🔥आस्था विज्ञान मंच से 🔥
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🌹बसंतोत्सव – होलिका🌹
®करण सिंह शिवतलाव®
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भारतवर्ष में फाल्गुन पूर्णिमा को बसंतोत्सव के रुप में मनाया जाता है। यह पर्व शरद ऋतु के विदाई एवं गीष्म के आगमन का पर्व है। इसे भारतवर्ष के अधिकांश अंचल में होलिका दहन पर्व के रुप में मनाए जाने की परंपरा है।
कथा के अनुसार हिरण्यकश्यप नामक दैत्य की बहन होलिका को अग्नि में नहीं जलने का वरदान था। वह नित अग्नि स्नान करती थी। उसने हिरण्यकश्यप के विष्णु भक्त पुत्र प्रहलाद को जलाने के निमित्त उद्देश्य से गोद में लेकर अग्नि में प्रवेश किया था तथा बताया जाता कि अपनी शक्तियों के दुरूपयोग के कारण स्वयं जलकर भष्म हो गई। दुष्टात्मा के कुकृत्य को समाज के मंच सदैव स्मरणीय रखने एवं समाज को शिक्षा देने के लिए यह पर्व मनाया जाता है।
आस्था, विज्ञान के तराजू में ➡ होलिका का अग्नि स्नान एक चमत्कार अथवा अलौकिक लीला नहीं है। यह भौतिक विज्ञान का गति एवं उष्मा कि एक सूत्र है। यदि अग्नि की दाहक क्षमता से अधिक वेग से गुजरने वाले प्राणी अथवा वस्तु को अग्नि नहीं जला सकती है। जलती ज्वाला को हाथ से काटना, जलते गोले से करतबबाज का निकलना, जलते अंगारों पर नृत्य करना इत्यादि उदाहरण, अग्नि एवं गति के वेग से संतुलित होते है। कहानीकार होलिका के अग्नि स्नान को भौतिक विज्ञान के अग्नि समीकरण समझकर लिखा होगा ।
बसंतोत्सव एवं मनोविज्ञान ➡ नव अन्न के आगमन में फूल एवं रंगों के आदान प्रदान का पर्व बसंतोत्सव कहलाता है। मन जब खुशी में झूमने लगता है तब वह रंग बिरंगी छटा लेकर नाचता है तथा अपनी खुशियों को बाटता है। अग्नि ज्वाला भी एक मनोविज्ञान को सिखाता है कि ग्रीष्म ऋतु की हाड तपाने वाली तपन में अपने शरीर एवं मन का संतुलन, वातावरण तापमान एवं शरीर के तापमान का एक उचित योग विज्ञान के द्वारा सम बनाए रखने की कला में दक्ष होना चाहिए। शरीर में कम मात्र में ठोस आहर तथा अधिक मात्रा में तरल पेय लेना चाहिए।
जैव रसायन एवं फाग उत्सव ➡ फाग उत्सव को गर्म गीतमाला व नृत्य से सजाया गया है। इन दिनों जैव रसायनों में तीव्रता आती है। इसलिए मनुष्य को शरीर एवं मन का संतुलित बनाए रखने के लिए नृत्य एवं गीत के माध्यम से चिंतन में विचलित दृश्य को कम करना चाहिए। गीत एवं नृत्य में एक आध्यात्मिक भावधारा का संचार करना प्रगति द्योतक है।
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