राजनीति, अर्थनीति व समाजनीति को छात्रशक्ति की भलीभाँति पहचान है। सुना है कि जब-जब छात्र बोला है, तब राजसिंहासन डोला(हिला) है। इसी छात्रशक्ति के बल पर जयप्रकाश नारायण ने कांग्रेस के अभेद्य दुर्ग को ढहाया था। महात्मा गांधी, लेनिन एवं विश्व के अधिकांश आंदोलन के अग्रदूतों ने छात्रशक्ति का उपयोग अपनी आंदोलन शक्ति की वृद्धि में किया था। क्रांतिकारी संगठनों का इतिहास तो छात्रशक्ति के बल पर ही लिखा गया है। इसलिए आज हम *छात्र आंदोलन* विषय पर चर्चा करते है।
1. शिक्षा व चिकित्सा का व्यवसायीकरण बंद हो - शिक्षा व चिकित्सा व्यापार नहीं समाज की जिम्मेदारी है। इन्हें व्यवसाय के तराजू में तौलना सबसे बड़ा अविचार है। इसे तुरंत प्रभाव से बंद करना चाहिए। इसके विरूद्ध छात्रों को आवाज बुलंद करने की जरूरत है।
(i). खर्चीली व महंगी शिक्षा छात्र के साथ अन्याय है - शिक्षा बालक, किशोर व युवक का नैतिक, मौलिक व नैसर्गिक अधिकार है। इसे पैसों के तराजू में तौलना, दिशाहीन समाज का निर्माण करता है। भारतीय संविधान में भी नि:शुल्क, अनिवार्य एवं समान शिक्षा का उल्लेख है लेकिन धरातल पर यह कार्यान्वित होते दिखाई नहीं देती है। छात्र शक्ति को पैसों के बल पर बिक रही शिक्षा के समूल विनाश का बीड़ा उठाना चाहिए तथा राज्य व समाज को नर्सरी से युनिवर्सिटी तक की शिक्षा को नि:शुल्क, समान एवं अनिवार्य शिक्षा पर चलने के लिए मजबूर करना चाहिए।
(ii) . कोचिंग सेंटर व ट्यूशन क्लासेस शिक्षा के साथ किया जाने वाला मजाक है - आज कुकुरमुत्ते की भांति गली, नुक्कड़, मोहल्ले, शहर-शहर, गाँव-गॉव कोचिंग सेंटर उग आये है। यह छात्रों को अंकों का सुनहरा स्वप्न दिखा कर अपनी ओर आकर्षित करते है जिससे अभिभावक की जेब प्यारी छूरी से कटती है, जिसका अंदाज़ा किसी को नहीं होता है। कोचिंग सेंटर चलाने वालीं ने सरकारी व निजी स्कूलों में अपने एजेंट छोड़ कर शिक्षा व्यवस्था के समानांतर अपना एक शिक्षालय चला रखा है। अतः छात्र शक्ति को ट्यूशन एवं कोचिंग सिस्टम के विरुद्ध सशक्त आंदोलन चलाना चाहिए।
2. शिक्षा का राजनीतिकरण बंद हो - शिक्षा राज्य अथवा सरकार की नहीं समाज की जिम्मेदारी है। राज्य, समाज की इस जिम्मेदारी का निर्वहन करने हेतु मददगार है। समाज द्वारा राज्य को दिये गये इस अधिकार को अस्त्र बनाकर शिक्षा का राजनीतिकरण किया जा रहा है। शिक्षा को राजनैतिक हस्तक्षेप से अविलम्ब मुक्त कर शिक्षा संचालन का संपूर्ण अधिकार शिक्षाविदों के हाथ में देना चाहिए। राजनीतिजीवि किसी व्यक्ति का इसमें कोई हस्तक्षेप नहीं हो।
(i). शिक्षा नीति व पाठ्यक्रम निर्धारण को लेकर शिक्षाविद पर राजनैतिक नियंत्रण नहीं हो - राज्य शिक्षाविदों के समक्ष राज्य की आवश्यकता एवं उद्देश्य रख सकता है लेकिन शिक्षा नीति, पाठ्यक्रम इत्यादि निर्धारण व संचालन में सरकार का कोई हस्तक्षेप नहीं होना चाहिए। इस हेतु छात्र संगठन को यह मांग रखनी ही होगी ।
