ऐसे चलो, संगठित हो जाओ, प्रउत आएगा ही

  

           प्रगतिशील उपयोग तत्व सर्वजन के हित एवं सुख के प्रचारित किये गए है। सर्वजन का सर्वांगीण कल्याण जिस रचनात्मक कार्यपद्धति से संभव है, उसका नाम प्रउत का समाज आंदोलन अर्थात प्रउत व्यवस्था की सामाजिक आर्थिक इकाइयाँ समाजहै। संगच्छध्वम् का यथार्थ दर्शन जहाँ प्रउत व्यवस्था में निहित है, वही इस सिद्धांत को सच्चे अर्थों फलीभूत करने की एक मात्र विद्धान समाज आंदोलन है। यद्यपि प्रउत को धरातल पर स्थापित करने की सभी विधाएँ अपने आप में महत्वपूर्ण, आवश्यक एवं प्रभावशाली है तथापि समाज इकाई का संगठन नाम बेजोड़ है, जिसका लौहा किसी से नहीं लिया जा सकता है।

प्रउत को धरती पर स्थापित करने की विधाएँ

1.      प्राउटिस्ट फारुम यह विधा विश्व में विद्वानों के बीच प्रउत विचारधारा पर मंथन कर प्रउत विचारक रुपी शिल्पकार तैयार करते है। अर्थात प्रउत थिंक टैंक तैयार करने वाली कार्यशाला है। यह थिंक टैंक प्रउत योजना पर कार्य करने वाली स्वयंसेवकों को सम विषम हर परिस्थितियों में विचारों का रसद उपलब्ध करवाते है। इस मंच का उपयोग कर अधिक से अधिक संख्या में प्रउत बुद्धिजीवी दल लेखक, विचारक, कवि, साहित्यकार एवं संगीतकारों को तैयार करना चाहिए।

2.      प्राउटिस्ट ब्लॉक यह विधा विश्व में राष्ट्र की सीमाओं में रहकर प्रउत के राजनैतिक परिदृश्य को तैयार करती है। राजनीति के उतार चढ़ाव में जनमत का बनना बिगड़ना स्वाभाविक है, वहाँ शिल्पकारों की जरा सी चुके बहुत अधिक भारी पड़ सकती है इसलिए इस धरातल के माध्यम से ऐसे नेतृत्व तैयार होंगे, जो राजनीति काली रात्रि में सितारें बनकर चमकेंगे तथा राजनीति की चकाचौंध में सूर्य की भांति तेजमान रहेंगे।

3.      प्राउटिस्ट यूनिवर्सल प्रउत की यह विधा समाज के सर्वत्र फैलकर वैचारिक क्रांति को मूर्त रुप देती है। मजदूर, किसान, छात्र, युथ एवं बुद्धिजीवि पुरुष व स्त्रियों के बीच जाकर आंदोलनकारी जत्थे का निर्माण करती है। बिना आंदोलनकारी जत्थे के किसी भी योजना को मूर्त रुप देना दिवास्वप्न तुल्य है। कल्पना तबतक आसमानी वस्तु है जबतक उसमें संकल्प की शक्ति का संचार नहीं होता है। विचारों में संजीवनी शक्ति संकल्प का निर्माण आंदोलनकारी मानसिकता में निहित है, जो इस विधा की धरोहर है।

4.      प्राउटिस्ट वाहिनी प्रउत के लिए जीने मरने वाले सिपाहियों को तैयार करने वाला मंच है। बिना सिपाही के समाज की परिकल्पना खतरे के खेल के जैसी है। सिपाही की परिभाषा लोग भूल से मरने व मारने वाला समझ लेते है लेकिन सिपाही का लक्ष्य कभी भी किसी के प्राणों की आहुति लेना नहीं होता है। सिपाही एक लक्ष्य में अपना जीवन अर्पित करता है। इसका अर्थ यह भी नहीं है कि प्राण देने को सदैव आतुर रहता है। एक एक सिपाही के प्राण कीमती है। इसलिए अपने लक्ष्य की ओर बढ़ते सिपाही को हर बाधाओं एवं संकट से पार उतरने की कला में दक्ष करने की विधा यहाँ मिलती है।

5. प्राउटिस्ट सेवादल - मनुष्य के महान बनने के तीन रास्ते है - साधना, सेवा एवं त्याग। इन तीनों की अनुभूति सेवादल में होती है, सदविप्र को सेवा व्रत के तैयार करने वाला मंच है

