यह किसान आंदोलन की पहली मांग होगी। 'सुखी किसान, लाभकारी कृषि देश की पहचान किसान आंदोलन' का ध्येय वाक्य है।
2. *बिजली, पानी, बीज व खाद पर किसानों का मौलिक अधिकार है* - सरकार किसान को बिजली, पानी, बीज व खाद पर नियंत्रित नहीं कर सकती है। किसान का इस पर जन्म सिद्ध अधिकार है। उसे 24 घंटा बिजली, पर्याप्त पानी, उन्नत किस्म के बीज तथा फसल उपयोगी बीज उपलब्ध कराने होंगे।
3. *खेती सहकारिता तथा चकबंदी के आधार पर* - किसान को समाज के सहारे की आवश्यकता है, इसलिए खेती को सहकारिता के आधार पर चकबंदी तरीके से की करने हेतु परिवेश का निर्माण करना होगा।
4. *कृषि सभी प्रकार की आधुनिक तकनीक से युक्त बनाया जाए* - हल बैलों की महानता के गीत गाने का युग समाप्त हो गया है। किसान को आधुनिक तकनीक से युक्त करना होगा।
5. *कृषि बीमा का दावा पत्र किसान पेश करें* - कृषि बीमा तो किया जाता है लेकिन उसकी क्षतिपूर्ति का दावा पत्र किसान द्वारा प्रस्तुत न करवा कर सरकार अथवा सरकारी सहकारी संस्थान द्वारा किया जाता है। वही निर्धारित करती है। उद्योग की भांति किसान को भी अधिकार देना होगा।
6. *रासायनिक उर्वरक से जैविक उर्वरक की ओर* - रासायनिक उर्वरक मानव नस्ल के लिए खतरनाक है। अत: किसानों आंदोलन अपने साथियों को इस बात के लिए प्रेरित करें तथा सरकार से इसे प्रकार उर्वरक एवं कीटाणुनाशक के प्रयोग को सीमित अथवा प्रतिबंधित करने की मांग करें।
7. *अपनी उत्पाद का भाव निर्धारण का अधिकार किसान के पास हो* न्यूनतम समर्थन मूल्य का निर्धारण की लड़ाई मरम्मत पट्टी की लड़ाई है। यह संघर्ष किसानों को उत्पाद का मूल्य निर्धारण करने का अधिकार लेने में तब्दील करना चाहिए। कृषि एक प्राथमिक उद्योग है। इसे लाभकारी बनाने के लिए यह आवश्यक शर्त है।
किसानों को किसान नहीं कृषि आंदोलन करना चाहिए। किसान के बचने कृषि का बचना आवश्यक नहीं है जबकि कृषि बचने से किसान एवं कृषि व्यवस्था दोनों ही बच जाएंगी। अंत में वही यक्ष प्रश्न किसान अथवा कृषि आंदोलन की जिम्मेदारी यूनिवर्सल प्राउटिस्ट फार्मर फैडरेशन की है अथवा समाज इकाई के किसान संगठन की। इसका उत्तर ही प्रउत के लिए किये जाने वाले आंदोलनों की रुपरेखा तय करेंगी।
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