(ii). शिक्षक किसी दृष्टि से राजनीति की ओर नहीं ताकें - शिक्षक अपनी तनख्वाह अथवा शाला संचालन की तय राशि के लिए सरकारी कृपा वर्षा पर निर्भर नहीं हो। बजट में शिक्षा निधि के निर्माण की व्यवस्था होनी चाहिए, जिसके तहत निर्धारित राशि बिना विलंब किये शिक्षक, शिक्षा व्यवस्था में लगे कार्मिकों व शिक्षालय के पास पहुंच जानी चाहिए, ताकि शिक्षक का ध्यान उस ओर नहीं जाए तथा वह अपना सारा ध्यान शिक्षार्थी के निर्माण में लगाएं। यहाँ तक की शिक्षा, शिक्षक व शिक्षाविदों से संबंधित अनियमितता सुनने वाले न्यायालय की व्यवस्था भी पृथक होनी चाहिए। यह मांग भी छात्र आंदोलन में सम्मिलित करनी चाहिए।
(iii) छात्रों को राजनीति में घसीटने की प्रथा पर रोक हो - राजनेता अपने दलगत हित साधने के उद्देश्य से विद्यालय के लोकतांत्रिक संचालन के नाम पर अपने छात्र संगठन को महाविद्यालय व विश्वविद्यालय में उतारते है। जिससे इन शिक्षालयों का महौल शिक्षा से हटकर राजनैतिक अखाडेबाजी का हो जाता है। इससे रैगिंग, गुटबाजी, आपसी वैमनस्य और झगड़ा फसाद इत्यादि कुप्रथा शिक्षा का अंग बन जाती है। छात्र संगठन को इसे बंद कराने का अपना संकल्प लेना चाहिए।
3. शिक्षा का दंड मूलक स्वरूप खत्म हो - शिक्षार्थी को सभ्य नागरिक एवं योग्य मनुष्य बनाना शिक्षा का उद्देश्य है। उसे पशुओं की भांति डण्डे के बल पर चलाना शिक्षा शब्द के अर्थ से मेल नहीं खाता है। अत: शिक्षा को दंड मूलक नहीं बल्कि सुधार मूलक भाव से चलाना चाहिए। शारीरिक दंड से मानसिक दंड अधिक शक्तिशाली होता है, इसलिए मनोवैज्ञानिक शिक्षा को अधिक प्रोत्साहित करना चाहिए। छात्र संगठनों का दायित्व है कि इस दिशा में शिक्षाविदों को सतर्क करें।
4. शिक्षा रोजगार मूलक हो - शिक्षा का कार्य पढ़े लिखे नागरिक तैयार करना ही नहीं है बल्कि शिक्षा का उद्देश्य नागरिकों को रोजगार हेतु तैयार करना एवं योग्य बनाना है। छात्र संगठन को इस दिशा में भी काम करने की आवश्यकता है। यह छात्रों को मौलिक अधिकार के रुप में समाज से प्राप्त करना चाहिए।
5. शिक्षा का माध्यम स्थानीय भाषा हो - प्री प्राइमरी शिक्षा से युनिवर्सिटी स्तर तक की संपूर्ण शिक्षा व्यवस्था स्थानीय भाषा में होनी चाहिए। हाई स्कूल्, कॉलेज व यूनिवर्सिटी में अधिक से अधिक भाषा सिखने का सुयोग छात्रों के पास हो लेकिन संपूर्ण शिक्षा व्यवस्था को स्थानीय भाषा में संचालित करना चाहिए। यह लडाई भी छात्र शक्ति की है। परीक्षा में प्रश्न पत्र स्थानीय भाषा व लिंक लैंग्वेज में हो सकता है लेकिन उत्तर लिखने की भाषा के चयन में परीक्षार्थी को पूर्ण स्वतंत्रता दी जानी चाहिए। अतः शिक्षा रटन विद्या नहीं वरन सोच समझ विकसित करने वाली हो।