6. प्राउटिस्ट समाज आंदोलन इस विश्व का धरातल सम नहीं है, विषमता से भरी दुनिया को न्याय देने के लिए समाज इकाइयों का सृजन आवश्यक था। किसी विचारक को यदि यह रास्ता उबड़ खाबड़ नजर आए तो उसे समझना चाहिए कि हमारी दुनिया की सभी जगह सभी वर्ग एक जैसे नहीं है। इसलिए हे पथिक अपने रास्ते को देख कैसा है तथा तुझे इसे कैसा बनाना है, उसी को देखकर चलता है तेरे स्वप्नों की सुन्दर दुनिया बनकर तैयार हो जाएगी। यह परिवेश एवं परिदृश्य प्रउत की समाज इकाइयों से निर्मित होता है।

       प्रउत समाज आंदोलन का स्वरूप

प्रउत समाज आंदोलन अंधेरे चलाया जाने वाला लठ नहीं है, यह एक सुनियोजित योजना एवं चरणबद्ध कार्य योजना है।

1.     इकाई का संगठन सर्वप्रथम इकाई का संगठन तैयार करना आवश्यक है, बिना संगठन के अकेला चना भाड़ नहीं फोड़ सकता है। संघे शक्ति कुलयुगे के सूत्र को लेकर चलना ही इकाई संगठन में निहित है।

2.     सांस्कृतिक जागरण सप्त मनुष्य को युग निर्माण का पंचजन्य सुनाना भैंस के आगे बिन बजाने के समान है। सुप्त मानवता को सांस्कृतिक विरासत ही जगाने सरल एवं सुगम साधन है। सांस्कृतिक जागरण में आध्यात्मिक प्राण ज्योति की  नितांत आवश्यक है इसके अभाव में जागृत लोगों में दैत्योंचित वृत्तियों के जागरण की संभावना निहित होती है। सांस्कृतिक जागरण नैतिकवान मनुष्य का निर्माण करती है, इसलिए नैतिकता को आध्यात्मिकता से ओतप्रोत करना आवश्यक है इसके अभाव सहज नैतिकता ठग ली जाती है। प्रउत की समाज इकाई का नाम ही सांस्कृतिक जागरण को प्रथम सूत्र बता है। अपनी भाषा, अपनी संस्कृति, अपनी कला, अपना साहित्य, अपनी धरोहर एवं अपना समाज के आधार पर एक समाज का संगठन मजबूत होता है।

3.     आर्थिक न्याय जिस समाज में न्याय नहीं, वह समाज ही नहीं होता है। आर्थिक न्याय प्रउत व्यवस्था से अच्छा आज दिन तक किसी ने परिभाषित नहीं किया है। प्रउत आधारित आर्थिक संगठन के निर्माण किये बिना समाज का कोई भविष्य नहीं है। इसलिए प्राउटिस्टों को सर्वप्रथम प्रउत अपने पर लागू करना ही प्रउत के आर्थिक न्याय का प्रथम कार्य है, इसके बाद ही समाज में आर्थिक न्याय देने वाली प्रउत व्यवस्था आएगी।

4.     सामाजिक समरसता - समाज का वर्तमान परिवेश एवं प्रउत के आर्थिक न्याय की स्थापना के बाद जो समाज का परिदृश्य तैयार होगा, वह सामाजिक समरसता की मांग एवं तदनुकूल आनन्द मार्टिन आदर्श को दृढ़ता से पकड़ कर चलना ही सामाजिक समरसता है। यदि समाज में भेद का बिन्दु दिखाई दिया तो प्रउत का बनाया गया सुन्दर महल मानव के लिए अनुपयुक्त हो जाएगा। आर्थिक न्याय स्थापित करने में वैचित्र्य प्रकृति के धर्म को ध्यान में रखा जाता है, यदि आर्थिक जगत की दृष्टि को सामाजिक जगत में दिखाई देने लग जाए तो समाज विखंडित हो जाता है। भारतीय समाज में सुसंगठित सामाजिक इकाई के अभाव में यह दृश्य उत्पन्न हुआ था ।

5.     स्वच्छ एवं स्वस्थ राजनैतिक दृश्य -   राजनीति दृश्य का स्वच्छ एवं स्वस्थ बनाना आवश्यक है। एक राजा, नेता एवं नायक का नैतिकवान होना परम आवश्यक है। प्रउत के सदविप्र राज की स्थापना करना ही समाज आंदोलन की परिणित है।

 


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