Science in MahaShivratri

🌹आस्था विज्ञान मंच से 🌹
     ®श्री आनन्द किरण ®
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      ©महाशिवरात्रि क्यों ©
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पुराणों में मान्यता है कि भगवान शिव ने समुद्र मंथन से निकलने वाले विष का पान किया था। इसलिए रातभर उन्हें जागाए रखने के लिए देवगण द्वारा शिव की स्तुति, अर्चना, पूजा, वंदना एवं आराधना की थी। उसी के उपलक्ष में सनातन समाज में महाशिवरात्रि मनाई जाने लगी। 

किवदंती में बताया गया है कि भगवान शिव एवं देवी पार्वती का विवाह इस दिन हुआ था। नव दंपति के लिए शिव गणों द्वारा रात्रि जागरण रखा गया था। उसी की याद में महाशिवरात्रि का पर्व मनाया जाता है। 

एक धारणा यह भी है कि भगवान शिव ने आततायी ताड़का सुर का वध कर जनता को उनके अत्याचार से मुक्ति दिलाई थी। उसी खुशी में जनता द्वारा महाशिवरात्रि मनाई गई।

आस्था के इस पर्व को विज्ञान के परिपेक्ष्य में ले जाने पर देखा जाता है कि इन दिनों शीत का प्रकोप कम होता है तथा ग्रीष्म के आगमन का संकेत होता है। शीत ऋतु में शरीर के तापमान को साम्य अवस्था में रखने के लिए खाएं जाने वाले उष्ण भोजन के प्रभाव स्वरूप शरीर में विषकारी वृत्तियाँ सक्रिय होती है। इन्हें योग साधना के बल पर विशुद्ध चक्र (कंठ वृत्ति - थाइरॉइड ग्रंथि) में  निष्प्रभावी किया जाना होता है। अन्यथा शरीर में विभिन्न प्रकार उष्ण जनित रोगों का प्राबल्य दिखाई देता है।  पाक शास्त्र का विज्ञान बता है। इन दिनों तरल भोजन की मात्रा बढ़ानी चाहिए है। पानी में उबाल कर बनाएं गए। ठोस भोज्य का सामान्यतया लेना चाहिए। उदाहरणार्थ उबाल हुआ साबुत अनाज, धान, दलिया इत्यादि। ठंडे पानी में भीगा कर लिया जाने वाला अंकुरित अनाज पौष्टिक एवं स्वास्थ्यवर्धक है। 

 भोग मनुष्य को जीव लोक में ले जाता है जबकि साधना, सेवा एवं त्याग मनुष्य को शिव लोक ले चलता है। जहाँ रात दिन, दुःख, हर्ष विषाद, प्रकाश अंधकार एवं मृत्यु अमृतत्व का विभेद नहीं रहता है। 

*मनोविज्ञान के अनुसार* - शिव व रात्रि दो शब्द के संयुक्ताक्षर का नाम शिवरात्रि दिया गया है। शिव सत्य व आनन्द का प्रतीक है तथा रात्रि नकारात्मक प्रभाव का प्रतीक है। रात्रि पर शिव की जीत अर्थात प्राबल्य से नकारात्मक भाव का अंत होता है तथा सकारात्मक प्रभाव में प्रतिष्ठित होता है। सकारात्मकता मनुष्य जीवन को सफल बना देता है। यही शिवरात्रि का विज्ञान है इसलिए इसे धर्मशास्त्रियों ने महाशिवरात्रि कहा। 

फाल्गुन त्रयोदशी को महाशिवरात्रि क्यों - यह परंपरा की संपदा है। परंपरा में संयोग तत्व का प्रधान्य होता है तथा संयोग की कोई परिभाषा नहीं होती है। यह कार्य कारण तत्व से परे होता है। 

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श्री आनन्द किरण@आस्था विज्ञान से
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