6. गाँव व शहर में एक जैसी शिक्षा प्राप्त करने का सुयोग हो - अक्सर देखा गया है कि विद्यार्थी शिक्षा के लिए कई किलोमीटर पैदल, साईकिल, निजी वाहन अथवा पब्लिक वाहन में बैठकर दूर दराज जाता है। आजकल निजी शिक्षण संस्थानों ने तो इसे व्यवसाय के रुप में अपना रखा है। इससे ग्रामीण अभिभावकों पर अतिरिक्त वित्तीय भार पड़ता है तथा थकान के कारण शारीरिक गठन व स्वास्थ्य पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है। अन्य पक्ष यह भी है कि विद्यार्थी उच्च व तकनीकी शिक्षा पाने के लिए अभिभावक का स्नेह व घर की रोटी छोड़ शहर में बाजार का भोजन खाने अथवा स्वयं निर्मित भोजन करने के लिए मजबूर होता है। इसके परिणाम सकारात्मक से अधिक नकारात्मक दिखाई दिए है। अतः छात्रों को व्यवस्था को इतना मजबूर करना चाहिए कि उनके लिए उपयुक्त शिक्षा उनके क्षेत्र तक आए। यह चैरिटी नहीं छात्र का अधिकार है।
7. भेद रहित सदगुणों की शिक्षा समाज के नैतिक मानदंड का आधार है - शिक्षा को देने व लेने में विद्यार्थी के साथ जाति, लिंग, रंग, आयु, नस्ल, अभिभावक के पेशा व रुतबा तथा अन्य किसी आधार पर भेद नहीं होना चाहिए। एक शिक्षक के समक्ष सभी शिक्षार्थी समान हैं। शिक्षा का कार्य मात्र किताबी ज्ञान अथवा व्यवसायिक ज्ञान देना नहीं है, शिक्षा का उद्देश्य सदगुणों का विकास भी है। इस उत्तरदायी व्यवस्था की मांग भी छात्र आंदोलन का अंग है।
अपने अध्ययन पत्र के अंत में एक विचार पाठक दल के समक्ष रखता हूँ तो उसके आधार पर एक विमर्श बने एवं उन्हें हम व्यवहारिक जगत में लागू कर सकें। विचार यह है कि छात्र आंदोलन, यूनिवर्सल प्राउटिस्ट फैडरेशन एवं समाज इकाई के छात्र संगठन में से किसकी जिम्मेदारी है? मेरे निजी और बहुत ही निजी विचार से यह जिम्मेदारी समाज इकाई के छात्र संगठन की है। यूनिवर्सल प्राउटिस्ट स्टूडेंट फैडरेशन समाज इकाई के छात्र संगठन को बाहरी शक्ति, सुरक्षा एवं ऊर्जा प्रदान करने का कार्य करेंगा तथा समाज इकाई के छात्र संगठन को तैयार करने, छात्र आंदोलन हेतु आवश्यक औजार उपलब्ध कराने तथा उसको उपयुक्त दिशा एवं गति देने की जिम्मेदारी का निवहन करेंगा। इसके अलावा समाज इकाई की छात्र शाखाओं को राज्य, देश एवं वैश्विक स्तर पर विचारों को साझा करने एवं सामूहिक नीतिगत फैसले हेतु मंच उपलब्ध कराएगा। अधिकांश विचारकों के मत प्राप्त हुए है कि छात्र आंदोलन यूनिवर्सल प्राउटिस्ट स्टूडेंट फैडरेशन की जिम्मेदारी है। लेकिन समाज इकाई के छात्र संगठन की भूमिका के संदर्भ में स्पष्ट दिशा निर्देशन उपलब्ध नहीं हुए है।अतः इस विचार पर मंथन कर एक विमर्श तैयार करने की आवश्यकता है। समाज इकाई की पंच शाखा एवं प्राउटिस्ट यूनिवर्सल के पांच फैडरेशन के काम करने के तरीकों पर दिशा निर्देशन की आवश्यकता है। यह तारतम्य ही प्रउत के लिए किये जाने वाले आंदोलन को समग्रता प्रदान करेंगा।
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